अपने सनम को जब कहूं तो खुदा कहूं
अब इससे भी ज्यादा कहूं तो क्या कहूं ।
हैरानी नहीं है कोई भी जो अकेला हूं मैं
आवारगी आदत रही किसे बेवफ़ा कहूं ।
वो एक प्यासी उम्र थी जो अब बीत गई
तो अब क्यों किसी से वही किस्सा कहूं ।
कुछ टूटे सपने दिल के दराजों में बंद हैं
बेमतलब सी बात तो है लेकिन क्या कहूं ।
सुना है वो मेरे बिना बड़ी खुश रहती हैं
वैसे सुनी सुनाई बातों पर क्या बयां कहूं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
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