Thursday, 23 April 2009

कथाकार अमरकांत ---------------------------------

अमरकांत आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं । स्वास्थ उनका साथ नही दे रहा है ,ऐसे में उनकी सारी आशायें साहित्य





प्रेमियों से ही है । अगर आप अमरकांत की किसी तरह से कोई सहायता करना चाहते हैं तो सीधे उन्ही से संपर्क कर सकते हैं । अमरकांत इलाहाबाद में रह रहे हैं । लोकभारती उनसे संपर्क का सीधा माध्यम है ।

Wednesday, 22 April 2009

हिन्दी साहित्य और संरचनावाद

स्वीडन के प्रसिद्ध भाषाविद FARDINAND DE SAUSSURE संरचनावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । हिन्दी में इन्हे ''सासूर '' नाम से जाना जाता है । अपनी मान्यतावो के माध्यम से आपने जो बाते सामने लायी वो इस प्रकार हैं ।
  1. भाषा एक व्यवस्था है ।
  2. भाषा चिह्नों द्वारा निर्मित है ।
  3. ये चिन्ह मनमाने और भेदपरक हैं ।

भाषाई चिन्ह के दो प्रमुख रूप हैं १)स्वर बिम्ब २) विचार

किसी शब्द और उसके अर्थ के बीच जो मनमानापन या नियम विहीन होना है ,वही संरचनावाद की देन है । जीवन में हम जो भी अनुभव करते हैं उन्हे संचारित करने का काम शब्द करते हैं । शायद यही कारण है की शब्द अर्थ के नियामक होते हैं । हमारे अनुभवों को रूप देने का काम शब्द भाषा के माध्यम से करते हैं । संरचनावाद एक भाषा वैज्ञानिक पद्धति है । जिसका एक पूरक हिस्सा साहित्यिक संरचनावाद है ।

इस विषय पर अंग्रजी में एक बड़ा लेख आप निम्नलिखित लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं ।

poetics: Structuralism, linguistics and the study of literatureJ Culler - 2002 - books.google.com... Page 6. . Page 7. Jonathan Culler Structuralist Poetics Structuralism, linguisticsand the study of literature With a new preface by the author ". ... Cited by 576 - Related articles - Web Search - All 3 versions
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the Study of Literature. 1975J Culler - Ithaca: Cornell UP, 1977Cited by 5 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the Study of Literature (Ithaca, NY, 1975)J Culler - See also Robert Scholes, Structuralism in Literature: An …Cited by 2 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist poetics: Structuralism, linguistics and the study of languageJ Culler - 1975 - Ithaca, NY: Cornell University PressCited by 2 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics and the Study of PoetryJ CULLER - 1975 - London: Routledge and Kegan PaulCited by 1 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the LiteratureJ Culler - 1975 - London: RoutledgeCited by 1 - Related articles - Web Search
[BOOK] Structuralist poetics structuralism, linguistics and the study of literature Cornell paperbacksJD Culler - 1979 - Cornell university pressWeb Search
Structuralist poetics: structuralism, linguistics and the study of literature (coll routledge …C Jonathan - lavoisier.fr... Notice. 35.00 € Ajouter au panier. Structuralist poetics: structuralism, linguisticsand the study of literature (coll routledge classics). ... Cached - Web Search Key authors: J Culler

Tuesday, 21 April 2009

प्रेम की परिभाषा ------------------------------

प्रेम की परिभाषा तुझी से साकार है
नारी तू ही जीवन का अलंकार है ।

तुझे नर्क का द्वार समझते हैं जो,
उनकी दकियानूसी सोच पर धिक्कार है ।

दुनिया की आधी आबादी हो तुम,
बेशक तुम्हे बराबरी का अधिकार है ।

कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढो,
तुम्हारी उड़ान ही तुम्हारी ललकार है ।

कोई बहुत याद आ रहा है ----------------------------

कोई बहुत याद आ रहा है

मुझे अपने पास बुला रहा है ।



हर पल खयालो में आकर,

GAM JUDAAI KA BADHA REHA HAI ।



USKAY HAANTH MEI HAI MERI DOR,

CHAAH REHA JAISAY VAISAY NACHA REHA HAI .



