देश की स्वतंत्रता के साथ ही साथ देश का विभाजन हो गया। देश के बँटवारे के साथ भीषण साम्प्रदायिक दंगो ने हमारी राष्ट्रीयता की जड़े हिला दी। भुखमरी और अकाल की परिस्थितियों ने मानव मूल्यों को झकझोर दिया। देश की स्वतंत्रता के साथ देशवासियों ने बहुत से सपने सजोये थे। इन सपनों के टूटने से जो दुख, निराशा और आत्मग्लानि सामान्य जनता ने महसूस की उसे अपने कथासाहित्य के माध्यम से अमरकांत ने पाठकों के सामने लाया। अमरकांत 'नई कहानी` आंदोलन के कथाकार है। 'नयी कहानी` में जटिल जीवन यथार्थ की व्यापक स्वीकृति अभिव्यक्त हुई, इसके माध्यम से 'व्यक्ति-चेतना` को महत्व मिला। कोरी भावुकता धीरे-धीरे कहानियों से हटने लगी। इस 'नयी कहानी` के अंदर निहित नयेपन को बोध के धरातल पर 'आधुनिकता` से भी जोड़कर देखा जाता है। डॉ. रामचंद्र तिवारी इस संदर्भ में लिखते हैं कि, ''.... 'आधुनिकता बोध` जीवन के जटिल यथार्थ के अनेक स्तरों, भावस्थितियों, मनोदशाओं और अनुभव खंडों की एक समवेत संज्ञा है, जो गत्यात्मक और परिवर्तनशील है।``64
यहाँ पर हमें यह भी समझना होगा कि यूरोप में द्वितीय माहयुद्ध के बाद जो एक नयी यांत्रिक सभ्यता उभरी और उसके दबाव में मूल्यों का जो बिखराव वहाँ के समाज में हुआ वह भारतीय परिस्थितियों से सर्वथा भिन्न था। लेकिन इसका एक सामान्य रूप जरूर यहाँ के समाज को भी प्रभावित कर रहा था। जब हम अमरकांत के संदर्भ में 'आधुनिकता बोध` की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय आजादी के बाद लगातार बदलते सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश में सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं, परंपराओं से जूझते जनमानस की मानसिक और व्यवहारिक स्थितियों के आकलन से है। समय के साथ समाज कहाँ तक बदल सका, नए मूल्यों को कहाँ तक आत्मसाथ कर पाया, ये तमाम बातें अमरकांत के कथासाहित्य के माध्यम से हम समझने का प्रयास करेंगे।
अमरकांत के उपन्यास 'ग्राम सेविका` की दमयंती पढ़ी-लिखी स्त्री है। वह ग्रामसेविका के रूप मंे कार्य करते हुए गाँव की भलाई के लिए स्कूल खोलना चाहती है। पर उसे ग्रामीण लोग ताने मारते हैं। उसे गिरी हुई चरित्र की स्त्री समझते हैं। ये तमाम संदर्भ आजादी के बाद बदलाव की उस स्थिति को स्पष्ट करते हैं जहाँ सरकार पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास और शिक्षा प्रचार-प्रसार की नीति पर आगे बढ़ना चाह रही थी। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और जीवन शैली से समाज को जोड़ना चाह रही थी। पर समाज की सदियों से चली आ रही परंपराएँ, रूढियाँ और जातिगत बंधन इन सब के आड़े आ रहे थे।
इसी तरह 'आकाश पक्षी` उपन्यास के राजा साहब आज़ादी के बाद रियासत विहीन हो जाते हैं। पर बदली हुई सामाजिक स्थिति को वे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें अब भी लगता है कि काँग्रेस शासन चला नहीं पायेगी और रियासत के दिन फिर लौटेंगे। हेमा की माँ को हेमा के शलवार-कमीज पहनने पर ऐतराज था। पर हेमा अपनी माँ की मानसिकता का समझती है। वह माँ के संबंध में कहती है कि, ''वे जिंदगी भर एक पिछड़ेपन की पुरानी लीक पर चलती रही। इसलिए किसी भी नयी बात को स्वीकार करना उनके लिए बहुत ही कठिन होता था। फिर पुरानी मान्यताओं को तोड़ना उस समय आसान होता है, जब हम शिक्षित हों, हमारा हृदय उन्मुक्त हो और जब हम दूसरों से मिलंे-जुलें। लेकिन जब हमारा हृदय अपनी ही सीमाओं को सब कुछ समझता हो तो किसी चीज को बदला नहीं जा सकता। अपने चारों ओर लक्ष्मण-रेखा खींचकर अपने घमंड और झूठी शान में डूबे रहना उस गड्ढे के पानी की तरह है, जिसका निकास कहीं नहीं होता और जो धीरे-धीरे सड़ता रहता है।``65
ऐसा ही ठहराव 'सुरंग` लघु उपन्यास की पात्र बच्ची देवी के जीवन में था। लेकिन वह मोहल्ले की स्त्रियों के संपर्क में आकर लिखना-पढ़ना सीखते हुए अपने बात-व्यवहार में बदलाव लाती है। इस तरह शिक्षित और संगठित होकर बच्ची देवी बड़े ही सकारात्मक रूप सें अपने वांछित अधिकार के लिए लड़ती है।
