Tuesday, 14 November 2023

जो क़िस्मत मेहरबान थी

 जो क़िस्मत मेहरबान थी वह रूठ गई

गोया आखरी उम्मीद हांथ से छूट गई।


मैं जिसे जिंदगी समझ बैठा था अपनी 

वो ख़्वाब थी जो नींद के साथ टूट गई।


सच कहूं तो बात बस इतनी सी थी कि 

मिट्टी बड़ी कच्ची थी सो गागर फूट गई।


हां उसे देखा था बस एक नज़र भरकर 

और वह एक नज़र से सबकुछ लूट गई ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा 


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