Tuesday, 13 December 2011

हिंदी ब्लागिंग पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



  एक रिपोर्ट- अनीता कुमार 

के एम अग्रवाल कला, वाणिज्य एवम विज्ञान महाविधालय, कल्याण(प) के हिंदी विभाग ने विश्वविधालय अनुदान के सहयोग से 9-10 दिसबर 2011 को द्वि दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया .
उद्घाटन सत्र सुबह 10.30 बजे शुरु हुआ। उदघाटन सत्र की अध्यक्षता अग्रवाल महाविधालय के अध्यक्ष  डा आर बी सिंह को करनी थी पर किन्हीं कारणों से वो उस सत्र में आ नहीं पाये तो अध्यक्ष का पदभार संभाला महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ.दामोदर खडसे जी ने.  हिंदी भाषी जनकल्याण शिक्षण संस्था  के सचिव श्री विजय नारायण पंडित जी उद्घाटन कर्ता थे. । मुख्य अतिथि थीं लखनऊ से आयीं उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की पूर्व अध्यक्ष डा विधाबिंदु सिंह। हिंदी विभाग, मुंबई विधापीठ के पूर्व अध्यक्ष और नवभारत टाइम्स, मुंबई के मुख्य उपसंपादक श्री राजमणि त्रिपाठी जी विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन थे। हिंदी जगत के जाने माने और सर्वप्रिय वरिष्ठ ब्लोगर श्री रवि रतलामी जी बीज वकतव्य देने के लिए खास भोपाल( मध्य प्रदेश)से आये थे। मनीष कुमार मिश्र ,जो इस संगोष्ठी के मेरुदंड थे,की प्रस्ताविकी से उदघाटन समारोह प्रारंभ हुआ। प्रस्ताविकी देते हुए मनीष ने बताया कि कैसे ब्लोगिंग पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोअजित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। मनीष खुद के एम महाविधालय में हिंदी विभाग में अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं और साथ ही साथ एक ब्लोगर भी हैं। इस लिए उन का मन था कि इस संगोष्ठी में ब्लोगर और हिंदी अध्यापक दोनों ही एक साथ एकत्र हों और ब्लोगिंग के स्वरुप, व्याप्ति और संभावनाओं पर चर्चा करें। इन दोनों श्रेणियों के बीच उन्हें एक सेतु का काम करना था। उन्हें पता चला कि ब्लोगिंग पर ही दो साल पहले अलहाबाद में श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी एक संगोष्ठी का आयोजन कर चुके हैं तो उन्हों ने उन से संपर्क किया। श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी व कुछ अन्य प्रख्यात ब्लोगरों ने सहर्ष इस संगोष्ठी के आयोजन के लिए उन्हें अपना मार्गदर्शन दिया। इस प्रकार मनीष जी ने एक बाधा पार की। दूसरी चुनौती उनके सामने उभरी विश्वविधालय अनुदान आयोग से आर्थिक सहायता पाने की। विश्वविधालय अनुदान आयोग के सामने इसके पहले कभी इस विषय पर कोई प्रस्ताव नहीं आया था। मनीष जी के प्रस्ताव ने आयोग की संचालन समिति को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और ब्लोगिंग को शैक्षणिक परिसर का अंग मानते हुए इस संगोष्ठी के लिए अनुदान दिया गया। इसी संदर्भ में मनीष जी ने एक रोचक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि दिल्ली इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्स्टी में  कार्यरत एक अध्यापक अनिल अत्रे जी ने ब्लोगिंग पर शोधकार्य करने के लिए यू जी सी को एक प्रस्ताव भेजा था जो अस्वीकार कर दिया गया था ये कह कर कि ब्लोगिंग शैक्षणिक शोध की परिधी में नहीं आता, लेकिन मनीष जी के संगोष्ठी के प्रस्ताव के बाद श्री अनिल अत्रे जी का प्रस्ताव भी स्वीकार कर लिया गया। सुन कर अच्छा लगा कि ब्लोगिंग को अब शैक्षणिक संस्थान भी गंभीरता से देखने लगे हैं।

 K M AGRAWAL COLLEGE, KALYAN (W) 09 DEC.2011









































































 के एम अग्रवाल महाविधालय की प्रचार्या डा (श्रीमति) अनिता मन्ना जी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि इस संगोष्ठी के आयोजन पर जहां एक तरफ़ हर्षित और गौरवान्वित महसूस कर रही हैं वहीं वो महाविधालय की प्रबंधन समिति से मिले पूर्ण सहयोग के लिए कृतज्ञ भी हैं।महाविधालय का परिचय देते हुए उन्हों ने बताया कि ये महाविधालय कुछ साल पहले ही 1994 में स्थापित किया गया क्युं कि बम्बई के कल्याण जैसे उपनगर में सिर्फ़ एक ही महाविधालय और है जो हिंदी भाषियों द्वारा संचालित है और कल्याण की जनसंख्या को देखते हुए वो काफ़ी नहीं था। इतने छोटे से समय में भी महाविधालय ने बहुत तेजी से प्रगति की है और आज नाना प्रकार के, पूर्वस्नातक और स्नातकोत्तरसरकारी सहायता प्राप्त और सरकार मान्य पर बिना सहायता प्राप्त पाठयक्रम पढ़ाये जा रहे हैं। डा मन्ना से संतोष प्रकट करते हुए बताया कि इस संगोष्ठी में भारत के केंद्रीकरण राज्यों से ब्लोगर पधारे हैं और कुछ ब्लोगर विदेशों से भी आये हैं। इतना ही नहीं ये पहली बार है कि इसी संगोष्ठी के उदघाटन समारोह में ही ब्लोगिंग पर एक किताब का लोकार्पण भी हो रहा है। ये ब्लोगिंग पर लिखी तीसरी किताब है और अग्रवाल महाविधालय ने ही इसे प्रकाशित किया है। 
महाविधालय की प्रबंधक समिति के संयुक्त सचिव श्री ओमप्रकाश मुन्ना पांडे जी मंच पर उपस्थित थे और जान कर बहुत अच्छा लगा कि वो बतकही नाम से अपना ब्लोग चलाते हैं । मन में आया कि जब प्रबंधक समिति में ही ब्लोगर मौजूद हैं तो संगोष्ठी को हर प्रकार का सहयोग मिलना लाजमी है। इधर सब विशिष्ठ सुधिजनों का सम्मान समारोह चल रहा था और सभाग्रह के दूसरे कोने में बैठे शैलेष भारतवासी लाइव वेबकास्टिंग की कमान संभाले हुए थे। पूरा सेमीनार जिस लिंक पर देखा जा सकता था वह है -http://www.ustream.tv/channel/kalyan-ब्लोग्कास्त



श्री रवि रतलामी जी, श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी, श्री रवींद्र प्रभात जी , श्री अविनाश वाचस्पति जी, श्री अशोक मिश्रा जी, श्री हरीश अरोड़ा जी, श्री पवन अग्रवाल जी, श्री शैलेष भारतवासी जी को 'हिंदी ब्लोग भूषण' के खिताब से नवाजा गया।

