Wednesday, 19 September 2012

मेरी प्रमुख कवितायें


1.   जब कोई किसी को याद करता है 
मैंने सुना है क़ि-
जब कोई किसी को याद करता है
तो आसमान से एक तारा टूट जाता है
लेकिन अब मुझे इस बात पर,
यक़ीन बिलकुल भी नहीं है क्योंकि -
अगर सच में ऐसा होता तो ,
अब तक सारे तारे टूटकर,
जमीन पर गए होते
आखिर इतना तो याद,
मैंने तुम्हे किया ही है  














2.   अलसायी सी अंगड़ाई के साथ

अलसायी सी अंगड़ाई के साथ
आज उन्होने फोन पे बात की
हाल पूछ कर ,
उन्होने बेहाल किया
उनकी खुली-खुली ज़ुल्फों का,
वो मखमली ख़याल ,
मुझे फिर से बहला गया
कोई दर्द पुराना था,
जिसे फिर से,
आज वो जगा गया
उसकी हर बात,
कविता सी है
उसने जब भी बात कि
मैं एक कविता लिख ले गया
ये सब प्यार का असर है वरना,
वो कहाँ , मैं कहाँ और कविता कहाँ
तनहाई यूं तो ,
सबसे बड़ा हमसफर है लेकिन
बिना उसके कुछ अधूरा रह गया

3.   आज मेरे अंदर रुकी हुई एक नदी

आज  मेरे अंदर  रुकी हुई एक  नदी
सालों बाद फिर बहने के लिए तैयार हुई
किसी के स्नेह का हिमालय
अपनेपन की ऊष्मा के साथ
मेरे लिए पिघलने को तैयार है .

वो पिघलेगी तो
मुझे तो बहना ही होगा /चलना ही होगा
उसके प्यार में लबालब होकर
उसके अंदर खुद को बसाकर
खुद को मिटाकर भी
उसी के खातिर बनना है
परिमल,विमल -प्रवाह.

उसी का होकर
उसी में खोकर
उसी के साथ
जी लूँगा तब तक
जब तक क़ि वह देती रहेगी
अपने प्रेम और स्नेह का जल
अपनेपन क़ी ऊष्मा के साथ .

4.   आज अचानक हुई बारिश में
आज अचानक हुई बारिश  में
भीगते हुए बुरा लग रहा था

क्योंकि वो बारिश याद रही
जिसमे एक छाते मे सिमटकर

हम बारिश से बच तो रहे थे
मगर भीग भी रहे थे

एक – दूसरे के साथ
एक – दूसरे के प्यार में ।



















5.  आज अपने जन्मदिन पे

आज अपने जन्म दिन पे,
रोज की तरह कॉलेज गया .
क्लास रूम में ही
मोबाईल की घंटी बजने लगी,
बधाई सन्देश थे

किसी ने पूछा-केक काटा ?
मैंने कहा- नहीं जी,
 महाविद्यालय में बच्चों के नंबर काट रहा हूँ .
सामने से फिर प्रश्न्  हुआ -आज कुछ खास ?
मैंने कहा -हाँ ,हिंदी की क्लास कोई नहीं बैठता,लेकिन सब पास हैं  .

मैंने बताया –
मुझे आदर्श शिक्षक का पुरस्कार दिया जा रहा है .
सामने वाले ने कहा-अच्छा ,कमाल है !!
मैंने भी कहा
हाँ,कमाल तो है .














