ऐसा भी मेरे साथ हुआ -----
पिछले २० दिनों से मैं यंहा मुंबई में अकेला हूँ. घर के सभी लोग गाँव गए हुवे हैं. मैं कतिपय कारणों से यंही रह गया .इस बीच ३० साल क़ी उम्र में पहली बार अपने कपडे खुद धोने क़ी मजबूरी के तहत मैंने यह महान अनुष्ठान संपन्न करने का साहसिक संकल्प लिया .
सारे कपडे टब में भिगोने के बाद जब उस पर नजर गयी तो हिम्मत ने जवाब दे दिया. अपने पक्ष में मैंने तर्क तलासने का आदेश मस्तिस्क को दिया .मस्तिस्क ने तुरंत वफादार सेवक क़ी तरह तर्क हाजिर कर दिया . उसने मानो कहा -'' इतने कपडे हैं,पहले इन्हें दिन भर भिगो देना चाहिए.इन्हें कल साफ़ किया जाएगा तो परिणाम जादा अच्छा और सुखद होगा .'' बस फिर क्या था ,मुझे तो ऐसा ही कोई बहाना चाहिए था.
अगले दिन सुबह फिर जब कपड़ों से भरा टब देखा तो वही विचार फिर मन में आया .इस बार विचार में जो नई बात जुडी थी वह यह क़ि'' कपडे सुबह की जगह शाम को साफ़ किये जायेंगे तो अच्छा रहेगा .गर्मी भी नहीं लगे गी और जादा कस्ट भी नहीं होगा .'' इस तरह शाम तक के लिए अनुष्ठान टल गया .
शाम को अनुष्ठान करना अनिवार्य हो गया क्योंकि मस्तिस्क ने ही बताया कि,'' अब अगर कपड़ों को नहीं धो दिया गया तो ये खराब हो सकते हैं,और अगर ये खराब हो गए तो नागा बाबा की बिरादरी में सम्मिलित होना पड़ेगा . सावधान !!!'' मरता क्या न करता ,मैंने जैसे -तैसे कार्य को अंजाम तक पहुंचाकर चैन की सांस लेते हुवे अपनी नीद पूरी की .
अगले दिन सुबह सूखे हुवे कपड़ों को देखकर मैं अपने श्रम पर फूला नहीं समाया. लेकिन जब उन कपड़ों को लेकर मैं प्रेस कराने गया तो प्रेस वाली ने कहा ,'' साहब ,गंदे कपडे ही प्रेस करवाने हैं क्या ?'' मुझे काटो तो खून नहीं . सोचिये ऐसा भी होता है .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित
डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
कथाकार अमरकांत : संवेदना और शिल्प कथाकार अमरकांत पर शोध प्रबंध अध्याय - 1 क) अमरकांत : संक्षिप्त जीवन वृत्त ...
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..