रवि रतलामी जी ने अपने बीज वकतव्य में ब्लोग को आजाद अभिव्यक्ति का नया आयाम बताया। संगोष्ठी के एक दिन पहले कपिल सिब्बल के सोशल मीडिया पर सेंसर लगाने वाले विवाद का जिक्र करते हुए उन्हों ने कहा कि सरकार की इंटरनेट जैसे माध्यम पर सेंसर लाने की कौशिश मूर्खतापूर्ण है और इस बात को दर्शाती है कि सरकार में बैठे निर्णयनायकगण इस माध्यम के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं। इंटरनेट ने संप्रेशण के तरिकों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। किताबें पुरानी होने पर शायद उपलब्ध न हों पर इंटरनेट पर जो सामग्री डाल दी जाती है वो हमेशा के लिए अंकित हो जाती है और मिटाने की कौशिश करने पर भी कहीं न कहीं मिल ही जाती है।
दो क्रांतिकारी घटनाओं ने हिंदी के प्रचार और प्रसार में मील के पत्थर का काम किया है- इंटरनेट और यूनीकोड का अविश्कार्। यूनीकोड का फ़ायदा अब 300 भाषाएं उठा रही हैं और उसके द्वारा 60 भाषाओं का अनुवाद करना संभव हो सका है।
हिंदी ब्लोगिंग के इतिहास के बारे में बताते हुए उन्हों ने बताया कि श्री विनय जैन ने अपने अंग्रेजी चिठ्ठे में पहली हिंदी पोस्ट 19ओक्टोबर 2002 में की थी और 21एप्रिल 2003 को श्री आलोक कुमार जी ने 'नौ दो ग्यारह:9211' नाम से अपना पहला हिन्दी चिठ्ठा बनाया था।  
इसके साथ ही रवि जी ने ब्लोगिंग के कई फ़ायदे और नुकसान, ब्लोग पर क्या क्या किया जा सकता है, कितने प्रकार के चिठ्ठे चल रहे हैं, किन चिठ्ठों पर आप अपने प्रश्न पूछ सकते हैं और तुंरत जवाब पा सकते हैं,कौन कौन से पुरुस्कार ब्लोगजगत में उपलब्ध है, इन सब की विस्तृत जानकारी दी। उन्हों ने इस विश्वास के साथ अपना वकतव्य समाप्त किया कि आने वाले समय में बहुत जल्द भारत में सभी हिंदी भाषी ब्लोगर होगें या दूसरों के ब्लोग पढ़ रहे होगें
सत्र के अध्यक्ष श्री विजय पंडित जी, जो प्रबंधन समिति के मुख्य सचिव और खुद भी एक बहुत अच्छे लेखक हैं, ने अपने भाषण में आये हुए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बड़े मार्मिक ढंग से कहा
"निगाहें मंतजिर रहती थीं जिसके आने पर
शमा वो दिखायी अल्लाह ने भगवान ने
तकलीफ़ तो हुई होगी आप को आने में
पर ईज्जत बढ़ गयी हमारी आप के आने से

अब बताइये इतने प्यार से और सम्मान से कोई मेहमाननवाजी करेगा तो क्या बार बार जाने का मन न करेगा हमारा? उन्हों ने कहा कि हमें ब्लोगिंग के नुकसान की तरफ़ ध्यान न दे कर उसके फ़ायदे देखने चाहियें। अगर हिंदी ब्लोगिंग का इतिहास सिर्फ़ सात साल पुराना है और हम उस पर शैक्षणिक तौर पर चर्चा करने जमा हुए हैं जिसमें दस प्रसिद्ध हिंदी ब्लोगर भी शामिल हैं तो ब्लोगिंग का भविष्य बहुत उज्जवल है। उन्हों ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि ब्लोगिंग को देश की बेहतरी के लिए काम करना होगा, तभी इसकी सार्थकता सिद्ध होगी।

राम जी तिवारी जी ने अपने वकत्व्य में इस बात पर जोर दिया कि ब्लोगिंग हिंदी साहित्य में एक नया आयाम जोड़ेगी लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि ब्लोगिंग सिर्फ़ एक साधन है और किसी भी साधन का उपयोग तभी सार्थक होता है जब उसके पीछे विवेक हो, साधन महत्त्वपूर्ण नहीं है उसके पीछे छुपे उद्देश्य महत्तवपूर्ण है। उन्हों ने इस बात पर भी जोर दिया कि हिंदी के अध्यापक नयी तकनीकी की उपेक्षा नहीं कर सकते नहीं तो जाहिल कहलायेगें। हमें इस नयी तकनीक में खुद भी माहिर होना है और इसे अपनी अपनी कक्षाओं में अपने छात्रों तक भी ले जाना है।ब्लोग जनतंत्र को बरकरार रखने के लिए जरूरी है। पश्चमी देशों में शिक्षक चॉक और ब्लैक बोर्ड का इस्तेमाल नहीं करते सब काम लेपटॉप पर होता है, इस तरह शिक्षक को एक क्षण के लिए भी छात्रों को अपनी पीठ नहीं दिखानी पड़ती। उन्हों ने सभी आये अध्यापकों से अनुरोध किया कि वो भी अपने अपने विधालय में ब्लोगिंग पर चर्चा सत्र का आयोजन करें।
राजमणि त्रिपाठी जी ने कुछ कुछ वही बात कहते हुए कहा कि ब्लोग लेखन समाज को दिशा दे, भड़काऊ न हों ब्लोग पर लिखने के लिए किसी संपादक की चापलूसी नहीं करनी पड़ती, पर इस नयी स्वतंत्रता के साथ साथ अपनी जिम्मेदारियों का भी ख्याल रखें। कुछ ऐसा लिखें जिससे नयी स्फ़ूर्ति, नयी उत्तेजना जाग्रत हो। राजमणी जी पत्रकार होने के साथ साथ खुद भी एक ब्लोगर हैं, उनके ब्लोग का नाम है 'प्रयोग से' इस पर वो ज्यादातर आध्यात्मिक पोस्टें डालते हैं।

श्रीमति विधाबिंदु सिंह जी ने कहा कि उन्हें ब्लोगिंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है और वो यहां एक छात्रा के रूप में आयी हैं। लेकिन उन्हों इस बात पर जोर दिया कि अगर हिंदी को रोजी रोटी के जुगाड़ से जोड़ना है तो इसे नयी तकनीकी विधा के साथ जोड़ना ही होगा

