Thursday, 21 May 2009

इश्क के नाम पर------------------------------

अजीब सा उसका मिजाज है ,
मोहबत्त को कहता नमाज है ।

इश्क के नाम पर खफा हैं लोग यंहा
मेरे आस-पास यह कैसा समाज है ।

भाती है,मगर मीठी आंच है यह,
इस प्यार का यही अंदाज है ।

बदन तक तो ठीक है लेकिन,
हमारे आचरण पर भी लिबाज है ।

वो चुप है,मगर कमजोर नही है,
उसे शायद आप का लिहाज है ।

Wednesday, 20 May 2009

पास तुम नही तुम्हारी यादें है -------------------------

पास तुम नही तुम्हारी यादें हैं
यंही-कंही बिखरे तेरे वादे हैं ।

सभी रिश्ते बढ़ा रहे हैं मुझसे ,
जाने कैसी बिछा रहे बिसादे हैं ।

जब से तुम्हे चाहने लगा हूँ मै,
ajeeb say uth rehay iraadey hain .

meri apni koi ichha hi nahi ,
hum to shatranj kay maamooli pyaade hain .

unhay sab kuchh mila hai bana-banaya,
jo kahlaatay duniya may sahjaade hai .

Monday, 18 May 2009

अभी तो सपना सजाया है ;

अभी तो सपना सजाया है ;
अभी ही तुने रुलाया है ;
अभी तो आखें चमकी , अभी तो सांसे बहकी ;
अभी ही अँधेरा छाया, अभी ही तेरे घर से निकला कोई साया ;
अभी तो तु खुल के खिलखिलाया है ,
अभी ही तुने मेरा सपना बिखराया है ;
कदम की लडखडाहट,
तेरे जाने की आहट;
गलें की तल्खियाँ मिटाने दे ;
भावनावों को सिमट जाने दे /
अभी तो सपना सजाया है ;
अभी ही तुने रुलाया है ;

Sunday, 17 May 2009

love you the way you are

love you the way you are ;
in spite of our quarrels and wordily wars ;
the betrayal of emotions ; feeling of loves erosion's ;
the hurt of losing you ;the joy of holding you ;
the times you were not with me ;
the beautiful moments you shared with me ;
in life's ups and down ;
you hold your own;
love you the way you are ;
in spite of our quarrels and wordily wars.

Saturday, 16 May 2009

The election and its verdict

The no. of seats congress [200+] is a big surprise for every one even for die hard congress followers.Where did BJP and other parties went wrong ?
I have my view on this .
There are no of factors which can be attributed for this success of congress. The acceptance of Mr. Manmohan singh as able administrator , his clean image and the toughness shown on Nuclear issue has very vital role in it.The biggest blunder BJP made was targeting of Mr. Manmohan singh as weak Prime minister And personal attack on him by BJP .
And then the rise of Mr. Rahul Gandhi as youth leader and his master stroke of Going solo in U.P. and Bihar .There were many regional issues like MNS in Maharashtra Tamil issue and many other factors .
But one of the major trend is also to go for a government which is pro growth that's a welcome change . Other important thing is rise of national parties or other word leaning of people towards a two national parties Congress and BJP. In-spite of setbacks BJP has done well in no of states .

Friday, 15 May 2009

पपीहे की तरह चाँद ताकता मै रहा ,

पपीहे की तरह चाँद ताकता मै रहा ,
अँधेरी गुफा में आसमान ताकता मै रहा /
नखलिस्तान की ओर तेजी से मै दौड़ा ,
मृगतृष्णा थी ,पानी तलाशता मै रहा /

लोग कहते हैं ,उसकी आखों में समुंदर सी गहराई है ;
मै समुन्दर में दिल का रास्ता तलाशता रह गया /
बाँहों में फिर भी भर लेता उसको ऐ यारों ;
मै सामने खड़े बुत में ,जीवन का स्पंदन तलाशता रह गया /

