Tuesday, 29 September 2009

मेरी जुदाई को और जुदा कैसे करोगे तुम /

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तेरी खुशियों की सीढी दिल के टुकडों से सजाई थी ,
तेरी सफलता की दुआ अपनी असफलता से चुरायी थी ;
तुझे और क्या दूँ जो तेरा मन नही भरता ,
तेरी मुस्कानों की राह अपने आंसूं से बनाई थी /
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मेरी असफलता को और असफल कैसे करोगे तुम ,
मेरी तन्हाई को और तनहा कैसे करोगे तुम ;
तेरी खुशियाँ जुड़ीं हैं मेरी बरबादियों से ,
मेरी जुदाई को और जुदा कैसे करोगे तुम /
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Sunday, 27 September 2009

सब्र कर कुछ दिन

मुस्कराहटें ,खुशी की आहटें और सुहासित ये शमा ;
खिला दिन ,महका बदन तेरी नजरों ने मोहित किया ;
भटक रहे अरमान ,तेरे इजहारे मोहब्बत ने हर्षित किया ;
तेरे अनछुए ओठों का पहला ये आभास ,
मेरा मन तेरी खुसबू में डूबा हुआ ;
शरमाते सकुचाते बाँहों में तेरा आना ;
मेरा तन उमंगों से पुलकित हुआ ;

सब्र कर अभी कुछ दिन, बड़ने दे प्यास ;
उफनने दे ये कशिश ,कर कुछ और प्रयास ;
कयास लगाने दे उन पलों के हर्ष का ;
महकती सांसों और बदन से बदन के स्पर्श का ;
मदहोशी Align Rightरा आने दे ,बड़ने दे जजबातों को ;
सब्र कर कुछ दिन ,अभी बड़ने दे मुलाकातों को ;
फिर होगा जो अवश्यमभावी है ;
मेरे दिल को तू बहुत भायी है ;
पुरानी यादों से किनारा तो जरा कर लूँ ;
अपने जख्मी दिल के भावों को जरा सिल लूँ ;
उनके बेवफाई के सितम को जरा पिने दे ;
फिर चोट खा सके इतना तो जख्मो को जरा भरने दे ;

कल तू भी अपनी राहों पे बड़ जाएगा ,पर तकलीफ जरा कम होगी ;
पहले की तरह हर बात पे ,आखें तो ना नम होगी ;
आशाएं नही पाली है तो तकलीफ भी न होगी ;
तेरी मंजिल से पहले का एक पड़ाव ही हूँ मैं ;
सब्र कर इक धोखा खाया इन्सान भी हूँ मैं ;

Thursday, 24 September 2009

केशों से ढलकता पानी है ;


केशों से ढलकता पानी है ;


रिमझिम बरसते मौसम की अजब रवानी है ;


महकते फुल हैं ,मदहोशी का शमा है ;


भीगा बदन ,गहरी सांसें अरमां जवां है ;


झिझकती काया है ,उफनते जजबातों की माया है ;


कामनाएं फैला रही हैं अपने अधिकारों को ;


संस्कार की रीतियाँ रोक रही है भावनावों को ;


मन उलझा हुआ है , तन बहका हुआ है ;


डर रह रह के उभर आता है सीमाएं टूट न जायें ;


अरमां आगे बडाते हैं ये लम्हा छुट न जाए ;


स्वर्गिक अनुभूति है पर ज़माने की भी कुछ रीती है ;


प्रिती प्यासी है ख़ुद पे बस कहाँ बाकी है ;


झिझक ,तड़प ,प्यास ,विस्वास ,खुशियाँ और उदाशी हैं ;


आंनद बिखरा पूरे माहोल में है ;


वो सिमटा मेरे आगोस में है ;


मन झूमा तन आह्लादित है ;


बिजलियाँ कौंध रही मनो उल्लासित हैं ;


ह्रदय में द्विक संगीत सा बज रहा है कुछ ;


प्यार की जीत है , बंधन और दूरी झूट है ;


प्यार भी इक पूजा है ,इसके बिना जीवन अजूबा है ;


मिलन भी एक सच है , इश्क भी इक रब है ;


अरमान विजीत है , मन हर्षित है ;


धरती महक रही भीनी खुसबू से ;


पेडों की हरियाली अदभुत है ;


एक अनोखी अनुभूति है छाई ;


वो अब भी है मेरे बाँहों में समाई /


क्या उत्सव है ,क्या है ये लम्हा ;


सांसों का सांसों में मिलना ;


रुक जा वक्त अनमोल ये लम्हा ;


क्या सच है ये ; या है इक सपना /

Monday, 21 September 2009

अधीरता का मंजर मुझमे है ;

अधीरता का मंजर मुझमे है ;

अव्यक्त की सहजता तुझमे है ;

नदी का वेग हूँ , मन का आवेश हूँ ;

प्यार का झोखा हूँ , सावन अनोखा हूँ ;

तू बहती हवा है ,बादल और निशा है ;

आखों का धोखा है ;स्वार्थ का सखा है ;