MAINAY TO MANAA KIYA LEKIN,

SHAAKI JAAM PAY JAAM PILA REHA HAI ।



MILNAY PAR AB PAHCHAANTA NAHI,

VAH IS TARAH MUJHAY JALAA REHA HAI ।



KUCHH RAB NAY THAAN RAKHI HAI SAAYAD,

BAAR-BAAR UNHI SAY MILA REHA HAI ।

Sunday, 19 April 2009

उनका कसूर था,वो लडकियां थीं --------------------------

हमारे बीच सिर्फ़ खामोशियाँ थीं
दिल के समंदर में बंद सीपियाँ थीं ।

हम दोनों साथ चलते भी तो कैसे,
बड़ी संकरी समाज की गंलियाँ थीं ।

सोचकर अपने कल के बारे में ,
बाग़ की डरी हुई सभी कलियाँ थीं ।

उनके बिना अजीब सा सूनापन है ,
बेटियाँ तो आँगन की तितलियाँ थीं ।

जो कोख में ही मार दी जाती हैं ,
उनका कसूर था,वो लडकियां थीं ।

जिस घाटी में आज सिर्फ़ बारूद है,
VANHI PAY KABHI KAISAR KI KYAARIYAAN THEEN ।

अभी तो बाकी पूरी ग़ज़ल है -----------------------------

तुमसे मिलना तो एक पहल है
अभी तो बाकी पूरी ग़ज़ल है ।

मेरे इस मन को इंतजार है तेरा,
तू खिलता हुवा एक कवल है ।

अब जो भी सोचता हूँ,चाहता हूँ
हर बात में तेरा ही दखल है ।

झोपडी कब की नीलाम हो चुकी
अब बननेवाला यंहा महल है ।

तुझसे जीतना ही कब था मुझे,
तेरी जीत से ही मेरी हार सफल है ।

चोरी-छिपे मिलोगी कितना-------------------------

प्यार में मुझको छलोगी कितना
झूठ पे झूठ तुम कहोगी कितना ।

मेरी राह में कांटे हैं,मखमल नही
मेरे साथ जिंदगी में चलोगी कितना ।

हाँथ थाम लो जिंदगी भर के लिये
यूँ चोरी-छिपे तुम मिलोगी कितना ।

एक ना एक दिन बोलना ही पडेगा,
आख़िर साँचो में इसतरह ढलोगी कितना ।

चांदनी रात मे अकेले ---------------------------------

चादनी रात मे अकेले टहलना मत
मुझे याद कर के तुम तड़पना मत ।

लग जायेगी यकीनन तुम्हे नजर ,
बेनकाब घर से कंही निकलना मत ।

अब जब कि मिल गये हो मुझसे,
एक पल के लिये भी बिछड़ना मत ।

अपने दिल कि हर बात कह देना,
बिना कहे अंदर ही अंदर सुलगना मत ।

जिंदगी को ऊपर ही ऊपर जी लो,
अधिक गहराई मे इसकी उतरना मत ।

मुझे भुला देगा --------------------------

मुझे मुझसे ही चुरा लेगा
इसतरह वह मुझे सजा देगा ।

वह चला तो है हमसफ़र बन,
मगर मालूम है दगा देगा ।

बेदाग़ है अभी दामन मेरा,
इश्क कोई दाग लगा देगा ।

जैसे ही मिल जायेगा दूसरा,
वह यकीनन मुझे भुला देगा ।

दिल का इलाज सिर्फ़ दिलबर है,
वही तो मोहबत्त की दवा देगा ।

तुमारी यादो से --------------------------

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तुम्हारी यादो से महक रहा कमरा मेरा
तुम्हे सोचा, और खिल गया चेहरा मेरा ।
अकेले मुझसे मिलने, जब भी आती हो ,
तुम्हे देख हो जाता है, रंग गहरा मेरा ।
ना जाने कितनो को उदास कर गया,
तेरे इंतजार मे सर का यह सेहरा मेरा ।
जहा पर रूकी हुई हो तुम अब तक ,
खुशियों का हर लम्हा, वही ठहरा मेरा ।
आज मेरे हिस्से मे घोर अँधेरा सही,
लेकिन कल होगा, सुनहरा सबेरा मेरा ।