Thursday, 14 May 2009

निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में ;

निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में ;
कुछ उनके साथ थे ,कुछ और की तलाश थी /
उन मदमस्त हवावों में ,कोहरों के साये में ;
महफिलों में ,जानी अनजानी बाँहों में ;
गा रहे थे पार्टियों में , घूम रहे थे अलमस्त भावों में ;
महफिलों का दौर था , कितने ही रंगों से सराबोर था ;
महक आती थी बातों से ,इठलाती थी शरमा के गालों से ;
खुसबू थी उसके बालों में , वो खुश थी स्वच्छंदता की राहों में /
हम भज रहे थे भगवान को ,तलाश रहे थे स्वयं में इनसान को ;
हाँ लोंगों की भीड़ थी , पर तन्हाई कितनी अभिस्ट थी ;
अपने में खोये थे ,पथरीली चट्टानों पे सोये थे ;
अपने को समेटे हुए , सत की तलाश में रमते हुए ;
भावों को सरलता की चाह दी , मन को भक्ति का भाव दी ;
उन्हें स्वच्छंदता की दरकार थी , कुछ और की तलाश थी /
वो खुश है की महफिलों की जान हैं ;
mai khush हूँ मुजमे एक सरल इन्सान है ;
उनकी भक्ति भी एक विलाश है ;
मेरे लिए भोग भी भक्ति प्रसाद है /
निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में /

Tuesday, 12 May 2009

अमरकांत के साथ अन्याय क्यो ?

नई कहानी आन्दोलन से अपनी लेखन यात्रा शुरू करने वाले कथाकार अमरकांत आज भी एक सच्चे साधक और तपस्वीय की तरह अपनी साहित्य यात्रा जारी रखे हुए हैं । तमाम शारीरिक और आर्थिक परेशानियों के बाद भी । अमरकांत नई कहानी आन्दोलन से लिखना जरूर प्रारम्भ करते हैं लेकिन उनके साहित्यिक मूल्यांकन के लिये उन्हे नई कहानी आन्दोलन की परिधि मे बाँधना तर्क सांगत नही है ।
१ जुलाई १९२५ को बलिया मे जन्मे अमरकांत की पहली कहानी १९५३ के आस-पास कल्पना नामक पत्रिका मे छपी । इस कहानी का नाम था -इंटरव्यू । अमरकांत की जो कहानिया बहुत अधिक चर्चित हुई ,उनमे निम्नलिखित कहानियों के नाम लिये जा सकते हैं-

  1. जिंदगी और जोंक
  2. डिप्टी कलेक्टरी
  3. चाँद
  4. बीच की जमीन
  5. हत्यारे
  6. हंगामा
  7. जांच और बच्चे
  8. एक निर्णायक पत्र
  9. गले की जंजीर
  10. मूस
  11. नौकर
  12. बहादुर
  13. लड़की और आदर्श
  14. दोपहर का भोजन
  15. बस्ती
  16. लाखो
  17. हार
  18. मछुआ
  19. मकान
  20. असमर्थ हिलता हाँथ
  21. संत तुलसीदास और सोलहवां साल

इसी तरह अमरकांत के द्वारा लिखे गये उपन्यास निम्नलिखित हैंपत्ता

  1. कटीली राह के फूल
  2. बीच की दीवार
  3. सुखजीवी
  4. काले उजले दिन
  5. आकाश पछी
  6. सुरंग
  7. बिदा की रात
  8. सुन्नर पांडे की पतोह
  9. इन्ही हथियारों से
  10. ग्राम सेविका
  11. सूखा पत्ता
  12. इस तरह करीब १२० से अधिक कहानिया और १२ के करीब उपन्यास अमरकांत के प्रकाशित हो चुके हैं । लेकिन दुःख होता है की इतने बडे कथाकार को हिन्दी साहित्य मे वह स्थान नही मिला जो उन्हे मिलना चाहिये था । आलोचक प्रायः उनके प्रति उदासीन ही रहे हैं । ऐसे मे अब यह जरूरी है की अमरकांत का मूल्यांकन नए ढंग से किया जाए ।