6.  आज जब वैलेंटाईन डे  है

आज जब वैलेंटाईन डे  है,

यार, बस तुम ही याद आयी हो

इतने सालों बाद भी,

राख़ के नीचे दबे अंगार सी ,

तुम ही, बस तुम ही याद आयी हो

टूटे सपनों और रिश्तों के बावजूद ,

हर साँस के साथ छूटी आस के बावजूद ,

किसी और का होने, हो जाने के बावजूद,

सालों बिना किसी मुलाक़ात के बावजूद ,

अब मोबाईल में तुम्हारा नंबर होने के बावजूद,

आज जब वैलेंटाईन डे है ,

यार, बस तुम ही याद आयी हो

ऐसा इसलिए क्योंकि ,

वो जो हमारे बीच का विश्वास था

वो आज भी कायम है और

हमेशा रहेगा

इसलिए जब भी  वैलेंटाईन डे आयेगा,

जब भी प्यार की बात होगी

शुभे,
 बस तुम ही याद आओगी








































7.   जीवन  के  तीस वसंत के बाद

जीवन  के  तीस वसंत के बाद

जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो

कई मुस्कुराते चेहरों को पाता हूँ

लगभग हर आँख में ,

अपने  लिए प्यार पाता हूँ

अपने लिए इंतजार पाता हूँ

कुछ अधूरे सपनों की कसक पाता हूँ

संतोष और अपार सुख पाता हूँ

फिर जब आगे देखता हूँ तो

कईयों की उम्मीद देखता हूँ

कई-कई अरमान देखता हूँ

वादों का भारी बोझ देखता हूँ

किसी को खुश, किसी को नाराज देखता हूँ

फिर जहां खड़ा हूँ

वहाँ से आज तीस वसंत बाद,

जब खुद को आँकता हूँ तो ,

उस परम सत्ता की कृपा के आगे

नत मस्तक होते हुए

इस जीवन के लिए धन्यवाद देता हूँ

और प्रणाम करता हूँ उन सभी को जिन्होने ,

मुझे अपने प्रेम और घृणा

विश्वास और अविश्वास

आशीष और श्राप

इत्यादि के साथ

अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया और

आज जीवन के इस पड़ाव पर ,

मेरे लिए अपार सुख और संतोष के नियामक बने

आभारी हूँ मैं सभी का 

आभारी हूँ उसका भी जो ,

मेरे अंदर मेरी बनकर रहती है

मेरे अंदर शक्ति का संचार करती है

वो जिसकी गर्मी प्राणवायु सी लगती है

वो जिसके लिए,

दुनिया को सुंदर बनाने का मन करता है

जिसके लिए सब कुछ सहने का मन करता है

वो जो सुंदर है ,

वही मेरा सत्य है

ये वही है जो ,

सब कुछ अच्छा बना देती है

सब को मेरा बना देती है

सब को माफ कर देती है

सब के बीच मुझे बाँट देती है

आज इतने लोगों में बट गया हूँ कि

उसी से दूर हो गया हूँ

 जिसकी ऊष्मा से

दुनिया बदलने की ताकत रखता हूँ



















8.   आजकल  इन पहाड़ों के रास्ते

आजकल इन पहाड़ों के रास्ते

शाम को कोहरे से भरे होते हैं

जैसे मेरा मन

तेरी यादों से भरा होता है ।































9.   इन पहाड़ों मेँ आकर

इन पहाड़ों मेँ आकर,
तुम्हें बहुत याद कर रहा हूँ
ये फूल, ये झरने और ये सारी वादियाँ
तुम्हारी ही  याद दिला रही हैं

यहाँ हर तरफ सुंदरता है ,
पवित्रता, निर्मलता और शीतलता है
फिर तुम्हें तो यहीं होना चाहिए था ,
सब कुछ तुमसा ही  तो है ,

तुम्हें यहीं होना चाहिए था
मेरे साथसाथ यहाँ सभी को शिकायत है ,
तुम्हारे यहाँ होने की शिकायत

अजीब सा सूनापन है ,
तुम्हारे बिना मेरे अंदर ही ,
एक अधूरापन है

जिसे कोई पूरा नहीं कर सकता ,
सिवाय तुम्हारे















10. इन रास्तों का अकेलापन

इन बर्फीली सर्द वादियों में
आज अकेले खामोश से रस्तों पे
बहुत दूर तक चलता रहा

इन रास्तों का अकेलापन
बिलकुल मेरे अकेलेपन जैसा है
धुंधलके और इंतजार से भरा हुआ

बर्फ बेबसी की है
धुंधलका अनिश्चितता का
और रास्ता सिर्फ उम्मीद का

मैं और ये रास्ते
किसी के इंतजार में हैं
हमें किसी का इंतजार है
















11.  उँगलियों पे कुछ रंग छोड़ कर चली जाती हैं

उँगलियों पे कुछ रंग ,
छोड़ कर चली जाती हैं
रंगीन तितलियाँ,
 दिल तोड़कर चली जाती हैं


पहले जिनकी  साँसों में
बसते थे हम ,
वो पारियाँ अब
 मुह मोड़कर चली जाती हैं

उनसे मिलना भी,
 दुश्वार हो गया अब ,
जिनके दिल  तक,
 हमारी  सदाएं चली जाती हैं















12.  एक वैसी ही लड़की


एक शाम अकेले
जाने-पहचाने रास्तों पर
अनजानी सी  मंजिल  की तरफ
बस समय काटने के लिए बढ़ते हुए
देखता हूँ
एक वैसी ही लड़की

जैसी लड़की को
मैं  कभी प्यार किया करता था

उसे पल भर का देखना
उन सब लम्हों को देखने जैसा था

जो मेरे     अंदर,
        तब  से  बसते  हैं
जब  से  उस  लड़की से,
  मुलाकात  हुई  थी
जिसे  मैं  प्यार  करता था

उस  एक पल  में
मैं जी  गया  अपना  सबसे,
  खूबसूरत  अतीत
और  शायद  भविष्य  भी  .

वर्तमान  तो  बस  तफरी  कर रहा था
लेकिन  उस  शाम की  याद
  जाने  कितने  जख्मों  को हवा  दे  गयी
काश क़ि
 वो   लड़की ना  मिलती  .


13. कल रात इन पहाड़ों पे

कल रात इन पहाड़ों पे ,जम के बरसात हुई
सुबह कोहरे की चादर लपेटे,देवदार अलसाये दिखे

हवाओं में घुली गुलाबी ठंड और ,
कली- कली में, एक शर्माती सी शरारत दिखे

अपने आप में लिपटे-सिमटे लोग ,
कुछ निखरते तो कुछ लोग तरसते से दिखे

फूल,तितली और स्कूल जाते हुए बच्चे,
सब के सब मुझे , मुस्कुराते से दिखे

अपनी साँसो में सिगरेट की गर्मी लिए ,
हम भी किसी की याद में, खोये से दिखे  

















14 . काश तुम मिलती तो बताता


यूं ही तुम्हे सोचते हुए
सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं
फिर उस चेहरे में ,
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं .

तुझे इसतरह बनाते और सवारते हुए,
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा
पर जब भी कोशिश की,
हर बार नाकाम रहा .

कोई भी रंग,
कोई भी तस्वीर,
तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू--हू तुझ सा ,
तो बस तू है या  फिर
तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है .

वो अक्स जिसमे
प्यार के रंग हैं
रिश्तों की रंगोली है
कुछ जागते -बुझते सपने हैं
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है
और इन सब के साथ ,
थोड़ी हवस भी है .

इन आँखों में ही
तू है
तेरा ख़्वाब है
तेरी उम्मीद है
तेरा जिस्म है
और हैं वो ख्वाहीशें ,
जो  तेरे बाद
तेरी अमानत के तौर पे
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
अब किसी और की जिन्दगी है.
इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से
मेरा बाहर रहना ही बेहतर है .

लेकिन ,कभी-कभी
मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि-
काश
-कोई मुलाक़ात
-कोई बात
-कोई जज्बात
-कोई एक रात
-या क़ि कोई दिन ही
बीत जाए तेरे पहलू में फिर
वैसे ही जैसे कभी बीते थे
तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे
तेरे सुर्ख लबों के साथ
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .

इंसान तो हूँ पर क्या करूं
दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .

और यह सब इस लिए क्योंकि ,
हर आती-जाती सांस के बीच
मैं आज भी
तेरी उम्मीद रखता हूँ .

इन सब के बावजूद ,
मैं यह जानता हूँ क़ि-
मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे
बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
और छोड़ देती हैं हम जैसों को
अश्वत्थामा की  तरह
जिन्दगी भर
मरते हुवे जीने के लिए
प्यार क़ी कीमत ,
चुकाने के लिए
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए

काश, तुम मिलती तो बताता,
क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
तुम्हारे ही अंदर  ।























15  . शिकायत सब से है लेकिन

जो कहनी थी ,
वही मैं बात,
यारों भूल जाता हूँ
किसी क़ी झील सी आँखों में,
 जब भी डूब जाता हूँ  

नहीं मैं आसमाँ का हूँ,
कोई तारा मगर सुन लो
किसी के प्यार के खातिर,
मैं अक्सर टूट जाता हूँ

शिकायत सब से है लेकिन,
किसी से कह नहीं सकता
बहुत गुस्सा जो आता है,
तो खुद से रूठ जाता हूँ

किसी क़ी राह का कांटा,
कभी मैं बन नहीं सकता
इसी कारण से मफिल में,
अकेला छूट जाता हूँ

मासूम से सपनों क़ी मिट्टी,
का घड़ा हूँ मैं,
नफरत क़ी बातों से,
हमेशा फूट जाता हूँ .

   




        16. जाते हुए इस साल में भी


जाते हुए इस साल में भी
तेरा सिलसिला कायम रहा
आनेवाले इस साल में भी,
तेरी ही जुस्तजू रहेगी

मेरे मौला
मेरी ज़िंदगी का कोई साल
उसके बिना ना हो

वो जो
ज़िंदगी का ख़्वाब है
ख्वाइश है
उम्मीद है
ज़रूरत है
इंतजार है
सपना है 
प्यार है
और मेरा विश्वास है ।   












         17. उसने कहा
  
मैंने उस दिन ऐसे ही कहा कि-
तुम बड़ी चालाक हो,
सब के साथ कोई न कोई रिश्ता बनाकर रखती हो
इस पर उसने फिर कहा
तुम्हारे साथ कौन सा रिश्ता है ?
मैंने कहा
 प्यार, विश्वास और दोस्ती का
उसने कहा -
  प्यार मैं तुम्हें करती नहीं
विश्वास तुम मेरा तोड़ चुके हो
और जिस पर विश्वास न हो,
 वह दोस्त कैसा ?
उसकी बातें कड़वी थी,
पर सच्ची थी 
मेरी खामोशी ने,
 उसे पिघलाया और वह बोली
मेरा तुम्हारे साथ अतीत का रिश्ता है,
जो वर्तमान मे अपनी पहचान खो चुका है
लेकिन मेरा वर्तमान और भविष्य ,
मेरे अतीत से बेहतर नहीं है
 और हो भी जाए तब भी ,
 अतीत की बातें मैं,
 भूल नहीं सकती
क्योंकि मैं 
 सबके साथ, कोई न कोई रिश्ता
बना कर रखती हूँ .




