हवाओं से बात करता रहा मैं ;
आखें बिछा रखी थी राहों में ,
आसमान ताकता रहा मैं ;
कान तरसते रहे चन्द बोल उनके सुने ,
काटों बीच खुसबू तलाशता रहा मैं ;
सुबह फिजाओं से हाल उनका पूंछा ,
भोर की किरणों में उनको पुकारता रहा मैं /
हवाओं से बात करता रहा मैं ;
हवाओं से बात करता रहा मैं ;
आखें बिछा रखी थी राहों में ,
आसमान ताकता रहा मैं ;
कान तरसते रहे चन्द बोल उनके सुने ,
काटों बीच खुसबू तलाशता रहा मैं ;
सुबह फिजाओं से हाल उनका पूंछा ,
भोर की किरणों में उनको पुकारता रहा मैं /
हवाओं से बात करता रहा मैं ;
अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...
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