Monday, 19 December 2011

साझा


     साझा

मैंने उस दिन ऐसे ही कहा कि-

तुम बड़ी चालाक हो,

सब के साथ कोई न कोई रिश्ता बना कर रखती हो .

इस पर उसने फिर कहा –

तुम्हारे साथ कौन सा रिश्ता है ?

मैंने कहा –

 प्यार, विश्वास और दोस्ती का ।

उसने कहा -

  प्यार मैं तुम्हें करती नहीं

विश्वास तुम मेरा तोड़ चुके हो

और जिस पर विश्वास न हो, वह दोस्त कैसा ?

उसकी बातें कड़वी थी, पर सच्ची थी ।

मेरी खामोशी ने उसे पिघलाया और वह बोली –

मेरा तुम्हारे साथ अतीत का रिश्ता है,

जो वर्तमान मे अपनी पहचान खो चुका है

लेकिन मेरा वर्तमान और भविष्य ,

मेरे अतीत से बेहतर नहीं है

 और हो भी जाए तब भी ,

 अतीत की बातें मैं भूल नहीं सकती

क्योंकि मैं  

 सब के साथ कोई न कोई रिश्ता बना कर रखती हूँ ।

इतना कहकर वो मुस्कुराने लगी ।

मन ही मन मुझे गुदगुदाने लगी ।


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