नई है शुरुआत ---------------------------

जरूरी है मुलाक़ात समझा करो
नई -नई है शुरुआत समझा करो ।

सबकुछ कह तो नही सकता ,
दिल के जज्बात भी समझा करो ।

न नीद,न चैन,न करार है मुझे ,
सब मोहबत्त की सौगात समझा करो ।

ये सभी राजनीति के दांव-पेज हैं ,
इसके अजीब करामात समझा करो ।

यद्यपि है अँधेरा बहुत घना पर,
आएगा नया प्रभात भी समझा करो ।

Saturday, 18 April 2009

चंद पाकिस्तानी आये थे बोट लेकर --------------------------

चंद पाकिस्तानी आये थे बोट लेकर

अब तो सैकडो आ रहे हैं वोट लेकर ।



उन्हे कहा किसी का डर होता है ,

वे तो चलते हैं गांधी छाप नोट लेकर ।



अगले चुनाव तक कोई नही पूछे गा ,

जनता घूमती रहेगी अपनी चोट लेकर ।



जो नेता है,उसपर ऐतबार मत करना,

घूमता रहता है वह नीयत मे खोट लेकर

बेटी का बाप -----------------------

हर आहट पे कितना खबरदार है
बेटी का बाप मानो पहरेदार है ।

मोहल्ले की हर जवान खिड़की,
BAAREHO MAHINAY KHUSBOODAAR HAI .

JISY NAHI MILA ABHI TAK AVSAR,
VAHI KHUD KO KAHTA VAFAADAAR HAI .

JANHAA PAR PAISA AUR PAHUNCH HAI ,
VANHA KANHA KAANOON KOI ASARDAAR HAI .

Thursday, 16 April 2009

हर बात में -------------------

हर बात में वही बात जताते हैं
खुल के पूछो तो इठलाते हैं ।

किसी और से नही पर ,
मेरे आगे खूब इतराते हैं ।

मैने पूछा प्यार के बारे में,
वो हैं की बस बहकाते हैं ।

मन जो सुनना चाहता है,
उसी बात को सुन शर्माते हैं ।

कभी-कभी नाराज होता हूँ क्योंकि,
VO BADAY HI PYAAR SAY MANAATAY HAIN ।

न पूछो तुम जुदाई का सबब --------------------------

झूठी तारीफों से मान जाते हैं


सच बोलूँ तो खफा होते हैं ।





मिलने का तो ऐसा है कि,


खयालो में हर रोज आते हैं ।





न पूछो तुम जुदाई का सबब,


BADEE TANHA BADEE BECHAIN RAATAY HAIN .





YOON TO MUJHSAY BAHUT DOOR HAI PAR,


USI KO SABSAY KAREEB PAATAY HAIN .





AAP JISAY KAHTAY HAIN GAZAL,


VO TO DARD SAY RISHTAY-NAATAY HAIN .

Wednesday, 15 April 2009

मेरी पहली शोक सभा ------------------------------------

बात उन दिनों की है जब मैं मंच संचालक के रूप में अपनी नई-नई पहचान बना रहा था । हर वक्त बरसाती मेंढक की तरह संचालन करने के लिये तैयार। जेब के अंदर पैसे भले ना हो,लेकिन हर तरह के कार्यक्रम के लिये संचालन की सामग्री अवस्य रहती थी । पंचिंग शेर,सूक्ति वाक्य और छोटी-छोटी बोधगम्य कहानिया ।
एक शाम अचानक शहर के माने -जाने समाजसेवी और मेरे महाविद्यालय के मानद सचिव श्री विजय नारायण पंडित जी का फ़ोन आया । मुझे तुंरत महाजन वाडी हाल में पहुचना था,किसी कार्यक्रम का संचालन करने के लिये । मैं इतना खुश हुआ कि यह भी पूछना जरूरी नहीसमझा कि आख़िर किस तरह के कार्यक्रम में जाना है ।
तुंरत तैयार हो कर मैं यथा स्थान पंहुच गया । वहा देखा तो अजीब ही माहौल था । सब के चेहरे पर मनहूसियत छाई थी । मुझे कुछ आशंका हुई तो मैने विजय भाई से धीरे से पूछा ,"भईया कार्यक्रम क्या है ?" विजय भाई बोले,"मनीष अपने श्यामधर पाण्डेय जी के पिताजी का स्वर्गवास हो गया है,उसी लिये शोक सभा बुलाई गई है । "यह सुनकर मेरे तो कान खड़े हो गये । मैने अभी तक किसी शोक सभा का संचालन नही किया था । संचालन तो दूर मैं किसी शोक सभा मे सहभागी भी नही हुआ था । अब क्या करू ? फ़िर जिनकी यह शोक सभा थी उनसे तो मेरा दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध भी नही था । उनके बारे मे मुझे कुछ भी मालूम नही था । पर मरता क्या न करता ,मैने भी भगवान् का नाम ले माइक थामा ।
मेरा पहला वाक्य था -आप सभी आमंत्रित अतिथियों का मैं इस शोक सभा मे हार्दिक स्वागत करता हूँ । मैने इतना बोला ही था कि विजय भाई ने पीछे से आवाज दी । जब मैं उनके पास पहुँचा तो वे मेरे कान मे बोले -क्या कर रहे हो ? शोक सभा मे स्वागत नही किया जाता ,वो भी हार्दिक ------------------
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ ,डरते-डरते फ़िर माइक के सामने गया । उसके बाद क्या-क्या बोल गया था ,अब याद नही है । लेकिन शोक सभा ख़त्म होने के बाद कई लोगो ने मुझे कुशल संचालन के लिये बधाई दी । शोक संतप्त परिवार के लोगो ने मेरे प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित की ।
इस तरह मेरे जीवन की पहली शोक सभा पूरी हुई .जो मैं कभी भूल नही सकता ।