          18. नए साल से कह दो कि

मेरी ज़िंदगी में,
आने वाले हर,
नए साल से कह दो कि-

वह बिलकुल तुम्हारी तरह हो
शोख, चंचल और मासूम  
इतनी मुलायम और मख़मली,
जितना कि प्यार का हर सपना  
और इतनी गर्म भी ,
जितनी  कि  ज़िंदगी की सांसें

नए साल का रिश्ता,
      उम्मीदों से वैसा ही हो,
जैसा कि हम दोनों का सालों से है

नए साल की हर आहट,
तेरे कदमों की आहट सी हो  
नए साल में सुलझाना हर उलझन का ,
आसान हो उतना ही जितना कि -
तेरी रेशमी ज़ुल्फों का सवर जाना

तेरी आँखों में बसे हर मासूम सपने की तरह,
दुनिया बनती रहे  
सजती रहे  
सवरती रहे

 आने वाला हर नया साल ,
तुम्हारी तरह प्यार से भरा हो  
तुम्हारी तरह ही  खास हो

तुम्हारी तरह ही मुस्कुराता हुआ ,
ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जीने का,
ख़ूबसूरत पैगाम हो ।



























          19. तुम्हें याद करते हुए

वो सब अच्छाइयाँ जिसे ,
लोग मेरी कहते हैं
दरअसल,
तुम्हारी वो बातें हैं
जिन्हे मैंने अपनाया,
तुम्हें खो देने के बाद ।



















         20. चाय का कप

 चाय का कप
 अपने ओठों से लगाकर
 वो बोली –

तुम चाय अच्छी बनाने लगे हो
वैसी  ही जैसी  कि -
मुझसे बातें बनाते हो 

फिर एक चुस्की के बाद
मुस्कुरा के कहा –

उतनी ही गरम है
जितना अपना रिश्ता 

मैंने पूछा –
मीठी कितनी है ?

उसने शर्माते हुए कहा
जितने की तुम्हें आदत है
और जितनी मैं ,
तुम्हें पीने देती हूँ ।




   

        21. तौलिया

 बाथरूम में जाते हुए
 याद तो हमेशा रहा कि-
 तौलिया लेकर अंदर जाना है

पर उसे अंदर ले जाना
भूल जाने का
एक नियम सा बन गया था

तब तक कि
जब तक मेरी आवाज़ पे
तेरा चले आना
संभव था ।


















        22. मोबाईल

तुम्हारे बारे में सोचते हुए
आदतन, बार-बार  
मोबाईल को जेब से निकाल कर
देख लिया करता था 

यह सोच करके कि
कंही तुम्हारा कोई काल
मैं मिस ना कर दूँ

हंसी आती है
यह सोच के कि
मैं कितना मिस करता था ।













    23. हम लोगों को छोड़ कँही


हम लोगों को छोड़ कँही, चले गए हैं बाबू जी
सब  कहते हैं नहीं रहे अब, प्यारे हमारे बाबू जी .

बचपन क़ी सारी यादों में, बसे हुवे हैं बाबू जी
डांट-डपटकर सिखलाते थे, अच्छी बातें बाबू जी .

अपने ''चेतक '' स्कूटर पर,कालेज जाते बाबू जी
धोती- कुरते में जचते ,बहुत ही अपने बाबू जी .

पंचतंत्र क़ी कई कहानियां,बतलाते थे बाबू जी
कवितायेँ भी कई हमे, सिखलाते थे बाबू जी

संध्या-वंदन -पूजा-पाठ, मंदिर में करते बाबू जी
गाँव  में सब का ही आदर,पाते हमारे बाबू जी

पान-सुपारी-सुरती-चूना, चाव से  खाते बाबू जी
''बी.बी.सी. लंदन क़ी खबरें '', सुनकर ही सोते बाबू जी

गलती  हमसे जब हो जाती, डांट लगाते बाबू जी
वरना  अपनी ही थाली में, हमे खिलाते बाबू जी

रोज रात को बड़े प्यार से, बदन मिजवाते बाबू जी
रह- रह कर  आशीष भी देते,अक्सर हमको बाबू जी

जब भी हम सब गाँव में जाते, खुश हो जाते बाबू जी
 रोज रात को पास ही अपने, हमे सुलाते बाबू जी

सुबह-सुबह दातून तोडकर,हमको देते बाबू जी
खेतों  में टहलाते हमको, साथ में अपने बाबू जी

''बड़का मास्टर'' सब थे कहते, हम कहते थे बाबू जी
घर के बाहर ,घर के रक्षक ,बन के बैठते बाबू जी

अब जब भी हम गाँव जायेंगे,नहीं मिलेंगे बाबू जी
जाते-जाते रुला गएँ हैं,सब को देखो बाबू जी

 जिम्मेदारी का मतलब, सिखा गए हैं बाबू जी
हम-सब क़ी ही यादों में, बसे रहेंगे बाबू जी

अच्छी सारी बातों पर, मुस्कायेंगे बाबू जी
 अपनी बगिया के फूलों को, आशीष ही देंगे बाबू जी


हर मुश्किल में सपनो में, आ जायेंगे बाबू जी
 सही राह दिखलाकर हमको, खो जायेंगे बाबू जी

बिना आप के जी लेंगे, हम सब भी आखिर बाबू जी
 लेकिन याद बहुत आयेंगे, आप हमे तो बाबू जी .













    24. जाने क्या  सोचती  हो

जाने क्या  सोचती  हो,
तुम जब भी चुप रहती  हो  
खामोश आंसुओं से ,
कितना कुछ कहती हो ,
    तुम जब भी चुप रहती  हो . 


































25. वो शाम जो,तेरे पहलू में गुजर गयी

फिर ना आयी ,जाने किधर गयी
वो शाम जो ,तेरे पहलू में गुजर गयी .

वीरान हो गए हैं, अब गाँव सारे
 नई पौध तो ,कब की शहर गयी .