श्री दामोदर खडसे- कार्याध्यक्ष,महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी भी मंच पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्हों ने कहा कि हमारा देश रुढ़ीवादी देश है और हम आसानी से किसी बदलाव को स्वीकार नहीं करते, लेकिन बदलाव तो शाश्वत है और उसे रोका नहीं जा सकता। किसी भी मील के पत्थर पर कोई पीड़ी बैठी नहीं रहती, अगले मील के पत्थर पर चली जाती है। इसी प्रकार नयी पीड़ी ने कंप्युटर को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया है और अगर हम अध्यापक कंप्युटर की दुनिया से अनभिज्ञ रह गये तो पीछे छूट जायेगें। बदलाव का उदाहरण देते हुए उन्हों ने कहा पहले कंप्युटर कक्ष के बाहर लिखा रहता था ' जूते यहां उतारें' और आज जूतों की दुकान में भी कंप्युटर लगे हैं। एक और उदाहरण देते हुए उन्हों ने बताया कि वो जब अपने एक मित्र के घर विदेश गये तो देखा वहां सुबह अखबार नहीं आता। जब उन्हों ने इसके बारे में पूछा तो मित्र ने बताया कि प्रिंट रुप में अखबार मंहगा मिलता है और विदेश में पुराने अखबार को रद्दी में बेचने की सुविधा भी नहीं है और उनके मित्र सभी मनचाहे अखबार अब इंटरनेट पर ही पढ़ लेते हैं। तो इंटरनेट सिर्फ़ संप्रेषण का माध्यम ही नहीं बल्कि पढ़ने का भी माध्यम है। उन्हों ने इस बात का भी जिक्र किया कि यूनीकोड विकसित करने में अशोक चक्रधर और विजय मल्होत्रा का बहुत बड़ा योगदान रहा है और अब सी डेक ने श्रुत लेखन के लिए भी सोफ़्टवेयर तैयार कर दिया है जिस से आप को अगर हिंदी में टंकन करना न आता हो तो भी आप बोल कर कंप्युटर पर टंकन कर सकते हैं। इसके अलावा फ़ोनेटिक कीबोर्ड भी नेत पर उपलब्ध हैं। उन्हों ने मनीष को बधाई दी कि संगोष्ठी में पढ़े जाने वाले प्रपत्र पहले ही किताब रुप में पब्लिश किये जा चुके हैं
प्रथम सत्र में मंचासीन हुए डा आर पी त्रिवेदी-अध्यक्ष, विशेषज्ञ के रुप में ब्लोगर श्री अविनाश वाचस्पति दिल्ली से, ब्लोगर श्री रवीन्द्र प्रभात जी लखनऊ से, विशेष अतिथि के रूप में फ़्रीलांस पत्रकार श्री आलोक भट्टाचार्य जी मुंबई से,डा डी के मिश्रा झांसी से, प्रपत्र वाचक - डा पवन अग्रवाल लखनऊ से, डा शशि मिश्रा,डा संगीता सहजवानी और श्री नरेंद्र नारायण प्रभू मुंबई से।
श्री नरेंद्र प्रभू मराठी में ब्लोगिंग करते हैं। उन्हों ने अपने प्रपत्र में कहा कि मराठी संसार में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 15वें स्थान पर है और मराठी में ब्लोगिंग की शुरुवात यूनीकोड आने के बाद हुई। हिंदी ही की तरह मराठी में भी मराठी ब्लोग्स के एग्रिगेटर हैं जिनमें से मुख्य हैं मराठी सूची, मराठी ब्लोग जगत, नेट्वेट। इसी प्रकार मराठी में भी टेकनॉजी से संबधित ब्लोग हैं, मराठी साहित्य जो प्रिंट रुप में है उसे ब्लोग पर भी डाला जा रहा है जैसे मराठी कथाओं का संग्रह ब्लोग पर डाला गया और उस पर लाखों टिप्पणियां प्राप्त हो रही हैं। युवाओं के लिए कैरियर मार्गदर्शन पर आधारित ब्लोग हैं, कथाकार, नाटककार, कवियों के अलावा कई वैज्ञानिक भी ब्लोगिंग में सक्रिय
हैं। हिंदी ही की भांति मराठी ब्लोगर मीट भी होते हैं, यहां तक कि ब्लोगर मीट साल में दो बार होगें एक पूना में और एक बम्बई में ये पहले से सुनियोजित है। मराठी ब्लोगर महेंद्र कुलकर्णी इस आयोजन में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। मराठी में 3000 से ज्यादा ब्लोगर नियमित रुप से लिख रहे हैं। प्रभू जी ने माना कि ब्लोग टेकनोलोजी का दिया हुआ सबसे अनमोल उपहार है।
श्रीमति संगीता सहजवानी जी बम्बई स्थित नेशनल कॉलेज के हिंदी विभाग की भूतपूर्व अध्यक्षा हैं। उन्हों ने ब्लोग को अंतरराष्ट्रीय चौपाल कहा। उन्हों ने ब्लोग क्या होता है, कितने प्रकार के होते हैं,ब्लोगस बनाने के लिए कौन कौन प्लेटफ़ॉर्म देते हैं और इस व्यवसाय में किस की कितनी बाजार में हिस्सेदारी है ये आकड़े देते हुए उन्हों ने संतोष व्यक्त किया कि हिंदी ब्लोगस बड़े तेजी गति से बड़ रहे हैं। लेकिन फ़िर इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अपने ब्लोग पर पाठक खींचने के लिए किन तरकीबों का इस्तेमाल करना चाहिए। ब्लोग की सदुपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उन्हों ने अंत में कहा ब्लॉग हमें वास्तव में यूनिवर्सल नागरिक बना देता है।

श्रीमति शशि मिश्रा जी ने कहा कि इस संगोष्ठी में प्रपत्र पढ़ने का न्यौता पाने के बाद उन्हों ने जानने की कौशिश की कि ये ब्लोग है किस चिढ़िया का नाम? इस चिढ़िया से आमना सामना करने की लालसा में अंतर्मन के विश्वजाल में घूम आयीं । इस नयी दुनिया में घुसते ही उन्हें ऐसे ऐसे शब्द सुनने को मिले जो उन्हों ने अपने बचपन में सिर्फ़ अपने आंगन में सुने थे और पिछले कई दशकों से वो शब्द उनकी साहित्यिक दुनिया से भी गायब थे। उन्हें लगा कि उनका बचपन लौट आया कई ब्लोगरों के ब्लोग उन्हें बहुत भाये और उन्हों ने विभिन्न ब्लोगरों की कविताओं को उद्धृत किया। उन्हों ने कहा कि ब्लोग की सबसे आकर्षक बात है -उसका सहज होना- टटके अनुभव की टटकी बातें, ताजातरीन स्थितियों की ताजी बयार्। आत्मा को संबोधित करती आत्मीय बातें
कुछ महिला ब्लोगरों के ब्लॉग पर जाना भी उन्हें रोमांचित कर गया जैसे स्वप्न मंजुषा, अदा, रश्मि प्रभा, रचना त्रिपाठी, फ़ौजिया रियाज, वाणी शर्मा,कविता वाचक्नवी, अमरजीत कौर, सुषमा सिंह इत्यादि। जैसे ही उन्हों ने स्त्री की उपेक्षा की चर्चा करते हुए रचना त्रिपाठी जी के ब्लोग से उद्धृत किया हमारे मुंह से बेसाखता निकल गया "अरे शशि जी जिन रचना जी को आप कोट कर रही हैं उनके पति सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी यहां आप के सामने बैठे हुए हैं" एक पल को शशि जी चौंकी, फ़िर सफ़ल वक्ता की पहचान देते हुए सिद्धार्थ जी की मार्फ़त रचना जी को अच्छे लेखन की बधाई भिजवाते हुए अपना प्रपत्र जारी रखा।  
 उन्हों ने कहा कि ज्यादातर महिलाएं 2007 से ब्लोगजगत में सक्रिय हुई हैं । वर्तमान समय में जो महिलाएं अच्छा लिख रही हैं उनके नाम कुछ इस प्रकार लिए- घुघूती वासूती, प्रत्यक्षा, नीलिमा, बेजी, संगीता पुरी, लवली, पल्लवी त्रिवेदी, अदा, सीमा गुप्ता, निशा,स्वप्नदर्शी, अराधना, मीनू खरे,अनीता कुमार, मुक्ति, शमा, इत्यादि। इस बार अपना नाम सुन कर चौंकने की बारी हमारी थी।
ब्लोग के सदगुणों की चर्चा उन्हों ने इन पंक्तियों में की
" ओ मेरी भाषा मैं लौटा हूँ तुम में ,
जब चुप रहते रहते अकड़ने लगती है मेरी जीभ
 और दुखने लगती है मेरी आत्मा
उनका मानना था कि मानवता के विकास की कहानी के मील का पत्थर कोई महत्त्वकांशी ही कर सकता है इस लिए आज का उदघोष होना चाहिए ' जय असंतोष'
और इसी लिए अंत में उन्हों ने कहा 'जुटाया है साहस मैं ने धीरे धीरे, खुल रहे हैं मेरे ब्लोग के पर धीरे धीरे'