Tuesday, 14 April 2009

सुहानी शाम दिलकश रात हो -----------------------


सुहानी शाम दिलकश रात हो

ऐसे में मिलो तो क्या बात हो ।


जो गजलो में अच्छा लगता है
तुम बिल्कुल वही जज्बात हो ।


तुम्हारी अदावो का कहना क्या
मैं डाल-डाल तुम पात-पात हो ।


कह दूंगा दिल की हर एक बात मैं
अब जब भी तुमसे मुलाक़ात हो ।

अमरकांत की आर्थिक सहायता और हिन्दी समाज

यंहा उन खबरों का हवाला है जिनके माध्यम से यह साबित होगा की हिन्दी के लेखको की आर्थिक स्थिति कितनी गड़बड़ रही है । साथ ही साथ यह भी समझना होगा की परिवार के लोगो द्वारा बीमारी के नाम पर पैसा बटोरना कहा तक सही है । आप जो खबर नीचे अंग्रजी में पढ़ रहे हैं ,उसका सम्बन्ध हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत से है ।
http://news.oneindia.in/2008/05/03/aid-for-ailing-hindi-writer-1209801777.html
Saturday, May 03 2008 13:08(IST)
Bhopal, May 3: Noted Hindi writer Amarkant, who was ailing for a long time, has been provided financial assistance of Rs one lakh by Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan.The 83-year-old prolific writer is a recipient of Madhya Pradesh Government's National Maithili Sharan Samman.
Wishing him fast recovery, Mr Chouhan stresed on the ned to take care of the health and problems of the writers, official sources said.Mr Amarkant has a number of novels to his credit including the famous book entitled 'Sukhjeevi'. His story collection 'Zindagi Aur Jaunk' is very popular. He has also penned many stories for children.He is recipient of various prestigious awards, including the Soviet Land Nehru Award, Yashpal award, Jan Sanskriti Samman and has also been honoured by Uttar Pradesh Hindi Sansthan
यह समाचार पढ़ कर आप यह तो समझ गये होंगे की अमरकांत जिन बातो से पूरी उम्र बचते रहे ,अब अपने अन्तिम समय में उन्ही बातो को झेलने के लिये लाचार हैं।
अमरकांत जी से मेरी पहली मुलाकात २००६ में उनके इलाहबाद स्थित मकान में हुई । उन दिनों अमरकांत गोविंदपुर के एल.आई.जी.मकान में रहा करते थे.साथ ही उनके बेटे (अरविन्द)और बहु भी रहा करते थे । अरविन्द अमर कृत प्रकाशन चला रहे थे और बहाव नामक पत्रिका का सम्पादन भी कर रहे थे । कुल मिलाकर आमदनी का कोई ठोस आधार नही था। उपर से अमरकांत जी बीमार रहते थे । आज की तारीख में उनकी दवाओं पर हर दिन ५००० खर्च हो रहा है । ऐसे में मजबूर हो कर अमरकांत ने अपनी आर्थिक सहायता के लिये अपील जारी की।
इस अपील को ले कर साहित्य जगत में हंगामा मच गया। मदद तो दूर की बात लोगो ने इसे पैसे कमाने का हथकंडा मानकर इसके विरुद्ध लिखना शुरू किया । दो तरह की बाते सामने आई । कुछ सरकारी संस्थानों से मद्दद भी मिली तो कईयों की आलोचना भी सहनी पड़ी ।
मैं ने अपना शोध कार्य हाल ही मे अमरकांत पर ही पूरा किया है । मैं अमरकांत की हालत से अच्छी तरह परिचित हूँ । उन्हे सच में आर्थिक सहायता की जरूरत है । ऐसे में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की अगर हम उनकी कोई मदद नही कर सकते तो हमे उनका निरर्थक विरोध भी नही करना चाहिये .

