Sunday, 25 December 2011

आवारगी- 2



   
 आवारगी मेरी फ़ितरद मेँ है ,
 आवारगी मेरी आदत मेँ है ।

 ज़िंदगी तो वही थी जो आवारगी में बीती ,
 मजा कहाँ कोई इस शराफत मेँ है ।
                   
हौसला, हिम्मत और ताकत चाहिए,  
 लुफ्त बहुत ही बगावत मेँ है ।




  




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