Sunday, 19 November 2023

तुझे भुलाने की कोशिश में

 तुझे भुलाने की कोशिश में सब याद रह गया

तु मुझमें मुझसे ज्यादा जाने के बाद रह गया।


उसके बिना इश्क का रोज़ा छूटे तो कैसे छूटे 

जाने किस छत मेरी हसरतों का चाँद रह गया।


मोहब्बत करें और बड़े इत्मीनान से रहा करें

अब इस जहां में कौन ऐसा दिलशाद रह गया।


चुप्पियों के टूटते ही कायर कोई भी बचा नहीं 

फिर सामने तो आग में तपा फौलाद रह गया।


बूढ़े मां बाप की आखों से टपकता लहू देख 

वो खुश था बहुत जो कि बे औलाद रह गया।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा


 



Saturday, 18 November 2023

हर मुलाकात के बाद

 हर मुलाकात के बाद कुछ न कुछ अधूरा रह गया

तेरे साथ वाला वो मौसम मेरे अंदर ठहरा रह गया।


जिसे लूटना था उसे तेरी एक नजर ने लूट लिया 

इश्क में नाकाम सा जमाने भर का पहरा रह गया।


हरसिंगार झरता रहा पूरी रात चांदनी को पीते हुए

ओस से लिपटकर वह सुबह तक बिखरा रह गया।


तुम्हारे बाद के किस्से में तो गहरी उदासी छाई रही

उन यादों का शुक्रिया कि जीने का आसरा रह गया।


ये सुना था मैंने भी कि वक्त हर ज़ख़्म भर देता है 

पर इश्क का घाव ताउम्र हरा और गहरा रह गया।


यूं तो मंज़र कई सुहाने मिलते रहे मौसम बेमौसम

पर मेरी नजर में तो बसा हुआ तेरा चेहरा रह गया। 


रोशनी के साथ तो कितना शोर शराबा आ जाता है

गुमनाम जद्दोजहद के साथ तो बस अंधेरा रह गया।


आवारगी में लिपटी हुई रंगीन रातों के किस्से सुनके 

बस अपने पांव पटकता सलीकेदार सवेरा रह गया।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा 






Wednesday, 15 November 2023

जिसपर गिरी है गाज वो यूक्रेन और गाजा है।


 कौन जाने किसे किसकी मिल रही सज़ा है

जिसपर गिरी है गाज वो यूक्रेन और गाजा है।


इन सियासत के सितमगरों से पूछे तो कोई 

बारूद के बवंडरवाली ये कौन सी फिज़ा है।


शहर के शहर खंडहर बनानेवालों बता दो

क्या सच में तुम्हें ज़रा भी खौफ ए कजा है।


मिसाइल से भला कब हल हुए हैं मसाइल

हजारों कत्ल हो जाएं यह किसकी रजा है।


तेल और हथियारों की सौदागिरी के वास्ते

इंसानियत का हो कत्ल इसमें कैसी मज़ा है।


   डॉ मनीष कुमार मिश्रा 








Tuesday, 14 November 2023

ढलती शाम के साथ

 ढलती शाम के साथ चांदनी बिखर जाती है

वही एक तेरी सूरत आंखों में निखर जाती है।


तू कब था मेरा यह सवाल तो बेफिजूल सा है 

तेरे नाम पर आज भी तबियत बहक जाती है।


बस यही सोच तेरी चाहत को संभाले रखा है

कि हर दीवार एक न एक दिन दरक जाती है।


तुम्हें सोचता हूं तो एक कमाल हो ही जाता है

जिंदगी की सूखी स्याही इत्र सी महक जाती है।


वैसे तो मैं आदमी हूं एकदम खानदानी लेकिन

तेरी सूरत पर मासूम तबियत फिसल जाती है।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

जो क़िस्मत मेहरबान थी

 जो क़िस्मत मेहरबान थी वह रूठ गई

गोया आखरी उम्मीद हांथ से छूट गई।


मैं जिसे जिंदगी समझ बैठा था अपनी 

वो ख़्वाब थी जो नींद के साथ टूट गई।


सच कहूं तो बात बस इतनी सी थी कि 

मिट्टी बड़ी कच्ची थी सो गागर फूट गई।


हां उसे देखा था बस एक नज़र भरकर 

और वह एक नज़र से सबकुछ लूट गई ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा 


अपने सनम को जब कहूं तो खुदा कहूं

 अपने सनम को जब कहूं तो खुदा कहूं 

अब इससे भी ज्यादा कहूं तो क्या कहूं ।


हैरानी नहीं है कोई भी जो अकेला हूं मैं

आवारगी आदत रही किसे बेवफ़ा कहूं ।


वो एक प्यासी उम्र थी जो अब बीत गई

तो अब क्यों किसी से वही किस्सा कहूं ।


कुछ टूटे सपने दिल के दराजों में बंद हैं

बेमतलब सी बात तो है लेकिन क्या कहूं ।


सुना है वो मेरे बिना बड़ी खुश रहती हैं 

वैसे सुनी सुनाई बातों पर क्या बयां कहूं ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा 



तुम क्या हो कि दर्द से एक रिश्ता पुराना

 तुम क्या हो कि दर्द से एक रिश्ता पुराना 

मैं क्या कि भूला हुआ कोई किस्सा पुराना ।


नए जमाने की चाल ढाल बेहद नई ठहरी 

पर मुझे अजीज़ है जाने क्यों रास्ता पुराना ।


कई बार सोचा कि फिर से मुलाकात करें 

पर याद आ गया तुम्हारा वो गुस्सा पुराना ।


सब के लिए नया नया कुछ तलाशता रहा 

अपने लिए तो ठीक रहा कुछ सस्ता पुराना ।


उम्र के साथ चेहरे की रंगत भी जाती रही 

जाने कहां खो गया वो चेहरा हंसता पुराना ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

चलते चलते जब एक रोज थक जाऊंगा

 चलते चलते जब एक रोज थक जाऊंगा 

उजाले बांटकर धीरे से कहीं ढल जाऊंगा।


होना तो हम सभी के साथ यही होना है

कि कोई आज चला गया मैं कल जाऊंगा।


माना कि बहुत सारी खामियां हैं मुझ में

पर किसी खोटे सिक्के सा चल जाऊंगा।


मौत की आशिकी से इनकार कब किया

जिंदगी जितना छल सकूंगा छल जाऊंगा।


ये बाजार बहलाता फुसलाता है कुछ ऐसे

गोया मासूम सा बच्चा हूं कि बहल जाऊंगा।

    डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

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