अभिलाषा---१००
लिपट-लिपट कर सोया हूँ .
इसीलिए तो रिश्तेदारी ,
काँटों से भी हुई प्रिये .
अभिलाषा---१००
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posted by डॉ. मनीष कुमार मिश्रा at
December 05, 2009
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मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,
क्या बात थी वो जो बात वो बोला !
न जजबात हों काबू तो न कोई बात बोलो तुम ;
जो हो अनिश्चित तो न तकरार बोलो तुम ;
मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,
क्या बात थी वो जो बात वो बोला !
भावों की हो उलझन तो न इकरार बोलो तुम ;
गुस्सा भी गर आए तो मुस्कराके बोलो तुम ;
मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,
क्या बात थी वो जो बात वो बोला !
Labels: बातें, हिन्दी कविता hindi poetry
posted by VINAY PANDEY at
November 29, 2009
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posted by VINAY PANDEY at
November 29, 2009
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