Saturday, 30 May 2009

ना कोई गम है , ना हालात मुझपे हावी हैं ;

ना कोई गम है , ना हालात मुझपे हावी हैं ;

ना मिला जो साथ , ना उसकी याद मुझपे भारी है ;

पतझड़ के मौसम में हरियाली के सपने क्यूँ देखें ?

कितनी भी नफ़रत जमाना चाहे फैलाये ;

दुरी कितनी भी वक्त साथ ले आए ;

अपनी मोहब्बत से शिकायत कैसी ;

मेरा प्यार हर हालात पे भारी है /

Friday, 29 May 2009

क्या कहें वक्त ने हालात कैसे बदले हैं ;

क्या कहें वक्त ने हालात कैसे बदले हैं
थे हाथों में हाथ जिनके कभी ,
उनके व्यवहार कैसे बदलें हैं /
जीवन का मर्म का क्या कहें ,
कहीं कोई कारवां नही दिखता ;
रूठे वक्त में कह सकूँ मेरा ,
ऐसा कोई सपना भी नही दिखता /
समय की करवटों से ,
सच की हरकतों से ,
मेरी अपनी बहसों से ;
अहसास बचा हो जिसके मन में कोई नम ;
ऐसा कोई अपना भी नही दिखता /
प्यार दिखाते औ बातों से अपनापन,
है आखों में दुरी औ एक रूखापन ;
जुदाई की घड़ियों में भी ,
तनहाई न पास आने पाई ;
दूर रही या पास रही ,
पर वो सिने में महफूज रही ;
तनहाई से दुरी का रिश्ता ,
मुझे कभी ,नही है दीखता ;
प्यार अपना जवाब आप है ;
इन्सान का मन अगर साफ़ है ;
बदलते वक्त से प्यार का रिश्ता ,
मुझे कभी ,नही है दिखता ;
जीवन का मर्म का क्या कहें ,
कहीं कोई कारवां नही दिखता ;

Wednesday, 27 May 2009

The plight of Hindi

The plight of Hindi is that in spite of more then 50% of the population either speak hindi or understand hindi ,there is little pride associated with it. why?
For instance A Maharastra .a Karantaka , a Tamilnadu and its people took pride in speaking there language but making it sure slowly and gradully that there language should be used by everyone who resides in these parts ,But can you say same about Hindi certainly not .
Take for instance the oath ceromony of minister is taking place in Delhi yes our capital but how many of the ministers took oath in Hindi ?And did there was even a tiny bubble in any part of the country ? No why ?
In Tamilnadu or in Karnataka or in West Bangal they want every should talk in there languge or local language and Hindi is the local language of Delhi forget about it as RAj BHASA we hardly have pride left for anything Indian but what about the local aispiration of the people that they say in Tamilnadu or in Karnataka why these minister didn`t take oath in Hindi ?
As for as electronic media is concern these people are beref of thinking and Indian pride the less we said about them the better .

Monday, 25 May 2009

LAST WEEK

Second addition of IPL was successful very very successful at that but the closing ceremony was complete spoiler of sort .Why I am saying that ?
It was a great opportunity for BBCI and managing committee of IPL to show Indian culture and Indian artist on International platform . Isn`t it a Indian tournament ?
Indian DJ also could have done English songs yes given that it was held in South Africa some of the local artist should also have been used .But what Mr. Flamboyant Modi did was a complete dampener .His heart is not in right place I presume but we have to know it before when he shifted it to south Africa .
Second thing worth mention is Otha ceremony of Ministers by president .Only two Minister
took oath in Hindi Mr. Sharad pawar and Mr. Kamal Nath why?
Lets assume that few of them are not fluent in Hindi but isn``t being cabinet Minister from at lest 5 years as most of them were they should have learn ed Hindi and what about other ministers who speaks Hindi well but still preferred English why?
Why didn`t they took lesson from Mrs. Sonia Gandhi who learn ed Hindi or it is of no importance for a cabinet minister to know our Raj Bhasa ? Where these people are leading us and Why there in no hue and cry in any news paper or in electronic media ?Yes many of them could have taken oath in there mother tongue but why in English ? Did we need such politician in our midst who don`t respect there country or who`s heart is not at right places?