 तेरे पास लौटना तो चाहता हूँ
 पर जाने कंहा वह डगर गयी .

अब कौन  बदलेगा इस व्यवस्था को,
दिलों से इन्कलाब की वो लहर गयी .

हकीकत में सूख रहे हैं खेत सारे ,
 सिर्फ कागजों पे बनती नहर गयी .
























26. वही प्यार क़ी  कहानी


वही प्यार क़ी  कहानी ,
 हमे भी है दुहरानी
 मैं दीवाना किसी का,
 कोई मेरी है दीवानी.
                  वही प्यार क़ी ---------------------------

थोड़ी जानी-पहचानी ,
थोड़ी सी है अनजानी
रब ने मिलाया है तो ,
यारी हमको है निभानी  
               वही प्यार क़ी --------------------------------- 





















 

 
 27. तुम ने भी अगर धोखा दिया तो

तुमसे हर मुलाक़ात के साथ
फिर न मिल पाने का डर जुड़ा रहता है
तेरी बांहों में सिमटने के साथ,
तेरे बाद बिखरने का डर लगा रहता है
तेरी मोहब्बत में सब कुछ लुटाने के साथ,
खुद के कुछ होने न होने का डर लगा रहता है
बर्फ सी जम गयी इच्छाओं को,
तेरे प्यार की रौशनी में पिघलाने से डर लगता है
लेकिन
मन बहुत करता है कि-
 अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जी लूं
 दुनिया कि सारी रस्मों -कसमों से दूर
 अपने प्यार को ,
वो सब दूं जो सिर्फ मेरा है और जो ,
मैं सिर्फ उसे ही देना चाहता हूँ / था

 इतना सब कुछ सोचते हु भी ,
यह सोच कर सहम जाता  हूँ कि ,
 - सारी दुनिया के धोखे
  सह सकता  हूँ लेकिन ,
 तुम ने भी अगर धोखा  दिया तो -----

इस ख़याल से भी डर लगता है
तेरा होने के साथ-साथ ,
तेरे  साथ न होने का भी डर लगता है.












28. तुमसे बात करना

तुमसे बात करना

 कभी-कभी मुश्किल होता है-

 कविता लिखने  से भी अधिक

उस दिन मैंने यूं ही कहा कि-

काश ! तुमसी कोई दूसरी

 मेरी जिन्दगी में फिर आ जाती तो ,

जिंदगी का लुफ्त बदल जाता .

इसपर तुमने गुस्साते हु कहा-

तुम्हारी जिन्दगी में ऐसा कुछ नहीं होनेवाला ,

 क्योंकि मेरी जैसी कोई मिल भी गयी तो,

 तुम तो वही रहोगे .

















29. तुम्हारा हाथ हांथों से छूट जाने के बाद

जिन्दगी की दौड़ में
तुम्हारा हाथ हांथों से  छूट जाने के बाद
मैं हांफता रहा
अपनी आँखों से
 तुम्हे दूर जाता हुआ देखता रहा.

तुम्हारे बाद भी
 तुम्हारे लिए ही
 पूरी ताकत से दौड़ता रहा
 पर तुम कंही ना मिली .

वीरान रास्तों पर
अब भी चलता जा रहा हूँ
तुझे सोचते हु 
 तुझे चाहते हु
 तुम्हारी उम्मीद में
तुम्हारी ही तलाश में

एक ऐसी तलाश जिसमे
 जुस्तजू के अलावां
 और कुछ भी नहीं
खुद को छलने के सिवा
 और कुछ भी नहीं.
त्रिषिता की तृष्णा के सिवा
 कुछ भी नहीं ।









30. तेरा शहर बहुत याद आता है

तेरा शहर,
       बहुत याद आता है
 दिल तेरी ही यादों में,
 चैन पाता है .

 वो शमा ,
जिससे रोशन थी जिन्दगी,
 परवाना उसी में ,
जल जाना चाहता है.

अपनी आदतों से,
 परेशान हूँ यारों,
दिल ता उम्र
आवारगी चाहता है .
























31. तेरी आरजू मुझको



तेरी आरजू मुझको,
तुझ तक,
 खींच  ही  लाती है ।
आखिर तेरी बात ,
 वो बात नहीं ,
जो कि भूल जाती है ।
































32. तेरी उदासी का सबब जानता हूँ


तेरी उदासी का
सबब जानता हूँ

मैं प्यार का
हर रंग पहचानता हूँ ।

































33. तेरी यादों के चटक रंग

तेरी यादों के चटक रंग,
 इस होली पे भी याद आयेंगे
पल जो बीते थे तेरे संग ,
 इस होली पे भी याद आयेंगे ।

न जाने कितने सारे चेहरे,
कितने सारे  रंग साथ होंगे
पर तुम्हारे बिना कितने तन्हा,
कितने हम  तंग होंगे ।






