डा पवन अग्रवाल रवि रतलामी जी के बहुत बड़े प्रशंसक निकले। उन्हों ने अपने प्रपत्र पढ़ने से पहले कहा कि मेरे लिए बम्बई आने का आकर्षण सिर्फ़ इस लिए था कि मुझे पता चला कि रवि रतलामी जी इस संगोष्ठी में आ रहे हैं, मुझे उनसे बात करने को न भी मिलती और मैं सिर्फ़ उन्हें देख भर पाता तो भी मेरा यहां आना सफ़ल हो जाता। यहां आ कर मुझे न सिर्फ़ रवि जी को देखने का मौका मिला उनसे मिल कर बात करने का मौका भी मिला। मेरे बगल में बैठे रवि जी मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। पवन जी ने अपनी बात शुरु करते हुए कहा कि वो कंप्युटर का इस्तेमाल 1996 से कर रहे हैं जब 256 वर्शन मिला करता था और पेंटियम का कहीं अता पता भी नहीं था। 2002 में उन्हों ने नेट पर  बिखरे हिंदी साहित्य को ढूंढना शुरु किया और तभी उन्हें ब्लोगिंग के बारे में पता चला। एक और शख्सियत जिसे वो उसी रवि रतलामी जी की श्रेणी में खड़ा पाते हैं वो हैं पूर्णिमा बर्मन्। उन्हों ने सही कहा ब्लॉग का चस्का चाय और अखबार से कम नहीं होता। शुरुवात में ब्लोग को पत्रकारिता के विकल्प के रूप में देखा जाता था लेकिन अब ब्लॉग सूचना से साहित्य तक पहुंच गया है। उन्हें इस बात का दुख है कि कुछ लोग समझते हैं कि ब्लोग पर लिखा जाने वाला साहित्य न हो कर कूड़ा करकट है। उदाहरण के रुप में हिन्दयुग्म पर होने वाले वार्षिक उत्सव का जिक्र करते हुए उन्हों ने बताया कि कैसे 2008  के ऐसे ही एक उत्सव में राजेंद्र यादव जी की एक टिप्पणी उन्हें तीर की तरह चुभी थी और उसकी चुभन उन्हें आज भी तकलीफ़ पहुंचाती है। राजेंद्र यादव जी ने कहा था'अयोग्य लेखक हंस जैसी पत्रिका के संपादक के कान खाना बंद करेगा और इस कूड़े को अपने ब्लोग पर चैप देगा"
पवन जी ने कहा कि अगर लोग किसी उद्देश्य को ले कर ब्लोगिंग करेगें तो लोगों को ऐसा कहने का मौका नहीं मिलेगा। ब्लोगिंग के कुछ मकसद हो सकते हैं - दस्तावेजीकरण, सहयोग करना, कोई आंदोलन चलाना, इत्यादि। ब्लोग व्यक्तिगत रूप से लिखा जा सकता है या किसी समूह के रूप में। उदाहरण के रुप में उन्हों ने कई ऐसे ब्लोगों के नाम लिए जो समूह के रुप में चलाये जा रहे हैं और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।
डा बलजीत श्रीवास्तव का मानना है कि हिंदी को विश्व की भाषा के रुप में स्थापित करने में इंटरनेट और खास कर ब्लोगिंग का बहुत बड़ा हाथ है। इस कार्य में सरकार भी सहायता कर रही है। बहुत सारे राजनेता, अभिनेता, साहित्यकार और कई प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्ति अब ब्लोगिंग की दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं।

रवींद्र प्रभात जी ने कहा कि एक व्यक्ति कभी विश्व नहीं बन सकता पर अगर वही व्यक्ति सोशल मीडिया से और खास कर ब्लोगिंग से जुड़ जाए तो विश्व बन सकता है। अजित वेडनेकर जी का उदाहरण देते हुए उन्हों ने ब्लॉग की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे राजकमल प्रकाशन ने अजीत जी की ब्लोग पोस्टों को किताब के रुप में छापा है और उन्हें सम्मान सहित एक लाख रुपये का पारितोषिक दिया गया है जो ज्ञानपीठ पुरुस्कार के बराबर है।
रवींद्र जी ने कहा कि हर व्यक्ति का जीवन पांच '' के पीछे भागता है- पैसा, प्रसिद्धि, पद, प्रतिष्ठा और प्रशंसा। असल जीवन में ये पांच चीजें पाना पता नहीं कहां तक और कब संभव हो पाये पर ब्लोगिंग पर इन्हें जल्द पाना संभव है।   
पद: हमें नहीं पता कि असल जीवन में कोई मनुष्य चपरासी है या मैनेजर्। ब्लॉग पर हम उसे सिर्फ़ उसके लेखन से जानते हैं उसकी प्रतिभा की वजह से उसे आदर देते हैं और इस तरह वो ब्लॉग पर उस से कहीं अधिक पा जाता है जो उसका पद उसको दे सकता है।
प्रतिष्ठा: यहां ब्लॉग पर प्रतिष्ठा आप को आप की शैक्षणिक डिग्रियों से नहीं मिलती बल्कि आप की नैसर्गिक रचनात्मकता से मिलती है।
प्रशंसा: प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती। ब्लॉग पर प्रशंसा आप को त्वरित टिप्पणियों के रुप में मिल जाती है।
पैसा: अगर आप पूर्ण रुपेन ब्लॉगिंग को समर्पित हैं तो ब्लॉग से पैसा कमाना भी मुमकिन है। ऐसे हमारे सामने कई उदाहरण हैं जहाँ ब्लॉगर अपनी नौकरी छोड़ पूरी तरह से ब्लॉगिंग के जरिये ही अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं।
प्रसिद्धि: यहां आप अजित वेडनेकर जी का ही उदाहरण ले लीजिए। उनकी ब्लॉग पोस्टों पर आधारित किताब 'शब्दों का सफ़र' पहली हिंदी किताब है जिसकी 150 प्रतियाँ प्रिंट होने के पहले ही बिक चुकी थीं।

लेकिन फ़िर भी अभी हिंदी ब्लॉगिंगि को एक लंबा सफ़र तय करना है। इस समय लगभग पांच लाख हिंदी के ब्लॉग हैं पर उन में से सिर्फ़ चार या पांच हजार ही सक्रिय ब्लॉग हैं।
ब्लॉग लिखते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए  

