उसे जब देखता हूँ
तो बस देखता ही रह जाता हूँ
उसमें देखता हूँ
अपनी आत्मा और शरीर का विस्तार
अपने सपनों का सारा आकाश
साकार से निराकार तक की
कर लेता हूँ सम्पूर्ण यात्रा
बुझा लेता हूँ
आँखों की प्यास
और जगा लेता हूँ
अपनी साँसों में आस
कभी लिख तो नहीं पाया मैं
सौंदर्य की कोई परिभाषा लेकिन
तुम से मिल के समझ गया हूँ कि
ऐसी कोई परिभाषा
तुम्हारे बिना अधूरी ही रहेगी
मानो सुंदरता को भी पूर्ण होने के लिए
तुम्हारी ज़रूरत है
तुम जब भी पूछती हो कि –
“ मैं कैसी लगती हूँ ?”
मैं मानता हूँ कि
तुम्हें
उस सौंदर्य की तलाश होती है
जो
बसती है मेरी आँखों में
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
वो
समर्पण का भाव
जिसकी
हक़दार
सिर्फ़
और सिर्फ़ तुम रही हो
खींच
के देखती हो
उस
रिश्ते की गाँठ को
जिसका
नाम है – विश्वास
इसलिए
उसके सवाल के जवाब में
हमेशा
कहता हूँ –
सुंदर, बहुत ही
सुंदर
और यह सुन
मुस्कुरा देता है
तुम्हारा
पूरा शरीर
तुम्हारा
मन
और
मुझे लगता है
मैंने
तुम्हारे अंदर
ख़ुद
को
थोड़ा
और सार्थक कर लिया
क्योंकि
तुम्हारा प्यार
मेरी
सार्थकता है ।
-------------- Dr. Manish Kumar Mishra
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..