34. मनाने का भाव

       हिंदी दिवस 
       मनाने  का भाव 
       अपनी जड़ों को सीचने का भाव है    
       राष्ट्र भाव से जुड़ने का भाव है   
       भाव भाषा को अपनाने का भाव है  
      हिंदी दिवस
      एकता , अखंडता और समप्रभुता का भाव है   
      उदारता , विनम्रता और सहजता का भाव है  
      समर्पण,त्याग और विश्वास  का भाव है
      ज्ञान , प्रज्ञा और बोध का भाव है   
     हिंदी दिवस
 अपनी समग्रता में
     खुसरो ,जायसी का खुमार है
     तुलसी का लोकमंगल है 
     सूर का वात्सल्य और मीरा का प्यार है   
     हिंदी दिवस
     कबीर का सन्देश है 
     बिहारी का चमत्कार है 
     घनानंद की पीर है
     पंत की प्रकृति सुषमा और महादेवी की आँखों का नीर है   

    हिंदी दिवस
   निराला की ओजस्विता 
   जयशंकर की ऐतिहासिकता  
   प्रेमचंद का यथार्थोन्मुख आदर्शवाद  
   दिनकर की विरासत और धूमिल का दर्द है   

  हिंदी दिवस
  विमर्शों का क्रांति स्थल है 
  वाद-विवाद और संवाद का अनुप्राण है 
  यह परंपराओं की खोज है 
  जड़ताओं से नहीं , जड़ों से जुड़ने का प्रश्न है  
हिदी दिवस 
इस देश की उत्सव धर्मिता है 
संस्कारों की आकाश धर्मिता है
अपनी संपूर्णता  में,
यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है . 





































                      35. ब्रूउट्स यू टू


थोडे आंसूँ ,
थोडे सपने
और ढेर से सवालो के साथ्
तेरी नीमकश निगाहो में जब् देखता हूँ  
 बहुत तड़पता हूँ

इसपर तेरा हल्के से मुस्कुराना  ,
 मुझे अंदर -ही अंदर सालता है
 तेरा ख़ामोशी भरा इंतकाम ,
मेरे झूठे ,बनावटी
और मतलबी चरित्र के आवरण को
मेरे अंदर ही खोल के रख देता है.

मैं सचमुच कभी भी नहीं था
 तुम्हारे उतने सच्चे प्यार के काबिल
जितने के बारे में मैंने सिर्फ
 फरिस्तों और परियों की कहानियों  में पढ़ा था .

मैं तुम्हे सिवा धोखे के
 नहीं दे पाया कुछ भी.
और तुम देती रही
 हर बार माफ़ी क्योंकि
 तुम प्यार करना जानती थी.

मैं बस सिमटा रहा अपने तक
 और  तुम
खुद को समेटती रही
  मेरे लिए.
 कभी कुछ भी नहीं माँगा तुमने,

सिवाय मेरी हो जाने की
 हसरत के .

याद है वो दिन भी जब ,
तुमने मुझसे दूर जाते हुए
नम आखों और मुस्कुराते लबों के साथ
कागज़ का एक टुकड़ा
चुपके से पकडाया 
 जिसमे लिखा था-" ब्रूउट्स यू  टू ? ''

उसने जो लिखा था वो,
शेक्स्पीअर के नाटक की
 एक पंक्ति मात्र थी लेकिन ,
मैं बता नहीं सकता क़ि
वह मेरे लिए
 कितना मुश्किल सवाल था .
आज भी वो एक पंक्ति
 कपा देती है पूरा जिस्म
 रुला देती है पूरी रात.

खुद की  इस बेबसी को
 घृणा की अन्नंत सीमाओ तक
जिंदगी की आखरी सांस तक
जीने के लिए अभिशप्त हूँ.
 उसके इन शब्दों /सवालों के साथ कि
ब्रूउट्स यू  टू !
ब्रूउट्स यू  टू !
ब्रूउट्स यू  टू !

36. मैं हर शाम किसी के साथ हूँ .

  बस,
  इतनी सी बात पर
  बदनाम हूँ 
  मैं ,
  हर  शाम
  किसी  के  साथ   हूँ


































37. मैं भी चुप था

मैं भी चुप था,
 वो भी चुप थी 
फिर हो गई कैसे ,
बात न जानूँ

इधर लगन थी,
उधर अगन थी,
लग गई कैसे,
 आग ना जानूँ

ना जाने कितने फूलों पर,
बन भवरा मैं ,
मंडराया हूँ
पर क्यों ना मिटी,
ये प्यास ना जानूँ  

जिस मालिक के
 हम सब बच्चे,
है राम वही ,रहमान वही
फिर आपस में खून -खराबा
क्यों हो बैठा मै ना जानूँ










38. याद तो आती ही है

 आती-जाती हर सांस के साथ ,
 बीते हु कल क़ी बात के साथ,
 किताबों  में सूखे गुलाबों के साथ ,
 जागती  आँखों के ,
 भीगे हु ख्वाबों के साथ,
 याद तो  आती  ही है .
































39. हल्का-हल्का जाने कैसा

छुई-मुई सी सिमट गई,
तुम जब मेरी बांहों में
तपन से तेरी सांसों की,
बना दिसम्बर मई प्रिये

हल्का-हल्का जाने कैसा,
दर्द उठा था मीठा सा .
एक दूजे से मिलकर ही,
हम तो हुए थे पूर्ण प्रिये .






