Sunday, 24 May 2009

कौन है अपना कौन पराया

कौन है अपना कौन पराया
कैसा है मन भरमाया ;
क्या उसकी आखों में सच था ,
क्या उसकी बातों में सच था ?
क्या उसने चाहा था मुझसे ,
क्या उसने chahaa था मुझको ?
उसके नयनो में सच था देखा ,
उस चेहरे में तप था देखा ;
बातों में अच्छाई थी पाई ,
मन की गहराई थी पाई ;
कौन है अपना कौन पराया ?
कैसा है मन भरमाया /
उष्मा थी उसके स्पर्शों में ,
गरिमा थी उसके तन मन में ;
एक अनोखी अनुभूति mai पाता ,
कैसा मन chanchal ho jata ,
कौन है अपना कौन पराया
कैसा है मन भरमाया ;
क्या उसकी आखों में सच था ,
क्या उसकी बातों में सच था ?
ह नहीं सकते जब मन कहेगा चले आयेंगे

Friday, 22 May 2009

कभी इकरार करता है

कभी इकरार करता है ,
कभी इनकार करता है ;
कभी खिलता कँवल है ,
कभी अनपढ़ी गजल है ;
कहीं अधुरा सच है तू ,
कहीं पूरा तप है तू ;
कहीं विस्वास है तू ,
कहीं खोयी आस है तू ;
कहीं बंधन में जकडा है ,
कहीं बस यूँ ही अकडा है ;
चेहरे की मुस्कान है तू ,
आंसुवो की जान है तू /

बड़ी बड़ी बातों से मर्म नही बनता

बड़ी बड़ी बातों से मर्म नही बनता ,
अन सुलझे कामों से कर्म नही बनता ;
संदेह नही तेरी बुद्धिमत्ता पे यार मेरे ,
बड़ा बुद्धिमान ही है बार बार गिरता /

Thursday, 21 May 2009

इश्क के नाम पर------------------------------

अजीब सा उसका मिजाज है ,
मोहबत्त को कहता नमाज है ।

इश्क के नाम पर खफा हैं लोग यंहा
मेरे आस-पास यह कैसा समाज है ।

भाती है,मगर मीठी आंच है यह,
इस प्यार का यही अंदाज है ।

बदन तक तो ठीक है लेकिन,
हमारे आचरण पर भी लिबाज है ।

वो चुप है,मगर कमजोर नही है,
उसे शायद आप का लिहाज है ।

Wednesday, 20 May 2009

पास तुम नही तुम्हारी यादें है -------------------------

पास तुम नही तुम्हारी यादें हैं
यंही-कंही बिखरे तेरे वादे हैं ।

सभी रिश्ते बढ़ा रहे हैं मुझसे ,
जाने कैसी बिछा रहे बिसादे हैं ।

जब से तुम्हे चाहने लगा हूँ मै,
ajeeb say uth rehay iraadey hain .

meri apni koi ichha hi nahi ,
hum to shatranj kay maamooli pyaade hain .

unhay sab kuchh mila hai bana-banaya,
jo kahlaatay duniya may sahjaade hai .

Monday, 18 May 2009

अभी तो सपना सजाया है ;

अभी तो सपना सजाया है ;
अभी ही तुने रुलाया है ;
अभी तो आखें चमकी , अभी तो सांसे बहकी ;
अभी ही अँधेरा छाया, अभी ही तेरे घर से निकला कोई साया ;
अभी तो तु खुल के खिलखिलाया है ,
अभी ही तुने मेरा सपना बिखराया है ;
कदम की लडखडाहट,
तेरे जाने की आहट;
गलें की तल्खियाँ मिटाने दे ;
भावनावों को सिमट जाने दे /
अभी तो सपना सजाया है ;
अभी ही तुने रुलाया है ;

Sunday, 17 May 2009

love you the way you are

love you the way you are ;
in spite of our quarrels and wordily wars ;
the betrayal of emotions ; feeling of loves erosion's ;
the hurt of losing you ;the joy of holding you ;
the times you were not with me ;
the beautiful moments you shared with me ;
in life's ups and down ;
you hold your own;
love you the way you are ;
in spite of our quarrels and wordily wars.

Saturday, 16 May 2009

The election and its verdict

The no. of seats congress [200+] is a big surprise for every one even for die hard congress followers.Where did BJP and other parties went wrong ?
I have my view on this .
There are no of factors which can be attributed for this success of congress. The acceptance of Mr. Manmohan singh as able administrator , his clean image and the toughness shown on Nuclear issue has very vital role in it.The biggest blunder BJP made was targeting of Mr. Manmohan singh as weak Prime minister And personal attack on him by BJP .
And then the rise of Mr. Rahul Gandhi as youth leader and his master stroke of Going solo in U.P. and Bihar .There were many regional issues like MNS in Maharashtra Tamil issue and many other factors .
But one of the major trend is also to go for a government which is pro growth that's a welcome change . Other important thing is rise of national parties or other word leaning of people towards a two national parties Congress and BJP. In-spite of setbacks BJP has done well in no of states .

