हवाओं से बात करता रहा मैं ;
आखें बिछा रखी थी राहों में ,
आसमान ताकता रहा मैं ;
कान तरसते रहे चन्द बोल उनके सुने ,
काटों बीच खुसबू तलाशता रहा मैं ;
सुबह फिजाओं से हाल उनका पूंछा ,
भोर की किरणों में उनको पुकारता रहा मैं /
हवाओं से बात करता रहा मैं ;
महाकुंभ लाखों करोड़ों की आस्था का सैलाब होता है कुंभ सनातन संस्कृति का तेजस्वी भाल होता है कुंभ। जो पहुंच पाया प्रयागराज वो आखंड तृप्त हु...
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