Monday, 5 December 2011

बड़ी शिद्दत से बैठा वो ताकता रहा

बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा  ,

अपने  बच्चों  द्वारा  मात पिता  की  बेइज्जती   बैठा  सराहता  रहा  ,
बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा

शायद  वो  लफ्ज  उसके  थे
 मुंख   से  बच्चों  के  निकले  थे ,
  भाव  उसके  मन  के  उसके  बच्चों  ने  कहे  थे  ,

चुपचाप  बैठा  वो  ताकता  रहा  .
 उम्र  दराज  पिता  से  हो  रही  बद्दतमीजी को  निहारता  रहा  ,
 बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा


पिता  के  चंद बसंत  ही  बचे  हो  ,
अब क्या लेने जैसा जो बचा हो , 
और  कुछ  दे  सके  उन  बुड्ढी  हड्डियों  में  दम  कहा ,
बच्चों  संग  अभी  बरसों  पड़े  है ,
 इस  स्वार्थ  में  खुद  को  पाता  रहा  ,
बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा

अब  मन  उसका  उसको  कुरेद  रहा  ,
भावो  तले  अपनी  कायरता  समेट  रहा  ,
दोष  को   औरों  के माथे पे  फोड़  रहा  ,
शायद  अपना  भविष्य  देख  रहा  ,

 बच्चों  से  क्या  वो  उम्मीद  रखे  ,
रह  जिस  पे  आज उन्हें  टोका  नहीं ,कल  उसपे  नहीं  आएगी  कैसे  ये  तस्दीक  रखे  ,

अपनी  कायरता  से  अब  वो  क्या  उम्मीद  रखे .
लफ्जों  की  जौदुगरी  से  खुद  को अपनी  नज़रों  में  निचे  गिरने  से  कैसे  दूर  रखे  ,
अब  कैसे  वो  अपने  चहरे  पे  अपनी अच्छाई का  झूठ  रखे .

बड़ी  शिद्दत  से   बैठा  वो  ताकता  रहा  था  ,
अपनी  ही  जड़  को  अपने  हाथों   काटता  रहा  था  .
बड़ी  शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा  था  /

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers

  Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...