2 दिल से निकल पलकों पे सजा लिया तुने ,
4 दिल से निकल पलकों पे सजा लिया तुने ,
मेरी मोहब्बत को मेरी कमजोरी ना समझ ,
मेरी चाहत को मेरी खुदगर्जी ना समझ ,
मेरी अंदाजे बेफिक्री को बेवफाई ना समझ ;
मेरे आखों के आंसू को दुहाई न समझ /
कब चाहा की तेरे आखों में आंसू आए ;
मेरे इश्क को मेरी गुस्ताखी ना समझ ;
तेरी मुस्कराहट के लिए ख़ुद को मिटा दू मैं ;
मेरे जजबातों को बेकाफी ना समझ ;
मेरी नाराजगी को भले तू ना वाजिब माने ;
मेरे प्यार को व्यर्थ की नुमाइश ना समझ /
भले तेरे रिश्ते का मुझे तू साहिल ना बना ,
मैं इश्क ना निभा पायूँगा ऐसा काहिल ना समझ ;
मेरे जीने की वजह मेरे दिल की दुआ तू है ;
मेरी मोहब्बत को तू नाकाबिल ना समझ /
कभी पल मुस्कराया करते थे ,
कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,
होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;
वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /
सामने बैठ तुम कॉलेज की बातें किया करती थी ,
मेरी धडकनों के अंदाज बदल जाया करते थे ;
अपनी सहेलियों की शरारतें बता जब इठलाते थे तुम ,
मेरे अहसास नही दुनिया बसाया करते थे ;
तेरी हँसी का एक शमा बना होता था ,
हम तेरे खुबसूरत चेहरे को निहारा करते थे ;
जब कभी आहत होती किसी के बात पे तू ,
तेरी उदासी को तेरे सिने से चुराया करते थे ;
जब तेरा दिल भर आता अपनो के कारण कभी ,
तेरे ग़मों को अपने ह्रदय में छुपाया करते थे ;
हर रोज सुबह नहा के तेरे निकालने का इंतजार हम करते ,
तुझे देख हर रोज नए सपने बनाया करते थे ;
भोर हुए आखं मलते जब तुम सामने मेरे आते ,
कैसे हम एक दूजे की सिने से लगाया करते थे ;
मन्दिर जब भी गए संग तेरे हम,
तेरी खुशियाँ मांग तेरे मांग में सिंदूर भरा करते थे ;
कभी पल मुस्कराया करते थे ,
कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,
होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;
वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /
भोर आखँ खुलते तेरी याद चली आती है ,
बाँहों में भरकर सिने से लगाती है ,
दिल को प्यास जीवन को आस दिए जाती है ,
भोर हुए तेरी याद चली आती है /
पल भर को जो हुआ अकेला ,
तेरे भावों ने आ मुझको घेरा ,
धड़कन को अहसास वो देते ,
गम को विश्वास वो देते ,
रातों में बिस्तर पे जब लेटा ,
तेरी बातों का होता सबेरा ,
नयनो में सपने आते हैं ,
तन मन पुलकित हो जाते हैं ,
भोर हुयी फिर यादें आती हैं ,
वो मेरी तन्हाई भर जाती हैं ,
कैसे तुझसे दूर मै जाऊं ,
कैसे मन मन्दिर फुसलाऊं,
भोर हुए तेरी यादें आती हैं ,
वो मेरी तन्हाई भर जाती हैं /
मेरे लम्हों की बेकरारी नही जाती ,
आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती ;
जब्त अरमां दिल को बेकरार नही करते ,
भूल जायुं तुझको क्यूँ ऐसी बीमारी नही आती /
है शांत शमा कैसे मै जानू ,
दिल में उलझन चंचल धड़कन ;
मन से खामोशी नही जाती ,
आखें प्यासी हैं क्यूँ नीद नही आती ?
तू गैर की बाँहों में ऐतबार है मुझको ,
तेरी जिंदगी उससे है इकरार है मुझको ;
तू है नही मेरी ये कैसे मै मानू ,
मेरे रग रग से बहते खूं से तेरी खुसबू नही जाती ;
आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /
विस्तृत आकाश विदित है ;
मन का भावः विदित है ;
अहसास कहाँ कब सीमा जाने ,
दिल का विश्वास विदित है /
झिल-मिल तारों से ,आस करे क्या ?
सागर की लहरों से , प्यास करे क्या ?
रातों के ख्वाबों का मंतव्य समझ लेते ;
जागी आखों के सपने ,करे क्या ?
तू गैर नही है ;
तुझको मुझसे बैर नही है ;
मेरी तन्हाई से क्या रिश्ता तेरा ?