इसी तरह 'काले उजले दिन` का नायक अपने लिए पढ़ी-लिखी आधुनिक विचारों वाली पत्नी की कामना रखता है। पर उसकी पत्नी इसके विपरीत स्वभाव की होती है। यद्यपि वह अपने पति के प्रति समर्पित और सेवा-भाव करने वाली स्त्री थी, पर अपने पति के मनोनुकूल नहीं थी। इसी कारण उसका पति शादी के बाद भी रजनी की तरफ आकर्षित होता है और बाद में उससे विवाह भी कर लेता है। स्पष्ट है कि यहाँ नायक की पत्नी आधुनिक जीवन शैली को नहीं अपना पाती, इसी कारण उसे मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है।
अमरकांत की कहानियों की बात करें तो 'कलाप्रेमी`, 'लड़का-लड़की`, 'उनका जाना और आना`, तथा 'चाँद` जैसी कई कहानियाँ हैं जहाँ आधुनिक समाज के रंग-ढंग और इसकी जीवन शैली के प्रति पात्रों में एक खास और स्पष्ट लगाव दिखायी पड़ता है। 'कलाप्रेमी` का सुमेर कामर्शियल आर्ट के महत्व को स्वीकार करते हुए मिसेज रंजन जैसे लोगों से जुड़ते हुए जीवन में आगे बढ़ रहा है। जब कि आदर्श और नैतिकता की दुहाई देनेवाला सुबोध भी अच्छा कलाकार है। पर वह आधुनिक और नए समाज की चाल में अपने को ढाल नहीं पाता, अत: वह गुमनाम है।
'लड़का-लड़की` कहानी का चंदर तारा के सामने आदर्श, त्याग और प्रेम की बातें करता है। जब तारा उसके अनुरूप अपने को ढालते हुए पिता को भी सारी बातें बताकर विवाह के लिए उन्हें राजी करती है; तब चंदर विवाह से पीछे हटने लगता है। इस पर तारा उसे खूब जलील करती है उसकी किसी भी दया को नकार देती है। स्पष्ट है कि पढ़-लिखकर ही तारा स्थितियों को समझते हुए उस पर एक ठोस निर्णय ले पाती है। इसी तरह 'उनका जाना और आना` कहानी के गोपालदास के लड़के पढ़-लिखकर शहरों में बस गये हैं। अत: वे गाँव में आकर अपने बच्चों की शादी करने की बात को सिरे से नकार देते है। अत: जब गोपालदास जी ही विवाह में सम्मिलित होने शहर जाते हैं तो वे पूरे समारोह में अपने आप को अलग-अलग और 'अनचाहा` सा महसूस करते हैं। आधुनिक जीवन शैली और बदली हुई मानसिकता किस तरह संबंधों के नाजुक बंधन को ठेस पहुँचाती है, इसे इस कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है।
'चाँद` कहानी के प्रदीप का मित्र अपने सामाजिक संबंधों की बदौलत ही शहर में खुद प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में जाना-जाने लगा था। आधुनिक भौतिकवादी समाज में अवसरवादिता किस तरह प्रगति का एक माध्यम बन गई है, इसे इस कहानी द्वारा समझा जा सकता है। पक्षधरता कहानी की मोहिनी भी पढ़ी-लिखी आधुनिक विचारों की हिमायती स्त्री है। वह अनुचित बातों पर सबको झिड़कते हुए, ''यह वाहियात बात है। साथ ही साथ उसकी उपस्थिती में कोई भी औरत ऐसे कार्य नहीं कर सकती थी जो अक्सर ग्रामीण, अनपढ़ स्त्रियाँ करती है। जैसे कि, ''घर में कोई भी भदेसी भाषा नहीं बोल सकेगी। खाट पर बैठकर कोई नहीं खायेगी। सबके सामने बाल खोलकर जूँ कोई भी नहीं बिन सकेगी। बच्चे शोर नहीं मजायेंगे और नई बहू के कमरे में भीड़ नहीं लगायेंगे। दोपहर में गप्पबाजी नहीं हो सकेगी। मुहल्ले की बूढ़ी, खूसट चाचियों और दादियों को 'लिफ्ट` नहीं दी जायेगी।....।``67
इस तरह समग्र रूप से हम कह सकते है कि अमरकांत के कथासाहित्य में कई ऐसे संदर्भ हैं जहाँ आधुनिक जीवन की सकारात्मक और नकारात्मक स्थितियाँ सामने आती हैं। समय के साथ बदलते हुए सामाजिक मूल्यों पर अमरकांत की पैनी दृष्टि सतत बनी हुई है। आधुनिक समाज की अवसरवादिता, आत्मकेन्द्रियता, भौतिकता और स्वार्थी मनोवृत्ति के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा और प्रगति के अवसरों के बीच समाज की विकासशील स्थिति को भी अमरकांत चित्रित करते है। इस तरह सामाजिक बदलाव से जुड़े हर पक्ष पर विचार करते हुए अमरकांत किसी एकाकी स्वरूप को सामने लाने से बचते हैं। यह सारी स्थितियाँ अमरकांत की वैचारिक परिपक्वता को समझने में हमारी मदद करते हैं।
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