Friday, 15 May 2009

पपीहे की तरह चाँद ताकता मै रहा ,

पपीहे की तरह चाँद ताकता मै रहा ,
अँधेरी गुफा में आसमान ताकता मै रहा /
नखलिस्तान की ओर तेजी से मै दौड़ा ,
मृगतृष्णा थी ,पानी तलाशता मै रहा /

लोग कहते हैं ,उसकी आखों में समुंदर सी गहराई है ;
मै समुन्दर में दिल का रास्ता तलाशता रह गया /
बाँहों में फिर भी भर लेता उसको ऐ यारों ;
मै सामने खड़े बुत में ,जीवन का स्पंदन तलाशता रह गया /

Thursday, 14 May 2009

निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में ;

निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में ;
कुछ उनके साथ थे ,कुछ और की तलाश थी /
उन मदमस्त हवावों में ,कोहरों के साये में ;
महफिलों में ,जानी अनजानी बाँहों में ;
गा रहे थे पार्टियों में , घूम रहे थे अलमस्त भावों में ;
महफिलों का दौर था , कितने ही रंगों से सराबोर था ;
महक आती थी बातों से ,इठलाती थी शरमा के गालों से ;
खुसबू थी उसके बालों में , वो खुश थी स्वच्छंदता की राहों में /
हम भज रहे थे भगवान को ,तलाश रहे थे स्वयं में इनसान को ;
हाँ लोंगों की भीड़ थी , पर तन्हाई कितनी अभिस्ट थी ;
अपने में खोये थे ,पथरीली चट्टानों पे सोये थे ;
अपने को समेटे हुए , सत की तलाश में रमते हुए ;
भावों को सरलता की चाह दी , मन को भक्ति का भाव दी ;
उन्हें स्वच्छंदता की दरकार थी , कुछ और की तलाश थी /
वो खुश है की महफिलों की जान हैं ;
mai khush हूँ मुजमे एक सरल इन्सान है ;
उनकी भक्ति भी एक विलाश है ;
मेरे लिए भोग भी भक्ति प्रसाद है /
निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में /

Tuesday, 12 May 2009

अमरकांत के साथ अन्याय क्यो ?

नई कहानी आन्दोलन से अपनी लेखन यात्रा शुरू करने वाले कथाकार अमरकांत आज भी एक सच्चे साधक और तपस्वीय की तरह अपनी साहित्य यात्रा जारी रखे हुए हैं । तमाम शारीरिक और आर्थिक परेशानियों के बाद भी । अमरकांत नई कहानी आन्दोलन से लिखना जरूर प्रारम्भ करते हैं लेकिन उनके साहित्यिक मूल्यांकन के लिये उन्हे नई कहानी आन्दोलन की परिधि मे बाँधना तर्क सांगत नही है ।
१ जुलाई १९२५ को बलिया मे जन्मे अमरकांत की पहली कहानी १९५३ के आस-पास कल्पना नामक पत्रिका मे छपी । इस कहानी का नाम था -इंटरव्यू । अमरकांत की जो कहानिया बहुत अधिक चर्चित हुई ,उनमे निम्नलिखित कहानियों के नाम लिये जा सकते हैं-

  1. जिंदगी और जोंक
  2. डिप्टी कलेक्टरी
  3. चाँद
  4. बीच की जमीन
  5. हत्यारे
  6. हंगामा
  7. जांच और बच्चे
  8. एक निर्णायक पत्र
  9. गले की जंजीर
  10. मूस
  11. नौकर
  12. बहादुर
  13. लड़की और आदर्श
  14. दोपहर का भोजन
  15. बस्ती
  16. लाखो
  17. हार
  18. मछुआ
  19. मकान
  20. असमर्थ हिलता हाँथ
  21. संत तुलसीदास और सोलहवां साल

इसी तरह अमरकांत के द्वारा लिखे गये उपन्यास निम्नलिखित हैंपत्ता

  1. कटीली राह के फूल
  2. बीच की दीवार
  3. सुखजीवी
  4. काले उजले दिन
  5. आकाश पछी
  6. सुरंग
  7. बिदा की रात
  8. सुन्नर पांडे की पतोह
  9. इन्ही हथियारों से
  10. ग्राम सेविका
  11. सूखा पत्ता
  12. इस तरह करीब १२० से अधिक कहानिया और १२ के करीब उपन्यास अमरकांत के प्रकाशित हो चुके हैं । लेकिन दुःख होता है की इतने बडे कथाकार को हिन्दी साहित्य मे वह स्थान नही मिला जो उन्हे मिलना चाहिये था । आलोचक प्रायः उनके प्रति उदासीन ही रहे हैं । ऐसे मे अब यह जरूरी है की अमरकांत का मूल्यांकन नए ढंग से किया जाए ।