ब्लॉग की परिभाषा ब्लॉग शब्द में ही निहित है-
B-Brief - सारांश
L-Logical-तर्कसंगत
O-Operation-क्रिया
G-Genuine-वास्तविक
वास्तविक क्रिया के द्वारा तर्कसंगत तरीके से संक्षेप में विषय का सारांश प्रस्तुत करना ही ब्लॉग का पहला गुणधर्म है। ब्लॉग पर जो लिखें संक्षेप में लिखें क्युं कि हर कोई व्यस्त है और लंबी चौड़ी पोस्ट पढ़ने का वक्त नहीं। दूसरे जो भी लिखें प्रमाणिकता के साथ लिखें नहीं तो आप की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है। ब्लॉगिंग करने के लिए कुछ तकनीकी जानकारी होना भी आवश्यक है और जो कुछ भी लिखें पूरी इमानदारी से लि, सामाजिक सार्थकता के लिए लिखें।
रवींद्र जी ने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि उनका ब्लॉग 1995 में बम्बई स्थित बसंत आर्या जी ने बना कर दिया था, लेकिन बाद में उन्हों ने खुद ब्लॉगिंग करना सीखा और आज 'परिकल्पना' के 800 से ज्यादा सबसक्राइबर्स हैं।
रवींद्र जी ने अपनी बात खत्म करते हुए आशा व्यक्त की कि एक दिन भारत का हर हिंदी भाषी जो कि इस समय 121 करोड़ के करीब हैं सब का अपना ब्लॉग होगा और वो संसार में अपने सार्थक हस्तक्षेप के कारण जाने जायेगें।
श्री अविनाश जी ने जोर दिया कि ऐसे कार्यक्रम सभी कॉलेजों और स्कूलों में होने चाहियें। ब्लॉग ही है शब्दों का परमात्मा, पांचवा खंबा, और इसे स्कूल के पाठयक्रम में लगा देना चाहिए। इस से पैसों की कमाई हो न हो लेकिन प्यार की कमाई खूब होती है। उन्हें पूरा विश्वास है कि आने वाले दशक में ब्लॉग सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरेगा। उन्हों ने सब से अपील की कि हम ब्लॉग शब्द का उपयोग न करते हुए चिठ्ठा शब्द का इस्तेमाल करें।
श्री आलोक भट्टाचार्या जी ने कहा कि मैं बड़ी मुग्धता से देख रहा हूँ कि एक तरफ़ इस ब्लॉगजगत के निर्माता यहाँ सभाग्रह में मौजूद हैं और दूसरी तरफ़ ऐसे श्रोतागण हैं जो इस विधा से यहीं वाकिफ़ हो रहे हैं। उन्हों ने ब्लॉग को परिभाषित करते हुए कहा कि टेकनॉलोजी + आत्मा की सुंदरता = ब्लॉग्।
कपिल सिब्बल के व्यकतव्य से उठे विवाद की तरफ़ अपरोक्ष रुप से इशारा करते हुए उन्हों ने कहा कि ब्लॉगर को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। वो इस तरह उभर कर आयें कि पर काटने वाले को दो बार सोचना पड़े और ये तभी हो सकता है जब हर कोई अपनी पोस्ट लिखते समय अपनी जिम्मेदारी को ध्यान में रखे।

आलोक जी को चिठ्ठा शब्द पर एतराज था, उन्हें ये भांडाफ़ोड़ जैसा लगता है जैसे 'मैं तेरा कच्चा चिठ्ठा खोल दूंगा'तो उन्हों ने ब्लॉगर बंधुओं से इस पर विचार करने की अपील की। उन्हों ने माना कि ये ब्लॉगिंग का नशा सकारात्मक नशा है।
हस्तक्षेप के संदर्भ में उन्हों ने अपनी बात ये कह कर समाप्त की कि ]
' इस खामोशी की चीख सुनो
बहुत कुछ होना बाकी है
शहर का रंग लाल होने दो
जब कोई हस्तक्षेप नहीं करता
सड़क से गुजरता हुआ मुर्दा
 ये कह कर हस्तक्षेप करता है कि
आदमी मरता क्युं है'
      
   द्वितीय चर्चा सत्र
इस सत्र में हिंदी ब्लॉगिंग की उपयोगिता पर चर्चा हुई।
अध्यक्ष बने डा शीतल प्रसाद दुबे जो मुंबई विधापीठ में हिंदी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष हैं। विषय विशेषज्ञ के रूप में मंच पर थे श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, लखनऊ से और शैलेष भारतवासी, दिल्ली से। विशेष अतिथि के रूप में आये थे डा सुरेशचंद्र शुक्ला, नार्वे से और डा अशोक कुमार मिश्र, चंडिगढ़ से। प्रपत्र वाचक थे -डा। विभा और डा विनीता- दिल्ली से, डा ईशवर पवार-शिरूर से, डा चंद्रप्रकाश मिश्रा-दिल्ली से , श्री आशीष मोहता-कलकत्ता से, श्री मानव मिश्रा- कानपुर से।
ईश्वर प्रसाद जी ने अपना प्रपत्र शुरु करते हुए कहा' तुम हो तो ये घर लगता है वर्ना इसमें डर लगता है'
उन्हों ने इस बात पर जोर दिया कि ब्लॉग लेखन सिर्फ़ सूचना देने का माध्यम नहीं होना चाहिए, अगर ऐसा हुआ तो लोग ऊब जायेगें। इसके अलावा उन्हों ने इस बात पर भी जोर दिया कि हर अध्यापक को अपना ब्लॉग बनाना चाहिए जिसमें छात्रों के मतलब की चीजें डालनी चाहियें जैसे कंपीटीटिव एक्जाम की तैयारी कैसे की जाए इस बारे में। इस से छात्र पाठकों का ट्रेफ़िक ब्लॉग पर बढ़ेगा।

चंद्रप्रकाश मिश्र जी ने कहा असंतोष होना चाहिए। असंतोष ब्लॉग को जन्म देगा और वही क्रांती का जरिया बनेगा। हालांकि इस का अर्थ ये नहीं निकाला जाना चाहिए कि बाकी के माध्यम इस क्रांती को लाने में असमर्थ रहे हैं
लेकिन ब्लॉग लिखते समय इस बात का ध्यान रहे कि निरंकुश अभिव्यक्ति न हो, खुद ही ब्रह्म होने का अहंकार न हो, खुद ही गुरु और खुद ही चेला होना चाहिए। ललित शर्मा जी ने लिखा था 'चौथा खंबा बिक चुका है', और जनता इस बात को जानती है। इसी लिए ब्लॉग ज्यादा विश्वासनीय और सशक्त माध्यम है। ब्लॉगर्स अखबार के सही रूप दिखा रहे हैं सत्ता और व्यापार का खेल। जब जब ऐसा होता है ब्लॉगर एक क्रांति शुरु करता है और बदलाव आता है।

आशीष मोहता ने कहा उन्हें हिंदी ब्लोगिंग में पांच साल का अनुभव है। उनका ये मानना है कि अभी तक हिंदी ब्लॉगर सिर्फ़ स्वांत सुखाय के लिए लिख रहे हैं और पेशेवर ब्लॉगरी नहीं कर रहे। पेशेवर ब्लॉगरी करने के लिए ये जरूरी है कि ब्लॉगर सोचे कि उसे ब्लॉग पर क्या करना है। ये बिल्कुल ऐसे ही है जैसे हम कैरियर प्लान करते हैं। आप के ब्लॉग पर जो भी आता है सर्च इंजिन से आता है और सभी सर्च इंजिन आप के ब्लॉग पर आते ट्रेफ़िक और आप की विशषेता पर नजर रखते हैं। हमें खुद को एक ब्रांड के रुप में प्रस्तुत करने की जरूरत है। अगर हम विविध विषयों पर लिखेगें तो लो्गों के मन में हमारी खासियत क्या है इस बात को ले कर उलझन रहेगी। इसके अलावा उन्हों ने बताया कि ब्लॉग सिर्फ़ लिख कर नहीं किया जाता और भी आयाम है, आप विडियो या ओडियो माध्यम से भी ब्लॉगिंग कर सकते हैं।