अभिव्यक्ति की विवेचनाएँ

अभिव्यक्ति की विवेचनाएँ --------- साहित्य
सन्दर्भ की व्याख्याएं --------- समाचार पत्र
हितों का विरोधाभास --------- समाज
सत्य का मिथ्याभास --------- सामाजिकता
व्यक्ति की असमर्थतायें --------- वासनाएं
समाज की विवसतायें --------- भ्रस्टाचार
देश की गतिशीलता --------- चमत्कार
स्वार्थ का हितोपदेश --------- राजनीति
patan ki पराकास्ठा --------- राजनेता
सच्चाई की अनुभूति --------- सपना
सच्चाई की जीत --------- माँ की प्रीती

Monday, 11 May 2009

कुछ के गुजर

कुछ कर गुजर ,

कुछ ऐसा कर ;

सबको नाज हो तुझपे /

डूबते का किनारा बन

भटकते का सहारा बन ,

मरते की साँस बन ;

अपनो की आस बन ;

कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

संत की तलाश बन ,

भक्ति का ज्ञान बन;

ज्ञानी का ध्यान बन ,

सांसारिक का मन बन ;

कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

किसी का स्नेह है तू ,

किसी का ध्येय है तू ;

किसी का दुलार है तू ,

किसी का प्यार है तू ;

किसी का भाग्य है तू,

किसी का अधिकार है तू ;

उठ हिम्मत बाँध ,

टूटे किनारे संभाल ;

साथ बन , विस्वास बन ;

कर ले अपने बस में मन ;

कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

Sunday, 10 May 2009

पूर्वग्रह पत्रिका का प्रकाशन पुनः प्रारम्भ ----------------------

पूर्वग्रह त्रैमासिक पत्रिका की पहचान एक गंभीर सृजनात्मक विमर्श की पत्रिका के रूप मे रही है । भाषा-शिल्प के आभिजात्य पर पत्रिका का आग्रह नही है । यह पत्रिका हर तरह के प्रवाद से बचती रही है । इधर काफ़ी दिनों तक इसका प्रकाशन बंद हो गया था । लेकिन आप लोगो को बताते हुए खुशी हो रही है की इसका १२४ अंक आ गया है ।
प्रभाकर शोत्रिय जी के सम्पादन मे यह भारतीय भवन ,भोपाल से निकल रही है ।

Saturday, 9 May 2009

हमसफ़र कौन है ,कैसे कहे आज हम ?

हमसफ़र कौन है, कैसे कहें आज हम ?
hamsafar kaun है, kaise kahen aaj hum ;
रास्तों में भटके हुए हैं, मंजिल की तलाश है /
raston me bahatke huye hain; manjil ki talsh hai /
साथ तेरा सुखमय है , बात तेरी प्रियकर है ;
sath tera sukhmay hai ,bat teri priykar hai ;
कैसे कहें तू है वो हमसफ़र ,जिसकी मुझे तलाश है;
kaise kahen tu hai wo हमसफ़र, jisaki muje talash hai /
मेरी अनिभिज्ञता पे नाराज न हो ;
meri anibhigyta pe naraj na ho ;
पर रास्ते में ही मंजिल का हिसाब ना हो ;
par पर raste रास्ते me hi manjil ka hisab na ho ;
वाकये कितने अभी टकराने हैं ;
wakaye kitane anjane abhi takarane hai;
राहों में अभी फैसलों के वक्त आने हैं ;
rahon me abhi faisalon ke waqt aane hai;
दुविधाएं अभी कहाँ आई ?
duvidhayen abhi kahan aayi ?
जिंदगी की भूलभुलैया कहाँ छाई ?
jindagi ki bhulbuliya kahan chayi?
रिश्तों में गहराईयाँ अभी आनी है;
riston में गहराईयाँ aani hai ?
वो इक समुंदर है ,या बारिश का फैला हुआ पानी है ?
wo ek samunder hai ya barish ka faila huwa पानी hai है ?
कैसे कहें हमसफ़र मिल गया ?
रास्ते में उलझे हैं ;
rasten me ulaje hai ,
मंजिल की तलाश जारी है /
manjil ki talash jari hai /

