Saturday, 13 May 2023

नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता

 नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता 

मोहब्बतों का कोई मुकाबिल नहीं होता ।


जब तक मिल बैठ सलीके से बात न हो

हल कोई भी संजीदा मसाइल नहीं होता ।


रंजिशों का रंज अगर मोहब्बतें मिटा देती

तो उजाड़ मकानों में अबाबिल नहीं होता ।


छोड़कर जानेवाले इतना तुम याद रखना

हर कोई हमारी तरह जिंदादिल नहीं होता ।


यारों का साथ और संगदिली बड़ी चीज़ है 

सब के नसीब शौक ए महफ़िल नहीं होता ।


कुछ रास्तों पर ये पांव ख़ुद ही रुक जाते हैं 

जब कि वहां कोई भी सलासिल नहीं होता ।


जो मौसमी नालों की तरह बहते बह जाते हैं

उनके नसीब में तो लब ए साहिल नहीं होता ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
हिंदी व्याख्याता
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।

वो काम सारे मुकम्मल पूरा चाहती हैं

 वो काम सारे मुकम्मल पूरा चाहती हैं

लड़कियां कहां कुछ अधूरा चाहती हैं ।


यूं ही नहीं सज़ा देती हैं घर आंगन को

ये अपनी जिंदगी में सलीका चाहती हैं ।


खिले हुए फूलों को देखकर खुश होती

ये भी उन्हीं की तरह खिलना चाहती हैं ।


उड़ती हुई तितलियों के रंग ढंग देखकर

ये भी तो अपनी मर्जी से उड़ना चाहती हैं ।


बंदरों को डालियों पर उछलता देखकर 

ये भी झूले पर देर तक झूलना चाहती हैं ।


सबकुछ लुटा हंसना रोना पसंद है इन्हें

लड़कियां जिंदादिली से जीना चाहती हैं ।


ये परिंदे हैं आसमान में ऊंची उड़ानों के

इन्हें हौसला दो बहुत कुछ करना चाहती हैं ।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा

कल्याण पश्चिम,महाराष्ट्र 

Friday, 12 May 2023

मुख्तलिफ हवालों से ख़बर रखते हैं

 मुख्तलिफ हवालों से ख़बर रखते हैं

तेरे चाहनेवाले तुझपर नज़र रखते हैं।


वो आते ही जाने की बात करते हैं

यूं मोहब्बत में बाकी कसर रखते हैं।


तुम कहो तो कहूं नाम सबके आगे 

अरे इश्क में हम भी जिगर रखते हैं ।


मुझसे मिलने वो आयेगी यकीन है 

प्यार में हम भी थोड़ा असर रखते हैं ।


मेरी गुजारिश को जादा हवा नहीं देते

हां कहते हैं किंतु अगर मगर रखते हैं ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

कल्याण 

अफ़वाहें सच हैं शक के काबिल हूं

 अफ़वाहें सच हैं शक के काबिल हूं

सच आ जाता है जुबां पर जाहिल हूं ।


सब अपने घरों के रंगीन पर्दों में कैद 

मैं दुनियां जहान के दर्द में गाफिल हूं ।


यकीनन अभी कई आगाज़ बाकी हैं

ज़रा थके इरादों को लेकर बोझिल हूं ।


विरोध की जितनी भी संभावनाएं बनें

लिखो मेरा नाम मैं सभी में शामिल हूं ।


जितना मिटता उतना ही सुकून आया

मैं अपनी ही आहुतियों का हासिल हूं ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