40. पहला प्यार




 पहला प्यार ,
  आखिर यह जब भी होता है,
  पहला ही होता है


शायद यही कारण है कि
 यह इतना आकर्षक और मोहक होता है
 शाश्वत भी यह ,
 इसी कारण होता है  


नव पर नव की अभिलाषा,
 प्यार में ही संभव है 
 आगे बढ़ना ही,प्यार है 
  नया ही प्यार है 


पहला प्यार ,
 दरअसल भ्रम है
 प्यार हमेशा ही ,
  पहला ही होता है












 41. होली जब भी आती है


होली जब भी आती है
 उसकी यादें लाती है .
 उसे बाँहों में भरने का,
 वही एहसास लाती है


नजर सब क़ी बचाती है
 नजर मुझसे मिलाती है
 इशारों ही इशारों में,
 हँसी पैगाम देती है

हमजोली क़ी टोली आती
 साथ में नखरे वाली आती
 छू के मेरे गालों को,
 वो हलके से शरमाती है .

होली जब भी आती है--------------


                                     
           










42. कोई ख्वाबों में आता है

कोई ख्वाबों में आता है  
 कोई नीदें चुराता है  
 चुरा के चैन वो मेरा,
 मुझे बेचैन करता है   

 वहां पे वो अकेली है 
 यहाँ पे मैं अकेला हूँ
 उसे मुझसे मोहब्बत   है,
 मुझे उससे मोहब्बत  है  
  
 खामोश रहती है,
 कभी वो कुछ नहीं कहती .
 यहाँ पे मैं तड़पता हूँ,
  वहां पे वो तड़पती है

बादल जब बरसते हैं,
 हम कितना तरसते  हैं ?
 यहाँ पे मैं मचलता हूँ,
 वहां पे वो मचलती है

 सर्दी क़ी रातों में,
  अकेले ही कम्बल में .
  यहाँ पे मैं सिकुड़ता हूँ,
  वहां पे वो सिकुड़ती है .
                कोई ख्वाबों में ---------------------------------------   









43.  बार -बार उन्ही से मिला रहा है



वह
       बहुत याद रहा है
शायद मुझे
       पास बुला रहा है

हर पल ,
खयालो मे आकर ,
गम जुदाई का बढ़ा रहा है

उसके हाथ मे,
है मेरी डोर ,
जैसे चाहे,
वैसे नचा रहा है

कुछ रब ने ,
ठान रक्खी है शायद ,
बार-बार,
उन्ही से मिला रहा है








          





44.   शमा को फिर देखा  

आज शमा को फिर देखा

परवाने की नज़रों से

फिर से जलजाना है किस्मत,

और दूजी राह प्रिये    



























 





45.   एक सौगात

इन पहाड़ों की सर्द हवाओं ने
 सिमटने को मजबूर कर दिया है
ऊनी गर्म कपड़ों के बीच  

फिर भी इनमे वो गर्माहट कहाँ
  जो तेरी साँसों की छुअन
  तेरी बातों की चुभन
और उस चुंबन में थी
 जिसे  तुमने कहा था
तुम्हारी याद के लिए
तुम्हारी तरफ से
कभी भूलने वाली
एक सौगात .
                    
                                                 









                          





46.   जहाँ रहिये बदनाम रहिये

            जहाँ रहिये ,
           बदनाम रहिये

जो  तरीका ना आये तो,
 एक शाम  ,
 मेरे साथ रहिये .   

                           



















 47.  जितना तनहा रहा


जितना तनहा रहा,
 उतना तेरे साथ रहा
 वरना कब मेरे हांथों में ,  
तेरा हांथ रहा

दुश्वारियों के बीच,
 मुकद्दर बनाता रहा
  तब तलक,
  जब तक कि तेरा साथ रहा   


















48.   तिहाड़ जेल से भारत माँ का,बेटा खूब दहाड़ा है

 

अत्याचारी नेताओं को अन्ना ने ललकारा है
 तिहाड़ जेल से भारत माँ का,बेटा  खूब दहाड़ा है

लोकतंत्र के गालों पे ,जिसने जड़ा तमाचा है
उनको सबक सिखाने को,भारत सारा जागा है

अन्ना की आंधी के आगे , कोई ना टिक पायेगा
 जो बीच राह में आएगा,तिनके सा उड़ जाएगा

 संसद के गलियारों में,अन्ना ही अब गूंजेगा
एक साथ भारत पूरा, उठकर दिल्ली पहुंचेगा
 


                


















 49.  अपने देश की आजादी


 
63 साल की बूढी हो गयी,
अपने देश की आजादी
हाल मगर बेहाल रहा,
जनता रह गयी ठगी प्रिये





भूख-गरीबी-लाचारी,
अब भी हमको जकडे है
फसा इन्ही के चंगुल में,
देखो पूरा देश प्रिये



हर आँख के आंसू पोछ्नेवाला,
सपना ना जाने कँहा गया ?
खून के आंसू रोने को,
 जन-गण-मन  मजबूर प्रिये



गिद्धों के सम्मलेन में,
गो-रक्षा पे चर्चा है
नही-नही जंगल में नही ,
संसद की यह बात प्रिये



अपने देश में आने से,
खुशियों ने इनकार किया 
दुःख की ही अगवानी में,
बीते इतने साल प्रिये



लोकतंत्र के तंत्र-मन्त्र में,
चिथडा-चिथडा जनतंत्र हुआ
रक्षक ही भक्षक बनकर,
नोच रहे यह देश प्रिये



