एक
दिन थोड़े गुस्से में
उसने
कहा –
मैं
उतनी पागल नहीं हूँ
जितना
की तुम समझते हो
मैंने सोचा कि कह दूँ –
तुम्हें
मानता हूँ
ख़ुद
से बहुत जादा
तुम्हें
चाहता हूँ
ख़ुद
से बहुत जादा
तुम्हें
सोचता भी हूँ
ख़ुद
से कंही जादा
यहाँ
तक कि ख़ुद को
तुम्हारे
बिना
कुछ भी नहीं मान पाता
हाँ
तुम्हारी उपस्थिति ने
इतना
विश्वास दे दिया है कि
लापरवाह
हो गया हूँ थोड़ा
थोड़ा
आलसी भी
मान
लेता हूँ कि
तुम
सब जानती हो
तुम
सब समझती हो
इसलिए
कहता नहीं कुछ
सुन
के अनसुना करता हूँ
मुस्कुरा
देता हूँ
पर
खिलखिलाता नहीं
और
तुम समझती हो कि
मैं
तुम्हें पागल समझता हूँ ।
दरअसल
तुम हो पागल
मेरे
प्यार में पागल हो
और
मैं जितना समझता हूँ
उससे
कंही अधिक पागल हो ।
सोचा उससे यह सब कह दूँ
लेकिन
लेकिन
वो
अभी पास से गुजरी
मैं बस मुस्कुरा दिया
पर
वह खिलखिला उठी थी ।
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