के एम अग्रवाल महाविद्यालय

कल्याण पश्चिम

महाराष्ट्र ।

कुछ गुनाह हो जाएं तसल्ली होगी

 कुछ गुनाह हो जाएं तसल्ली होगी

वरना तो जिंदगी कोई खिल्ली होगी  ।


अपने हुक्मरानों से सवाल नहीं करती 

कौम यकीनन वो बड़ी निठल्ली होगी ।


काम बनने बिगड़ने के कई कारण होंगे 

पर दोहमतों के लिए काली बिल्ली होगी ।


झूठ के चटक रंगोंवाली चंचल लड़की 

जितनी शोख उतनी ही चिबिल्ली होगी ।


वक्त के साथ जरूरतें बदल जाती हैं

घर के कोने में पड़ी जैसे सिल्ली होगी ।


आते - जाते मुझे जाने क्यों चिढ़ाती है 

सोचना क्या शायद कोई झल्ली होगी ।


झूठ के रंगों से पूरी दुनियां गुलज़ार है 

यह बात यकीनन बड़ी जिबिल्ली होगी ।



डॉ मनीष कुमार मिश्रा

के एम अग्रवाल महाविद्यालय

कल्याण पश्चिम 


कवि मनीष की कविता सादगी से परिपूर्ण सरल और जीवंत कविता है

 इस बार तुम्हारे शहर में समीक्षा

डॉ उषा आलोक दुबे

हिंदी प्राध्यापिका

एम डी महाविद्यालय

परेल, मुंबई


मनुष्य की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता सर्वोत्तम माध्यम है। व्यक्ति जब भी अकेले रहता है, तो उसके मन में कई विचारों का आवागमन चलता रहता है। विचारों को सुंदर तरीके से समाज के सामने रखना ऐसी कला सबके पास नहीं होती है, किंतु डॉ मनीष मिश्रा ने बड़ी ही तल्लीनता से अपने भावों को रसात्मक तरीके से व्यक्त किया है।  आचार्य विश्वनाथ के अनुसार "वाक्यां रसात्मक काव्यं" को कवि अपनी कविताओं के माध्यम से चरितार्थ करने का पूरी शिद्धत के साथ से प्रयास किया हैं।  मनीष की कविताओं में भावतत्व की प्रधानता स्पष्ट रूप से झलकती है। 

इनकी कविताओं में सिर्फ स्त्री- पुरुष प्रेम ही नहीं बल्कि समय और समाज के तमाम छोटे-बड़े सवालों या परिस्थितियों को आंखों के सामने खड़ा करती हैं।  कवि की कविता "मैंने कुछ गालियां सीखी है" यह दर्शाता है कि मनुष्य को जहां रहना है, उसे सिर्फ उस प्रदेश या राज्य की केवल सकारात्मक चीजों को नहीं बल्कि समाज के हिसाब से गलत समझी जाने वाली चीजों को भी सीखना पड़ता है। जहां हम निवास करते हैं वहां सिर्फ अच्छाइयों को नहीं बल्कि कुछ गलत चीजों को भी अपनाना पड़ता है, और जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग भी करना पड़ता है। तभी आप वहां के अपने कहलाने लगते हो। कवि  अपनी कविता में कहते हैं कि"

"यहां अब देश नहीं 

प्रादेशिकता महत्वपूर्ण होने लगी है। 

प्रादेशिक भाषा में

गाली देने से ही

हम अपने सम्मान की

रक्षा कर पाते हैं

पराए नहीं 

अपने समझे जाते हैं

इस देश के 

कई प्रदेशों में 

आत्म सम्मान से

जीने के लिए

अब गालियां जरूरी है"।१ 

इन पंक्तियों की अर्थव्याप्ति इतनी अधिक है कि इसे जिस तरह से भी व्याख्यायित करें कम ही रहेगी।  कवि ने इस कविता में हमारे समग्र सामाजिक परिवेश को यथार्थपरक रखा है। यहाँ व्यक्ति नहीं बल्कि प्रादेशिकता महत्वपूर्ण हो गई है। 

प्रकृति अपने आप में ही सुंदर है काव्य की सुंदरता बढ़ाने के लिए कवि अपनी कविताओं में प्रकृति का मनोहर रूप का वर्णन करते है।  कवि अपनी कविता के माध्यम से केवल देवभूमि की सुंदरता ही नहीं बल्कि अपनी श्रद्धा को अर्पित करते हुए नमन करते हैं। कहते हैं कि 

"हे देवभूमि

यह तुझ पर 

कोई कविता नहीं 

तेरे प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है 

मनुष्य की  कृतघनताओं के लिए

क्षमा याचना है"।२

कवि देव भूमि को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए अपने आदर्शों तथा संस्कृति का परिचय देते हैं। 

कवि प्रकृति को अपने आप में ही एक सुंदर महाकाव्य बताते हुए कहते हैं कि 

"इन पहाड़ों में

मानो बाचती  हो

साजती हो

रचती हो

सौंदर्य का कोई महाकाव्य"।३ 

यहां पर सौंदर्य का संबंध केवल बाह्य जगत की अपेक्षा आंतरिक सत्ता से अधिक है कवि ने प्रकृति को बड़े ही खूबसूरत ढंग से मानवीकरण किया है। 

कवि ने अपनी कविताओं को गहरे प्रेम से रचा है इस प्रेम में एक मित्र, प्रेयसी या उसकी कल्पना भी हो सकती है। जब कोई व्यक्ति अपनों को किसी अधिकारवस किसी भी तरह से संबोधित करता है, तो यह संबोधन उस रिश्ते या अपनत्व की पराकाष्ठा को बताता है। 

कविता "चुड़ैल" में कवि कहते हैं कि

"जब कहता हूं तुम्हें

चुड़ैल तो 

यह मानता हूं कि 

तुम हँसोगी  

क्योंकि तुम जानती हो 

तुम हो मेरे लिए 

दुनिया की सबसे सुंदर लड़की 

जिसकी आलोचना 

किसी भी तारीफ से 

मुझे कहीं ज्यादा 

अच्छी लगती है"।४ 

यह संबोधन ही उसकी मित्र या प्रेमिका को उसके अपनत्व का एहसास दिलाती होगी। 

कविता अक्सर अपने जिए हुये पलों तथा रूमानियत के सहारे लिखी जाती है। कवि अपनी रचना के इन्हीं दोनों पक्षों का सहारा लेते हुए अपनी रचना धर्मिता की अनुभूतियों को पिरोता जाता है।  कवि मनीष की कविता सादगी से परिपूर्ण सरल और जीवंत कविता है जिससे हर एक पाठक वर्ग इन कविताओं को पढ़ते हुए अपने आप ही जुड़ता चला जाएगा  है। 