हिन्दी कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/sds/index.htm

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(१९२७-१९८३)
जन्म : १५ सितम्बर १९२७ बस्ती उत्तर प्रदेश में।शिक्षा : वाराणसी तथा प्रयाग विश्वविद्यालय में।कार्यक्षेत्र : अध्यापन, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, दिनमान के उपसंपादक और पराग में संपादक रहे। साहित्यिक जीवन का प्रारंभ कविता से। दिनमान के 'चरचे और चरखे' स्तम्भ में वर्षो मर्मभेदी लेखन-कार्य। कला, साहित्य, संस्कृति और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी। कविता के अतिरिक्त कहानी नाटक और बालोपयोगी साहित्य में महत्वपूर्ण लेखन। अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। १९७२ में सोवियत संघ के निमंत्रण पर पुश्किन काव्य समारोह में सम्मिलित।
२४ सितंबर १९८३ को आकस्मिक निधन।
प्रमुख रचनाएँ :काव्य-संग्रह : काठ की घाटियाँ, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, कविताएँ १, कविताएँ २, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग।उपन्यास : उड़े हुए रंगलघु उपन्यास : सोया हुआ जल, पागल कुत्तों का मसीहाकहानी संग्रह : अंधेरे पर अंधेरानाटक : बकरी बाल साहित्य : भों भों खों खों, लाख की नाक, बतूता का जूता, महंगू की टाई।यात्रा वृत्तांत : कुछ रंग कुछ गंधसंपादन : शमशेर, नेपाली कविताएँ ।
यह तो वह जानकारी है जो गूगल के माध्यम से हमारे लिये उपलब्ध है । लिंक के अंतर्गत इसके बारे में विस्तार से पढ़ा जा सकता है । साथ ही साथ हमे यह भी समझना होगा की सर्वेश्वर जैसे कवियों पर हमे आलोचना के नवीन मापदंड अपनाने होंगे । नई कविता और नई कहानी की चार दिवारी के बीच अमरकांत और सर्वेश्वर जैसे साहित्यकारों को बाँधा नही जा सकता ।
आजादी के बाद के मोहभंग ,निराशा ,कुंठा ,अवसरवादिता ,भाई -भतीजावाद और शोषण की स्थितियों के बीच ही सर्वेश्वर ने ऐसी कविताये भी रची जो उन्हे उनके समकालीनों से अलग एक नया मकाम देती हैं । अपनी कविताओ के माध्यम से सर्वेश्वर ने समकालीन समाज का चित्र ही नही खीचा अपितु सामान्य जन मानस के अंदर नई शक्ति संजोने का भी काम किया ।
आप की कविता सिर्फ़ निराशा और हताशा को नही दिखाती ,बल्कि समाज को अपने यथार्थ से परिचित करा कर उन्हे आने वाली परिस्थितयों के प्रति सजग भी बनाती हैं ।

तेरे बाद तो अबतक -----------------------

किनारों पे टूट जाती है हर लहर तनहा
जाने किसको तलाशती हर पहर तनहा ।

बिन सीता,राम भोग रहे हैं वनवास
कितना मुश्किल है यह सफ़र तनहा ।

अपनी छोड़ हमने सब की सोची
उधर वो,रहे इधर हम भी तनहा ।

ख्वाब कैसे सजे कोई आँखों में
तेरे बाद अब तक रही नजर तनहा ।

कोई मिले तो उसका हाँथ थाम लेना
जिंदगी न होगी इसकदर बसर तनहा ।

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...