डा विनीता ब्लॉगिंग को कलम विहीन पत्रकारिता बताया जो उपेक्षित मुद्दों को दुनिया के सामने लाने का काम करता है। ब्लॉग नयी मुक्ति है, अपना मंच है, लिखने और पढ़ने वाले के मन में कोई दलाली का भाव नहीं, रचनात्मक को अभिव्यक्ति का मुफ़्त माध्यम मिलता है और कोई बाजारवाद नहीं। आंचलिक ब्लॉगों की शुरुवात हो चुकी है। भविष्य में शोषित, पीड़ीत लोगों की आवाज के रुप में ब्लॉग उभर कर सामने आयेगा। अगर वर्तमान में ब्लॉगिंग में कोई कमी है भी तो हमें उसे नजर अंदाज कर देना चाहिए क्युं कि ब्लॉगिंग अभी अपने शैशव काल में है।
   श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ने अपना व्कतव्य शुरु करते हुए इस बात पर जोर दिया कि हर बदलाव सकारात्मक है। अगर हम समुद्र से जगंल और फ़िर जंगल से समाज की ओर आने तक का सिलसिला देखें तो देखते हैं कि हर खोज इंसान की जिंदगी में बदलाव लाती है। आग की खोज हुई तो खाने पीने का तरीका बदल गया,पहिये का अविश्कार, पशुपालन, खेती करने का चलन और फ़िर औधोगिक क्रांती सभी ने हमारी जीवन शैली को बदला। पहले हम मौखिक रुप से शिक्षा प्राप्त करते थे और यादाश्त का बहुत महत्त्व था फ़िर छापाखाना आया और किताबें आ गयीं। हम पुरखों का ज्ञान सहेज कर रखने लगे और फ़िर कंप्युटर और मोबाइल आ गये। आज हम हर पल मोबाइल से दूसरों के साथ जुड़े रह सकते हैं और उस समय की जीवन शैली की कल्पना भी नहीं कर सकते जब ये साधन उपलब्ध नहीं थे। आज हमारे पास संप्रेषण के अनेक माध्यम हैं और ब्लॉग भी उनमें से एक है।
इसके पहले एक प्रपत्र वाचक शशि मिश्रा जी ने बताया था कि पोस्टकार्ड का इंतजार और फ़िर मिलने पर उसको बारंबार पढ़ना एक अलग मजा देता था। हाँ उसका अपना एक सौंदर्य था लेकिन वो दौर ख्त्म हो गया। अब हम उस कछुआ चाल पर वापस नहीं जा सकते। आज का युग त्वरित चीजों का युग है।सौंदर्य के नये आयाम हैं जो आप पोस्टकार्ड में नहीं दिखा सकते। जैसे ब्लॉग पर आप चित्र और ध्वनी लगा कर अपने संप्रेषण का सौंदर्य बड़ा सकते हैं और ये पोस्टकार्ड से कहीं ज्यादा प्रभावकारी है।
दूसरी बात आप ब्लॉग पर क्या लिखेगें? वही जो आप के आसपास हो रहा है। अगर सभी अपने आसपास घटने वाली घटनाओं के बारे में लिख रहे हैं तो हमें जानकारी मिलती है कि कहां क्या हो रहा है। हम शायद दूसरों की मदद न कर सकें पर कम से कम अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त कर संतोष पा लेते हैं। उदाहरण के लिए ज्ञान जी अपने घर के पीछे बहने वाली गंगा के बारे में लिखते हैं। उस गंगा किनारे रह रहे पात्रों के साथ हम पाठक भी एक जुड़ाव महसूस करने लगते हैं। कभी कभी तो ब्लॉगर जो खबर देते हैं वो न्युज चैनलों से भी ज्यादा तेज होती है।
आज कल ब्लॉग साहित्य सेवा के लिए भी उपयोग में लाये जाते हैं , उदाहरण के लिए अनूप शुक्ल जी ने रागदरबारी डाट कॉम नाम से एक ब्लॉग बना कर श्री लाल शुक्ल जी की अमर कृति नेट पर उपलब्ध करा दी। इसी प्रकार प्रेमचंद, तुलसी, सूर कबीर सभी की रचनाएं आप को नेट पर मिल जायेगीं। सरकार भी ऐसी कई योजनायें चला रही है जहां मूल प्रतिलिपियों को संजो कर नेट पर डाला जा रहा है जिस से वो अजर अमर हो जायें। पुरानी लीक छोड़ने में बहुत कुछ पीछे छूट रहा  है तो क्या? अनजान राहों पर चलने में खतरें भी होगें तो क्या चलना छोड़ दें? अगर इन अंजान राहों पर चलने के लिए हम अपने विवेक का उपयोग करेगें तो फ़ायदे ज्यादा होगें। तेज चाकू ओपरेशन भी करता है और सिर भी काटता है। हमें पूरे आशावाद और जिम्मेदारी के साथ इन क्रांतिकारी हथियारों का उपयोग करना चाहिए ताकि मनुष्य की ज्ञान पिपासा कुछ हद्द तक शांत हो सके।  
कहने का तात्पर्य ये है कि आप इतिहास में फ़िर से नहीं लौट सकते और नॉस्टालजिया आप की कोई मदद नहीं करने वाला। आगे बढ़ते रहने का नाम ही जीवन है।
ब्लॉगिंग एक बहुत बड़ा अनुष्ठान है और मुझे खुशी है कि हम इस अनुष्ठान में अपना योगदान दे पा रहे हैं।
 मैं सबसे अपील करता हूँ कि सब ब्लॉगिंग करें, ब्लॉगिंग करने के लिए ज्ञान की नहीं उत्साह की जरूरत है। हाँ अगर विषयानुसार वर्गीकरण कर लें तो और भी अच्छा होगा

शैलेष भारतवासी जी ने बताया कि वैब जर्नलिस्म में ब्लॉगिंग एक विषय के रुप में पढ़ाया जाता है और धीरे धीरे अब ये छोटी कक्षाओं की तरफ़ अग्रसर है। उन्हों ने इस बात पर भी जोर दिया कि ब्लॉगिंग करने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं। अगर आप के आसपास कोई शिक्षित व्यक्ति है, कंप्युटर और नेट उपलब्ध है तो अनपढ़ व्यक्ति भी ब्लॉगिंग कर सकता है।उन्हों ने माना कि इस समय हिंदी ब्लॉगिंग बहुतायत में शौकिया तौर पर की जा रही है लेकिन ये भी कहा कि अगर ब्लॉगिंग से आमदनी होने लगे तो पेशेवर ब्लॉगिंग भी होने लगेगी। उनके अनुसार ब्लॉग लिखा नहीं जाता बल्कि ये एक क्रिया है इसी कहा जाता है कि मैं ब्लॉगिंग करता हूँ, ये नहीं कहा जाता कि मैं ब्लॉग लिखता हूँ। उन्हों ने इस बात पर भी जोर दिया कि ब्लॉगिंग में क्या नहीं हो रहा इस बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए क्युं कि ब्लॉगिंग अभी शैशव काल में है और जैसे जैसे विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग इस से जुड़ेगें वैसे वैसे इसमें विविधता बड़ेगी। हमें पुरानी और नयी तकनीकी को साथ साथ ले कर चलना होगा।
तीसरा सत्र था 'हिंदी ब्लोगिंग के विविध आयाम'
इस सत्र के अध्यक्ष थे  मुंबई विधापीठ के हिंदी अध्ययन मंडल के पूर्व अध्यक्ष डा सतीश पाण्डेय्। विषय विशेषज्ञ थे दिल्ली से आये डा हरीश अरोरा और मुंबई से ही श्री अनुप सेठी। प्रपत्र वाचक थे डा अनिल सिंह-शहापुर से,डा संतोष मोटवानी-उल्हासनगर से, डा संज्योति सानप, डा रुपेश श्रीवास्तव और डा श्यामसुंदर पाण्डेय मुंबई से,डा कामायनी सातारा से।

