वो भी कैसे दिन थे जब हम , छुप के मोहबत करते थे
अम्मा,खाला,अब्बा सब की ,हम तो नजर बचाते थे
बीच दुपहरी छत के उपर,हम चोरी चुपके आते थे
घर के बुढे नौकर से भी ,हम कितना घबराते थे
रात-रात भर आंहे भरते,किसी से कुछ ना कहते थे
अम्मा,खाला,अब्बा सब की ,हम तो नजर बचाते थे
बीच दुपहरी छत के उपर,हम चोरी चुपके आते थे
घर के बुढे नौकर से भी ,हम कितना घबराते थे
रात-रात भर आंहे भरते,किसी से कुछ ना कहते थे
नजरो-ही नजरो मे,हम कितनी ही बाते करते थे
नाम तेरा जब कोई लेता ,हम तो चुप हो जाते थे
चुप रह कर भी जाने कैसे ,सुबकुछ हम कहते थे
वो भी कैसे -------------------------------
Dr. sahab 1 bar phir aapne aik achhi kavita paish ki hai. badhai.
ReplyDelete:)
ReplyDeleteआखिरी दो पंक्तियाँ सारी कविता का सार है
सीधी सरल कविता
सादर