आदत है बहकने की, बहक
जाता हूँ
उसे जब भी देखता हूँ, दहक जाता हूँ
मुँह तोड़ देता हूँ, सभी के सवालों का
पर सामने उसके ही मैं, हिचक जाता हूँ
पास मेरे हैं, तनहा रातें, यादें, बातें
इनमें उसकी ख़ुशबू है, सो महक जाता हूँ
वो जब रोशनी की शहतीरों सी
बिखरती है
मैं भोर के पंछियों की तरह ,चहक जाता हूँ
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