जिंदगी तू ही बता तू है क्या चाहती ,
अहसास नहीं आभास नहीं मृतप्राय जीवन क्यूँ चाहती
बंधन नहीं हो उलझन नहीं हो क्या तू है मांगती
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,
भाव में है प्यार लेकिन कहाँ मांग रहा इकरार तेरा
जिंदगी कटी अभाव से माँगा कब अहसान तेरा
झुरमुट हो उत्पीडन का या घोर समुद्र हो जीवन का
कब प्यार है छूटा श्रद्धा छोड़ी कब रास्ता छोड़ा प्रियतम का
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,
ना रुठती ना है मनाती ना राह करती साथ का
ना विफरती ना अकड़ती साथ करती हमेशा दुस्वार का
ना सिमटती ना बहकती ना कोई अधिकार छोड़े प्यार का
दूरियां भाती नहीं नजदीकियां जमती नहीं क्या कहे इस साथ का
ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती
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