अजब-गजब का खेल तमाशा ,
नेता-अफसर मिल दिखलाते
सन ४७ से अब तक,
बनी ना कोई बात प्रिये



एक थाली के चट्टे-बट्टे,
राजनीती के सारे पट्ठे
बोल बोलते अच्छे-अच्छे,
पर गंदे इनके काम प्रिये



मन्दिर-मस्जिद -गिरिजाघर में,
जिसको पाला -पोसा जाता,
वो अपनी रक्षा को बेबस
कर दो उसको माफ़ प्रिये



आजीवन वनवासी हो कर,
राम अयोध्या छोड़ गए
बचे-खुचे मलबे के नीचे ,
मुद्दे केवल गर्म प्रिये



ऐसे में जश्न मानाने का ,
औचित्य कहा है बचा हुआ
समय तो है संकल्पों का,
शंखनाद तुम करो प्रिये।



आवाहन का समय हो गया,
पहल नई अब हो जाए
लोकतंत्र की राह पे ही,
बिगुल क्रान्ति का बजे प्रिये



अपने अधिकारों के खातिर,
 खुल के हमको लड़ना होगा
जन्हा-कंही कुछ ग़लत हो रहा,
 हल्ला बोलो वहीं प्रिये



गांधी-नेहरू का सपना ,
पूरा हमको करना होगा
वरना पीढी आनेवाली ,
गद्दार कहेगी हमे प्रिये   
















 50. अभिलाषा

जीवन की सारी तन्हाई ,
खो कर तुझमे ही बिसराई
तुझसे पहले तेरे बाद ,
हर हाल मे तेरा ध्यान प्रिये

 
मन-मन्दिर का ठाकुर तू है ,
जीवन भर का साथी तू है  
तेरी आँखों का सम्मोहन ,
मेरे चारो धाम प्रिये


      तू प्रेम नयन मे जैसे अंजन ,
      तू चाहत का प्रेमी खंजन
लक्ष्य अलक्षित इस जीवन का ,
तू ही मेरे बना प्रिये

   
तनया तू है मानवता की ,
प्रेम भाव की तेरी काया
तेरे प्रेम का जोग लिया तो,
जोगी बन वन फिरूं प्रिये

 दर्द दिया है इतना तो ,
 अब तुम थोड़ा प्यार भी दो 
आँचल की थोडी हवा सही ,
 या बांहों का हार प्रिये

मेरी अन्तिम साँस की बेला ,
मत देना तुलसी-गंगाजल 
अपने ओठों का एक चुम्बन ,
ओठों पे देना मेरे प्रिये

इससे पावन जग मे पूरे ,
वस्तु ना दूजी कोई होगी 
इसमे तेरा प्यार भरा ,
और स्वप्न मेरा साकार प्रिये ।

  
माना की हो दूर तुम लेकिन,
      दिल से दूर कंहा हो मेरे ?
आंखे बंद कर देख लिया,
चाहा जब भी  तुम्हे प्रिये ।  


कई गुलाबो के दामन से,
 लिपट-लिपट कर सोया हूँ .
 इसीलिए तो रिश्तेदारी ,
 काँटों से भी हुई प्रिये  ।
 

ना जाने कितने रिश्ते,
 बनते और बिगड़ते हैं .
 पर सब सहता हँसते-हँसते
 छुपा के दिल का हाल प्रिये

लाखों और हजारों बूंदे,
 यद्यपि सागर में गिरती .
 पर सीपी की मोती तो,
 बनती कोई खास प्रिये ।



तू जीवन सरिता का सरगम
संस्कृति का सोपान है तू
सारी सृष्टि समाहित तुझमे ,
धरा का तू आधार प्रिये

जीवन के पैरों पे गिर के,
अभिलाषा ने किया सवाल
अपने पूरे होने की ,
 चाहत थी उसकी  प्रिये .
  
उसकी बाते सुनकर के,
  जीवन बस इतना बोला -
 जो पूरी ही हो जाए,
 अभिलाषा वो कंहा प्रिये ?


मेरी जीवन वीणा मे ,
सारे स्वर तुझसे ही हैं
छेड़ूँ जिस भी तार को मैं ,
सब मे तेरा संगीत प्रिये

 सब कहते हैं प्रेम करो,
 पर प्रेम बड़ा ही मुश्किल है
 प्रेम सदा देना ही देना ,
 लेना इसमे कुछ ना प्रिये

 शब्द-शब्द  सब  मन्त्र  बन गए ,
 प्रेम में जो भी लिख डाला
 जाप इन्ही  का करना यदि ,
 अभिलाषा हो कोई प्रिये .

टूटे सारे छंद -व्याकरण ,
 फूटा जब भावों का झरना .
 इसमें चाहत का कलरव,
 और मदिरा सा नशा प्रिये .
 
प्रेम भरे हर मन के अंदर,
मानवता के बीज पड़े  
इर्ष्या,द्वेष,घ्रीणा,कुंठा से,
ऐसा मन अनजान प्रिये

अभिलाषा को मेरी तुम
अपने पास सदा रखना
साथ तेरा ये मेरे बाद,
दिया करेगी सदा प्रिये ।





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