Friday, 8 May 2009

गुजरा ज़माना , आज का फ़साना /

गुजरा जमाना ,


आज का फ़साना ;


अनकही बातें ,


अधूरे जजबात ,


और वो रात /


अरमानो का मौसम ,


बाहों की जकडन ,


जलता तन ;


बहकता मन ,


सतत प्यास ,


वो भावों का कयास ;


महकी सांसों का बंधन ,


तन से खिलता तन ;


क्या सच क्या सपना ;


रास्ता देखती आखें ,


आखों से आखों की बातें ;


सुबह का इंतजार करती रातें ;


स्पर्श से आल्हादित दिन ,


सामने पाके हर्षित मन ;

प्यार बरसते नयन ,

भावनावों की मदहोशी ;

उसपे तेरी हंसी ,

क्या सच , क्या सपना ;

क्या भाग्य क्या विडम्बना ,

क्या तू है मेरा अपना /


Thursday, 7 May 2009

उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे

उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे ,
उस पल की याद क्या जब हाथों में हाथ न थे ;
चाँद की चांदनी में भी कहाँ अब वो बात है ,
सूरज की रोशनी में भी अँधेरे की छाप है ;
क्या कहे दिल की हालत ए मेरी जिंदगी ,
जब से तुम बिचडे हो बहकता सावन भी उदास है ;

Wednesday, 6 May 2009

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;

कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
सजाई है जब एक महफ़िल ,
महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है,
क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,
क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे,
समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,
देश की तरक्की के लिए /

The caste system

In the Jatakas Brahmins are mentioned as traders, hunters and trappers. R P Masani quotes the case of a Kshatriya prince, Kusa, mentioned in one of the Jataka tales, who became an apprentice in turn to a potter, a basket maker, a florist and a cook. Conversely, from even the Vedic days there have been innumerable instances of men born in the lowest rank of caste-society taking to professions which in theory were the monopoly of the other castes. Even the Mauryas royal family came from among the Sudras.” Swami Chidanand Saraswatiji ( ? ) of the India Heritage Research Foundation defines: "The Caste system as you see it today is not was originally simply a division of labor based on personal, talents tendencies and abilities. It was never supposed to divide people. Rather, it was supposed to unite people so that everyone was simultaneously working to the best of his/her ability for the greater service of all. In the scriptures, when the system of dividing society into four groups was explained, the word used is “Varna.” Varna means “class” not “caste.” Caste is actually “Jati” and it is an incorrect translation of the word “varna.” When the Portuguese colonized parts of India, they mistakenly translated “varna vyavasthaa” as “caste system” and the mistake has stayed since then.