संदर्भ ग्रंथ 

1) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ६३

२) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४१

३) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४०

३) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४४


Thursday, 11 May 2023

सामाजिक सरोकारों की सुंदर अभिव्यक्ति

 

'इस बार तेरे शहर में'

‘’संवेदनाएँ

जहाँ असहाय हों

वहाँ

उन्हें दुलराने को

उपस्थित हों सकें

मेरी भी

कविताओं के शब्द।‘’

'इस बार तेरे शहर में'  काव्य-संग्रह साहित्य-सृजन के माध्यम से प्रकृति सौंदर्य, मानवीय संवेदनाओं, दुनियाई        तानों-बानों एवम् मनुष्य के सामाजिक सरोकारों की सुंदर अभिव्यक्ति करता है। जीवन के विविध रूपों में नारी की उपस्थिति, चाहे वह माँ हो या प्रेयसी हो, उसका महत्व एवम् सार्थकता को पूरी गहराई के साथ चित्रित किया गया है।

इन घाटों का तट

तृष्णाओं की तृषिता है।

तने हुए तन का

अंतिम पड़ाव तो

भरे हुए मन का

सम्मोहन केंद्र।

 संग्रह में प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को, बनारस शहर की स्मृतियों को जीवंत रूप से उकेरा गया है। शहर की गलियाँ, उसके घाट, दुकानें और विविध किरदारो से जुड़े हुए अनुभव ध्यानाकर्षित करते हैं।

लेकिन

हम भूल गए थे कि

कैमरा

यादों को कैद कर सकता है

लौटा नहीं सकता।

कई आधुनिक प्रतीकों जैसे चाय का कप, मोबाईल, नेल पॉलिश, कैमरा, पेन, नेलकटर, जूते, विजिटिंग कार्ड इत्यादि का नये संदर्भों में प्रयोग किया गया है।

                                                                     जीवन के तीस बसंत बाद

जब पीछे मुड़कर देखता हूँ

तो कई मुस्कुराते चेहरों को पाता हूँ

लगभग हर आँख में

अपने लिए प्यार पाता हूँ

अपने लिए इंतजार पाता हूँ।

 

यह काव्य-संग्रह कवि के पिछले तीस सालों का लेखा-जोखा है और उन सभी के प्रति आभार प्रदर्शन भी है जिन्होंने उनका स्वरूप गढ़ने में सहायता की। कवि दिखावे में नहीं अपितु सच्चाई की सहज प्रतिक्रिया में विश्वास करता है।

इस बार

जब तुम्हारे शहर में था

तब

तुम नहीं मिली

और

नहीं मिला

तुम्हारे शहर का

वह मौसम भी

कि जिसका मैं दीवाना हूँ।

 'इस बार तुम्हारे शहर में' कविता के माध्यम से जीवन की सच्चाई बतलाई गई है कि आनंद बाहरी नहीं अपितु आंतरिक तत्त्व है हृदय जब एकाकी, दुःखी और प्रियविहीन हो तो सारे बाहरी उपक्रम बेमानी लगते हैं। अभिव्यक्ति की ताजगी और भाषा का सटीक प्रयोग पाठकों को बांधे रखता है।

             डॉ. श्रीमती रीना थॉमस                                                                                                                                        

 सहायक प्राध्यापक हिन्दी                                                                                                             

  संत अलॉयसियस स्वशासी महाविद्यालय                                                                                                                                                        जबलपुर (.प्र.)

 

लफ्ज़ लफ्ज़ जो लिखा वो तेरा खयाल है

 














लफ्ज़ लफ्ज़ जो लिखा वो तेरा खयाल है 

क्या करूंगा बिन तेरे यही बड़ा सवाल है । 


ख़्वाब कोई है नहीं बढ़ के मुझसे भी बुरा 

तुम नहीं तो क्या कहूं ये जिंदगी मुहाल है ।


जाने किस गुनाह की जिंदगी सज़ा रही 

नशा रहा तो ठीक था होश पर मलाल है ।


सर्द रात की हवा मुझे लिपट के रो पड़ी 

तरह तरह के हादसों में जिंदगी निहाल है ।


रंज और जुनून का जुलूस ले निकल पड़ा 

शब्द शब्द उड़ रहा तेरे गालों का गुलाल है ।


                  डॉ मनीष कुमार मिश्रा

                  के एम अग्रवाल महाविद्यालय

                  कल्याण पश्चिम

                   महाराष्ट्र।