मेरी आगोस में होने का अब दौर नही है /
तेरे वादे क्या सच्चे थे ;
तेरे अहसास सभी कच्चे थे ;
बदन से मिलते बदन की यादें ;
क्या ले के बैठें अब उसको ;
पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/
नई दुनिया तुने बसाई है ;
मेरी यादों की अर्थी सजाई है ;
मेरे होने का अहसास ना हो ;
तुने अपने दिल की कब्र बनाई है /
तुझे जरूरत ना पड़ती थी कहने की ,
तेरे अहसासों पे अमल कर देता था मै;
तेरी आखों में बुने सपनों को ,
अपने भावों से सजों देता था मै ;
तेरी राहों के काटें चुनता ,
तेरी मधुभासों में खोया रहता था मै ;
तेरी खुशियों को तुझसे ज्यादा सजोता ,
तेरे आंसुओं को अपनी आखों से रो लेता था मै ;
इन यादों से कैसे किनारा कर लूँ ,
गर तुझसे मोहब्बत एक गलती थी ;
उसे तोड़ कर गलती कैसे दोबारा कर लूँ ?
तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,
तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;
तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,
तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?
इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;
मोहब्बत में खुदा होने की ;
जी ना सके संग तेरे क्या हुआ ;
तमन्ना है तेरे इश्क में फ़ना होने की ;
मेरे अहसास अपने दिल में तू समेट ना सकी ;
मेरी दुरी को मोहब्बत में लपेट ना सकी ;
क्या कहूँ तेरे अरमां औ तेरी जरूरतों को ;
कैसे तू प्यार के जज्बे को सहेज ना सकी ?
तू गर्वित है अपने हालात पे ;
अपनी सफलता और बड़ती आगाज पे ;
क्या कहूँ मोहब्बत तेरी बिखरती जवानी पे ;
कैसे वो मेरी आखों में आंसुओं को रोक ना सकी ?
अस्ताचलगामी और उदयमान सूर्य को प्रणाम करने के लिए सदियोंसे चली आ रही परम्परा को आगे बढ़ाने की तैयारियां चल रही हैं । बस चंद क़दमों की दूरी पर पुण्यसलिला गंगा के किनारे सूर्य जब अस्त हो रहे होंगे तो हम सब उन्हें अर्पण कर रहे होंगे अपनी श्रद्धा , अपना सबकुछ । दिन भर व्रत रखकर महिलाएं भगवान भास्कर को जल आराध्य करती है। राजधानिओमें इसकी तैयारियां शुरू हो चुकी है। जैसे डेल्ही , पटना , यहाँ तक की महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में भी हम यह पर्व देख सकते है।
गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;
हूँ उसकी तलाश में ,
निकला हूँ कहीं ,पहुँचा हूँ कहीं ;
मदहोश नही हूँ , बेहोश नही हूँ ;
उलझा हूँ तेरी सोच में ;
अफ़सोस नही हूँ , सरफ़रोश नही हूँ ;
ढुढता हूँ ख्वाबों में , भटकता हूँ राहों में ;
नीद आये हुए वर्षों ;
सोया कहीं हूँ , जागा कहीं हूँ ;
तेरा अहसास नही हूँ , तेरा आकाश नही हूँ ;
हूँ हवा में शामिल ;
तेरा आभाष नही हूँ ,तेरी साँस नही हूँ ;
होयुं कोहरे में शामिल ऐसा खामोश नही हूँ /
मोहब्बत की दूरियों पे ,अपनी मजबूरियों पे ;
नाराज मत हो ,विश्वास कर ,इंकार मत हो /
तकलीफों की मुस्कराहट पे ,मुसीबतों की आहटों पे ;
नाराज मत हो ,विचार कर , तकरार मत हो /
आंसुओं की कोशिश पे ,भावों की कशिश पे ;
नाराज मत हो ,स्वीकार कर ,दुस्वार मत हो /
अपनो के तानो पे ,रिश्तों के बानो पे ;
नाराज मत हो , ख़याल कर उदास मत हो /
प्यार के धोखे पे ; मोहब्बत की उलझनों पे ;
नाराज मत हो , इश्क कर ,बदहवास मत हो /
नसीब की डोरियों पे ,तिरस्कार की बोलियों पे ;
नाराज मत हो ,सम्मान कर , अविश्वास मत हो /
बिखरे सपनों पे , छुटे अपनो पे ;
नाराज मत हो ,आगाज कर , इतिहास मत हो ;
सपने खिल जायेंगे , अपने मिल जायेंगे ;
प्यार भर भावों में ;सहजता ला मुलाकातों में ;
नम्र कर सोचों को ;सब्र भर बातों में ;
हारी बाजी जीतेगा तू ,अहसास ला मुलाकातों में ;
व्यवहार में स्वार्थ मत ला , मन में दुराव मत ला ;
नाराज मत हो ,प्यार कर ,अंहकार मत हो /
अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...