   अनिल सिंह जी ने कहा कि ब्लॉग लेखन सिर्फ़ मनोरजंन की वस्तु नहीं है, इस में व्यक्ति की अपनी चितांए है, प्रेम है, हास्य है और व्यंग्य है।एक दिन ऐसा आयेगा जब ब्लॉग लेखन की वजह से सभी दूरियाँ चाहे वो वर्षगत हों या वर्ग गत  सब मिट जायेगीं।ब्लॉग लेखन आज अपने बलबूते पर बिना किसी सहारे के आगे बढ़ रहा है।
लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार ब्लॉग के अपने फ़ायदे और कमियाँ हैं हमें इन दोनों पहलुओं पर विचार करना होगा। ये एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने विचार रख सकता है, इसकी कीमत भी  न के बराबर है,इसकी कोई सीमायें नहीं कोई बंधन नहीं पर इसकी मार तीखी होती है। इसी लिए ये लोगों का पसंदीदा माध्यम बन गया है। ब्लॉगिंग ने जनसंचार का चेहरा ही बदल कर रख दिया है। आने वाला कल हिंदी ब्लॉगिंग का है।
अपनी बात खत्म करते हुए उन्हों ने कहा
' मुसाफ़िर हम तो चले जा रहे हैं,
बड़ा ही सुहाना ब्लॉग का सफ़र है,
 वो जादू है इसमें और ऐसा असर है,
जिसे देखो वही लिखे जा रहा है'
श्याम सुंदर पाण्डेय जी ने कहा कि वो ब्लॉगर नहीं हैं और यहां संगोष्ठी में दूसरों से चर्चा कर रहे हैं। इस चर्चा का निष्कर्ष ये निकाला कि सब में बड़ी उत्सुकता है इस नये माध्यम को ले कर और 'मीडिया का सत्यवर्धक कैपसूल है ब्लOउग'। यहाँ हम जो चाहें बेधड़क अनाम हो कर लिख सकते हैं , जिस क्षेत्र के बारे में चाहे जानकारी हासिल कर सकते हैं, जिन्हें मदद चाहिए वो मदद मांग व पा सकते हैं जैसे अन्ना हजारे का आंदोलन्।

ब्लॉग एक तीसरी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। ऐसे लेखक जो नकारे जाने पर दुख के सागर में गोते लगा रहे थे उनके लिए ब्लॉग वरदान साबित हो रहा है। कई प्रसिद्धि प्राप्त हस्तियां भी ब्लॉगिंग कर रहीं हैं। लेकिन मेरे मन में एक शंका है-
1.       कई बार लोग प्रसिद्धि पाने के लिए किसी भी हद्द तक गिर जाते हैं, अगर ब्लॉग पर अनाम रह कर लिखा जा सकता है तो ये एक स्वस्थ बहस का मंच तो नहीं बन सकता।
2.        एक और खतरा जो मैं देखता हूँ ब्लॉगिंग के आने से वो है भाषा कि शुद्धता पर मंडराता खतरा।
3.       तीसरा खतरा मुझे ये दिखता है कि लोग ब्लॉगिंग से दुनिया से तो जुड़ रहे हैं पर अपने आसपास के लोगों से कटते चले जा रहे हैं।
4.       एक और समस्या जो मुझे इस विधा में नजर आती है वो ये कि कभी कभी नेट पर जिन्हें विद्वान समझने की भूल कर बैठते हैं दर असल वो बहुत ही आम आदमी होते हैं।
तो ब्लॉगिंग के काफ़ी नुकसान भी हैं।
अनुप सेठी जी ने कहा कि वो इस बात से प्रसन्न हैं कि शैक्षणिक संसार भी अब ब्लॉग जैसी विधा को अब गंभीरता से ले रहा है और इस पर चर्चायें हो रही हैं ये अच्छे ब्लॉग विधा के लिए अच्छे लक्षण हैं। अनुप जी ने अपना ब्लॉग 2003 में बनाया था लेकिन तब बहुत सक्रिय नहीं रहे थे। ब्लॉग के गुणों की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहा कि यहां जो कुछ घटित होता है वो सब वास्तविक समय पर घटित होता है, क्षेत्रिय सीमाओं का बंधन नहीं, जनतांत्रिक है, स्वायत्त है, कोई छोटा नहीं कोई बड़ा नहीं, क्षैतिज चलता है कोई सोपान नहीं। सामाजिक शक्तियों के बंधनों को तोड़ता है और ब्लॉगिंग की ताकत है। यहां कोई छोटे बड़े का लिहाज नहीं, बहसें बदतमीजी में बदल जाती हैं, लोग मुंहफ़ट हो जाते हैं। ये सार्वजनिक अभिव्यक्ति का सहज सुलभ माध्यम है और चाहे जितने मर्जी ब्लॉग बना लो।
लेकिन अनुप जी को लगता है कि ब्लॉगिंग अभी महंगा है और मध्यमवर्ग तक भी इसकी पैठ पूरी तरह से नहीं हो पाई है। ये अभी सिर्फ़ पढ़े लिखे लोगों तक ही सीमित है। ब्लॉगिंग करने के लिए इंटरनेट उपलब्ध होना, हिंदी में टंकन करना आना भी बहुत जरूरी है। हम सिर्फ़ उम्मीद कर सकते हैं कि ये हमेशा स्वतंत्र रहे। इस समय काफ़ी कंपनियां है जो नहीं चाहतीं कि ये जनता को मुफ़्त में उपलब्ध हो लेकिन अगर जनता का दवाब बना रहेगा तो ये माध्यम मुफ़्त और स्वतंत्र रहेगा।
इस समय ब्लॉगों की संख्या काफ़ी ज्यादा है और बहुत सारी जानकारी मिल रही है,काफ़ी सारे अवकाश प्राप्त लोगों ने ब्लॉगिंग को अपना फ़ुल टाइम पास टाइम बना लिया है। लेखकों को जीवन में झांकने की खिड़की उपलब्ध हो गयी है।
अपने पंसदीदा ब्लॉगों और ब्लॉगरों का जिक्र करते हुए उन्हों ने जो नाम लिए वो थे- उदय प्रकाश जो अकसर विवादास्पद पोस्टें लिखते हैं, कुमार अंबुज - जो कभी अपनी तो कभी दूसरों की रचनाएं अपने ब्लॉग पर डालते हैं। कुछ ब्लॉग पत्रिका की तरह प्रकाशित होते हैं जैसे जनपक्ष, कबाड़खाना।
अनुप जी ने इस बात पर जोर दिया कि ब्लॉगर को सौंदर्य बोध होना चाहिए,जैसे घर आने वाले मेहमान के स्वागत में हम घर को सजाते हैं इसी प्रकार आने वाले पाठक के स्वागत के लिए हमें अपने ब्लॉग को सजाना चाहिए। ब्लॉगर सजग व पढ़ा हुआ होना चाहिए। पढ़े हुए होने से उनका आशय था कि उसे अपने विषय का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। उसे रंग, रेखा और शब्दों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
ब्लॉग की कमियों पर नजर डालते हुए उन्हों ने कहा
1.      ब्लॉग पर अथाह भंडार उपलब्ध है और ऐसे में एग्रिगेटर की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। इसी प्रकार जरूरी है कि ब्लॉगों का वर्गीकरण हो- विषय आधार पर, समय आधार पर, लेखक आधार पर, इत्यादि।
2.      एक और कमी जो अनुप जी को लगी वो ये कि ज्यादातर ब्लॉगर सिर्फ़ वर्तमान के बारे में लिखते हैं लेकिन अतीत को खंगाले बिना भविष्य का नक्शा अधूरा होता है।
3.      वर्तमान में पाठकों की बहुत कमी है। जो ब्लॉगर हैं वही पाठक भी हैं। तो असली जनतांत्रिककरण कहां हुआ। ये तो पेशेवर का मामला हो गया। ये पूरी जनता के लिए नहीं रहा। जब तक ये पूरी जनता के लिए नहीं होगा तब तक इसे सोशल मीडिया का अंग कहना भी मुश्किल है।
4.       अभी का ब्लॉग लेखन उच्छंखल है, जिम्मेदारी की कमी है। जिम्मेदारी के बिना साहित्य नहीं होता। तो जो भी लिखें वो प्रामणिकता के साथ लिखें सुनी सुनाई बातों के आधार पर न लिखें।
5.      अभी ज्यादातर जो ब्लॉग पर मिलता है वो बहुत ही सतही और चालू माल है, इसमें गहराई और विस्तार लाने की जरूरत है।
6.      वर्गीकृत खोज का प्रावधान होना चाहिए।
7.      अभी ज्यादातर ब्लॉगर पत्रकार हैं। समय की मांग है कि दूसरे पेशों से जुड़े लोग भी ब्लॉगिंग में उतरें। यही नहीं छात्र भी इस माध्यम का बड़ी संख्या में उपयोग करें। हर कॉलेज के हिंदी विभाग में इंटरनेट सहित कंप्युटर मुहैया कराना चाहिए। बम्बई में 100 से भी ऊपर कॉलेज हैं अगर हर कॉलेज एक ऐसा कोश बन जाये तो ब्लोगजगत को सामग्रि उपलब्ध कराये तो ब्लोगजगत काफ़ी समृद्ध हो जायेगा।इसे सेवा का ही काम समझना चाहिए।उदाहरण के लिए अभी हाल ही में मुंबई विधापीठ में विकीस की संगोष्ठी हुई थी और ये बात सामने आयी थी कि नेट पर हिंदी में अभी भी बहुत कम सामग्री उपलब्ध है। अंग्रेजी में हर विषय पर अच्छी गुणवत्ता वाली काफ़ी सामग्री उपलब्ध है लेकिन हिंदी में नहीं। इस लिए आप जब भी लिखें अपने लेखन की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान दें। अपने मन की भड़ास से ब्लॉग को न भरें।