अभिव्यक्ति की विवेचनाएँ

अभिव्यक्ति की विवेचनाएँ --------- साहित्य
सन्दर्भ की व्याख्याएं --------- समाचार पत्र
हितों का विरोधाभास --------- समाज
सत्य का मिथ्याभास --------- सामाजिकता
व्यक्ति की असमर्थतायें --------- वासनाएं
समाज की विवसतायें --------- भ्रस्टाचार
देश की गतिशीलता --------- चमत्कार
स्वार्थ का हितोपदेश --------- राजनीति
patan ki पराकास्ठा --------- राजनेता
सच्चाई की अनुभूति --------- सपना
सच्चाई की जीत --------- माँ की प्रीती

Monday, 11 May 2009

कुछ के गुजर

कुछ कर गुजर ,

कुछ ऐसा कर ;

सबको नाज हो तुझपे /

डूबते का किनारा बन

भटकते का सहारा बन ,

मरते की साँस बन ;

अपनो की आस बन ;

कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

संत की तलाश बन ,

भक्ति का ज्ञान बन;

ज्ञानी का ध्यान बन ,

सांसारिक का मन बन ;

कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

किसी का स्नेह है तू ,

किसी का ध्येय है तू ;

किसी का दुलार है तू ,

किसी का प्यार है तू ;

किसी का भाग्य है तू,

किसी का अधिकार है तू ;

उठ हिम्मत बाँध ,

टूटे किनारे संभाल ;

साथ बन , विस्वास बन ;

कर ले अपने बस में मन ;

कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

Sunday, 10 May 2009

पूर्वग्रह पत्रिका का प्रकाशन पुनः प्रारम्भ ----------------------

पूर्वग्रह त्रैमासिक पत्रिका की पहचान एक गंभीर सृजनात्मक विमर्श की पत्रिका के रूप मे रही है । भाषा-शिल्प के आभिजात्य पर पत्रिका का आग्रह नही है । यह पत्रिका हर तरह के प्रवाद से बचती रही है । इधर काफ़ी दिनों तक इसका प्रकाशन बंद हो गया था । लेकिन आप लोगो को बताते हुए खुशी हो रही है की इसका १२४ अंक आ गया है ।
प्रभाकर शोत्रिय जी के सम्पादन मे यह भारतीय भवन ,भोपाल से निकल रही है ।

Saturday, 9 May 2009

हमसफ़र कौन है ,कैसे कहे आज हम ?

हमसफ़र कौन है, कैसे कहें आज हम ?
hamsafar kaun है, kaise kahen aaj hum ;
रास्तों में भटके हुए हैं, मंजिल की तलाश है /
raston me bahatke huye hain; manjil ki talsh hai /
साथ तेरा सुखमय है , बात तेरी प्रियकर है ;
sath tera sukhmay hai ,bat teri priykar hai ;
कैसे कहें तू है वो हमसफ़र ,जिसकी मुझे तलाश है;
kaise kahen tu hai wo हमसफ़र, jisaki muje talash hai /
मेरी अनिभिज्ञता पे नाराज न हो ;
meri anibhigyta pe naraj na ho ;
पर रास्ते में ही मंजिल का हिसाब ना हो ;
par पर raste रास्ते me hi manjil ka hisab na ho ;
वाकये कितने अभी टकराने हैं ;
wakaye kitane anjane abhi takarane hai;
राहों में अभी फैसलों के वक्त आने हैं ;
rahon me abhi faisalon ke waqt aane hai;
दुविधाएं अभी कहाँ आई ?
duvidhayen abhi kahan aayi ?
जिंदगी की भूलभुलैया कहाँ छाई ?
jindagi ki bhulbuliya kahan chayi?
रिश्तों में गहराईयाँ अभी आनी है;
riston में गहराईयाँ aani hai ?
वो इक समुंदर है ,या बारिश का फैला हुआ पानी है ?
wo ek samunder hai ya barish ka faila huwa पानी hai है ?
कैसे कहें हमसफ़र मिल गया ?
रास्ते में उलझे हैं ;
rasten me ulaje hai ,
मंजिल की तलाश जारी है /
manjil ki talash jari hai /

Friday, 8 May 2009

गुजरा ज़माना , आज का फ़साना /

गुजरा जमाना ,


आज का फ़साना ;


अनकही बातें ,


अधूरे जजबात ,


और वो रात /


अरमानो का मौसम ,


बाहों की जकडन ,


जलता तन ;


बहकता मन ,


सतत प्यास ,


वो भावों का कयास ;


महकी सांसों का बंधन ,


तन से खिलता तन ;


क्या सच क्या सपना ;


रास्ता देखती आखें ,


आखों से आखों की बातें ;


सुबह का इंतजार करती रातें ;


स्पर्श से आल्हादित दिन ,


सामने पाके हर्षित मन ;

प्यार बरसते नयन ,

भावनावों की मदहोशी ;

उसपे तेरी हंसी ,

क्या सच , क्या सपना ;

क्या भाग्य क्या विडम्बना ,

क्या तू है मेरा अपना /


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