Monday, 4 May 2009

लौटा है आज वो घर बरसों बाद

लौटा है आज वो घर बरसों बाद ,
हर साल दो साल बाद ,
वो घर आता जरूर था ;
पर लौटा है घर आज वो बरसों बाद /
ख़त या इ मेल तो अपनो को करता था ;
पर वो बस खोखले शब्दों का मायाजाल है मात्र /
उसने अपने फ्लैट में गमले सजाएँ हैं ;
कई छुट्टियाँ शहर के आस पास के पहाडों ,औ पर्यटन स्थल पे बिताएं हैं/
कहाँ पाया उसने गाँव की मिट्टी का अपनापन !
शहर की पार्टियों पर ,नेटवर्क की साइटों पर ,सैकडों मित्र, मैत्रिणी है उसकी ,
कहाँ पाया उसने ;बचपन के दोस्तों की निश्छलता ,अपनापन ;
कैसे पाए अपने वो मचले दिन ?
बचपन की लड़ाई ,वो कसक , उतावलापन ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
कभी फ़ोन ,कभी मोबाइल पे बात कर लिया करता था अपनो से ,
पर कहाँ पाए वो उष्मा दादी की गोद का ,
मामा की सोच का ,
चाचा की डांट का ,
पडोसी के दुलार का ;
माँ की ममता का ,
पिता की कडाई का ,
दादा की रजाई का /
बड़ा आदमी बन गया है अब वो ,
प्यार को कितना तरस गया है वो ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
बिस्तर माँ को जकडे पड़ा है ;
पिता की आखों में खालीपन सा छुपा है ;
बचपन का दोस्ताना ,अपनो का याराना कहीं खो सा गया है /
भाई भाभी विस्मित है ,किस ढंग से पेश आयें ;
सब चाहते तो है अपनापन और हक दिखलायें ;
झूठा दिखावा और भावों का ओथालापन ;
उसका खुद का और अपनो का ;
दोनों को व्यथित किये है ;
इतने सालों को कैसे जोड़े ,
ये प्रश्न भ्रमित किये है /
सालों की अपनी सफलता में ,
बीबी के चाह में ;
बच्चों को पालने में ,
शहर की चमक में ,
भविष्य को निखारने में ;
अपने सुख ,झूठे  दिखावे और विलासों के साये में ;
बिता डाले ;कितने ही सावन , होली दिवाली ;
शहरों की दीवालों में ;
पर लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
आज बीबी का तन शिथिल , मन का वो नही जानता ;
बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त ;
समाज और दोस्तों में वाह  वाही है ;
ह्रदय खाली सिर्फ खाली है/
ये उसकी अपनी जिंदगी का खोखलापन,
डरावने सपने सा सामने खडा है ;
और आज उसके सामने practical बनने का  attitude ;
यछ प्रश्न सा सिने में जड़ा है /
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /

मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं

मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं ;
इस रिश्ते की हकीकत को खुद को कैसे समझायुं
/ बरसों से मिला नहीं है ,
पर कैसे कह दूँ रिश्ता नहीं है
?हर अहसास से इंकार है तुझको ;
ऐसा कोई पल नहीं, जब तू याद नहीं मुझको /
मेरी हर गम या ख़ुशी का , तुझे ध्यान है रहता
;कभी इतने दूर न हो जाये की पास न आ सके ;
इस पहलू ने एक अनजाने धागे से हमें बांध के रक्खा ;
इतने पास न आ जाये की दुरी में हो मुश्किल ;
इस डर ने हमें अनजान सा रक्खा /
मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं ;
इस रिश्ते की हकीकत को खुद को कैसे समझायुं /

Sunday, 3 May 2009

आज नया क्या दूँ मै किसको

आज नया क्या दूँ मैं किसको ?
प्यार किया था एक सपने से ;
जो कसी ने तोड़ दिया ;
स्नेह दिया था जिस अपने को ;
उसने मुह मोड़ लिया ;
आज नया क्या दू मै किसको ?
विसवास किया था जीवन का जिसपे ;
उसको अपना ही हित प्यारा है ;
याद किया है जिसको हर पल ;
उसका ह्रदय पराया है ;
आज नया क्या दूँ मैं किसको ?

आज का नौजवान

आज का नौजवान
सीना तान के खडा है ,उंचाईयों की तरफ बड़ा है ;
आत्म विस्वास से भरा है,
आज का नौजवान /
मंजिले उसकी धाती है , असंभव की बात नहीं भाती है ;
तेजस्विता से ओतप्रोत है ,धर्म से सचेत है ;
सीमाओं में बन्धता नहीं, कठिनाईयों से रुकता नही ;
अपनी गरिमा जानता है ,स्वतंत्रता की सीमा पहचानता है ;
आज का नौजवान /

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...