हरीश अरोड़ा जी ने अपने व्कतव्य की शुरुवात 'चील' नामक कहानी सुनवा कर की। उन्हों ने कहा अगर आप हिन्दयुग्म की साइट पर नहीं गये तो आप का हिंदी ब्लॉगजगत घूमना अधूरा है।  
 एक जमाना ऐसा था जब लेखक को छपने के लिए संपादक का मुंह देखना पड़ता था और अकसर लेखकों की रचनाएं अस्वीकार कर दी जाती थीं। ऐसा नहीं था कि वो रचनाएं गुणवत्ता में कम होती थीं बल्कि उसके भी कई और कारण होते थे। लेकिन आज ब्लॉग ने हर लेखक को आजादी दे दी है कि वो चाहे जब, जैसी रचना प्रकाशित कर सकता है और पाठक पा सकता है। हिंदी साहित्य प्रचुर मात्रा में किताबों में उपलब्ध है लेकिन उसमें से कितना पढ़ा गया है? वो सारा साहित्य शायद आम जनता तक पहुंच ही नहीं पाता। ब्लॉगिंग ने सूचनात्मकता और सृजनात्मकता को साथ ला कर खड़ा कर दिया है। आज हर विषय पर ब्लॉग पर लिखा जा रहा है। जो कुछ आप को इंटरनेट पर नहीं मिलता, ब्लॉग पर मिल जाता है।
सामने बैठे श्रोतागण अध्यपाकों का आवहान करते हुए उन्हों ने कहा कि आज सभी अध्यापकों को इस नयी विधा को अपनाना होगा। उन्हों ने उदाहरण दिया कि उनके कॉलेज में गणित के अध्यापक ने अपना ब्लॉग बनाया है जहां वो गणित संबधित पाठयक्रम से जुड़ी जानकारी छात्रों को मुहैया कराते हैं और ये ब्लॉग वो हिंदी और अंग्रेजी दोनों में चलाते हैं। इस ब्लॉग का फ़ायदा न सिर्फ़ उनके अपने छात्र बल्कि दूसरे कॉलेजों के छात्र भी उठा रहे हैं। उन्हों ने कहा कि ब्लॉगिंग करने के लिए विषयों की कमी नहीं और हर अध्यापक की जिम्मेदारी बनती है कि वो किताबों के साथ साथ अपने विषय में ब्लॉगिंग भी करे। आखिरकार ब्लॉग भी एक पुस्तक की ही तरह है जिसके हजारों पाठक हैं। आम तौर पर जब हम पुस्तक छापते हैं तो फ़िर उसमें कोई बदलाव नहीं कर पाते पर ब्लॉग हम को ये सुविधा देता है कि हम जब चाहें टिप्पणियाँ पाने के बाद उसमें संपादन कर सकते हैं।
आज विद्वान जनों को आम जनता के साथ जुड़ना होगा। सरकार को भी ये जिम्मा लेना होगा कि नयी तकनीक आम आदमी तक पहुंचे। ये बड़े दुख की बात है कि आज भी कई हिंदी के अध्यापक और छात्र इंटरनेट से जुड़ना नहीं चाह्ते। लेकिन अब समय आ गया है जब वो इस जरूरत को पहचाने और इंटरनेट से बड़ी संख्या में जुड़ें।
अब समय आ गया है जब हम हिंदी साहित्य का रवि रतलामी बनें न कि ब्लॉगिंग का नामवर सिंह बनें। ब्लॉगिंग की दुनिया बहुत बड़ी है, यहां अच्छी बुरी रचनाएं सभी है, एक अच्छे ब्लॉगर की पहचान ये है कि उसमें अपनी रचना की आलोचना सहने की, स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए, नहीं तो ब्लॉगजगत में नहीं आना चाहिए। इस समय अंग्रेजी ब्लॉग जगत में बहुत सारी सामग्रि उपलब्ध है और कई बार हमें जानकारी लेने के लिए अंग्रेजी के दुनिया का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन अगर हम जापान की तरफ़ देखें तो जापानियों ने जापानी भाषा में ही इतने समृद्ध ब्लॉग बनाये हैं कि उन्हें तकनीकी ज्ञान के लिए भी अंग्रेजी ब्लॉगों का मुंह नहीं देखना पड़ता। अगर जापानी लोग ये कर सकते हैं तो हम हिंदी भाषी क्युं नहीं कर सकते? सिर्फ़ मजबूत इरादों की जरूरत है। अपनी बात खत्म करते हुए उन्हों ने कहा
' अभी तो गुलिस्तां ने आंख खोली है, अभी तो वक्त लगेगा बहार आने में'
जारी ----------------------------------------             

2 comments:

  1. इसे पढ़ने-जानने-समझने वह तो आने से रहे, जो साक्षात साकार हुए थे। बाकियों को लाने की जिम्‍मेदारी मेरी है और मैं इसे सहर्ष स्‍वीकारता हं इसे जल्‍द ही नुक्‍कड़ पर पोस्‍ट करूंगा।

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