मै भावना से ओतप्रोत हूँ ,पानी का स्रोत हूँ ;

तू बिखरी हुयी माया है ;छल और छाया है ,

तुने सहजता का गुन पाया है /

मै स्थिरता हूँ ,जड़ता हूँ ;

रमा हूँ एक भावः में ;

इसीलिए अधीरता का मंजर पाया है /

हिन्दी लेखको -कवियों की तस्वीरे
















अगर आप हिन्दी के साहित्यकारों की तस्वीरे खोज रहे है तो आप कोhttp://http://hindilekhak.blogspot.com/ इस लिंक पे जाना चाहिए। आप की सारी जरूरते पूरी हो जाए गी । कुछ तस्वीरे नमूने के तोर पे उपरुक्त तस्वीरे इसी लिंक से ली गई है। इन पर मेरा कोई अधिकार नही है।

बड़े-बड़े अभिनेताओ के छोटी उम्र की तस्वीरे -----------------


अमिताभ








शम्मी कपूर





शारुख खान






































ई मेल के जरिये ये कुछ तस्वीरे प्राप्त हुई हैं। इन पर मेरा कोई कॉपी राईट नही है ।

भारत-पकिस्तान विभाजन की त्रासदी





























ईद मुबारक -----------------------
















Sunday, 20 September 2009

नई पौध --------------------------












अपने इन भतीजो से पिछले ७ महीने से नही मिला। जिंदगी की रफ़्तार कितना विवश कर देती है, इसे समझ रहा हूँ ।



Saturday, 19 September 2009

आस्था की चुनौतियाँ हैं ;

आस्था की चुनौतियाँ हैं ;
बिखरी संस्कृतियाँ हैं ;
अवमाननावों की संकुचित राजनीती है ;
तड़पती इंसानो की स्मृति है ;
धर्मान्धता तर्क की आहुति बनी है ;
सज्जनता मौन की वाहक बनी है ;
क्यूँ न मरे हम तुम इस महफ़िल में ;
चिल्लाहट ,तोड़ फोड़ ,खून खराबा ,
सच्चाई की मानक बनी हैं /

आया नवरात्री का उत्सव



आया नवरात्री का उत्सव सभी देवी माँ के भक्तो को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाये । आओ हम सभी मिल कर इस उत्सव को बड़ी ही धूम धाम से मनाये । देवी माँ से बस यही प्रार्थना है करते है की माँ अधर्म का नाश हो और धर्म की विजय हो । सभी को सच बोलना और सच का सामना करने की शक्ति दे ।


प्रेम से बोलो जय माता दी





Friday, 18 September 2009

आज कल वो खिलखिलाते बहुत है ;

नजरों में नशा है ,
माहोल बेवफा है ;
अब सिने से लग भी जावो ;
आज कल तड़पाते बहुत है /
मन कहीं ठहर ना जाए ;
तन कहीं संभल ना जाए ;
फुल खिले हैं ,पक्षियों की कलवरे हैं;
आ बाँहों में समां सांसों को महका ;
वक्त का कर न भरोसा ;
आज कल आजमाते बहुत हैं ;
आज कल वो खिलखिलाते बहुत है ;
सपने में भी मुस्कराते बहुत हैं ;
जब से बेवफाई का दामन है पकड़ा ;
वो गुनगुनाते बहुत हैं /

Thursday, 17 September 2009

elections in maharashtra

in the next month elections are going to be commenced inMaharashtra. all expectations, speculations and combinations permutations are in the air. till now nobody can guarranty at this particular moment about the wins and leads in the elections. the most important factor will be the role played by manase. will its effect be seen is the question haunting all the political leaders. also among hot discussions is the newly formed alliance of ridalos (third front).
what do the readers think on this issue. kindly convey your views and opinions on role played by manase and the third front in the upcoming elections.

Tuesday, 15 September 2009

कैसे तुझे अपना मानू ?

किन जज्बातों को मानू ;

किन अरमानो को जानू ;

क्या नही बदला तुझमे ;

जो तुझे अपना मानू ?

क्या भावों में सत है ;

क्या आखों में तप है ;

क्या बाकी है तुझमे ;

जो तुझे अपना जानू ?

कब यादों को तुने साधा ;

मेरी यादों से है तू भागा;

भुला रोई आखों के वादे भी ;

कैसे तुझे अपना मानू ?

Sunday, 13 September 2009

अक्स आखों से दिल में उतर गया ;

अक्स आखों से दिल में उतर गया ;

आंसू दिल का आखों से गुजर गया ;

तेरी अदावत का लुत्फ़ भी ले लेते लेकिन ;

न जाने क्यूँ तेरा दिल बाँहों में पिघल गया ;

तू गैर की है यकीं है मुझे ;

मुझे देख के तेरा आंसू निकल गया ;

तेरी मोहब्बत से गुरेज करूँ कैसे ;

मेरे पास आते ही तेरा अरमां मचल गया ;

क्या करूँ अपने भावों का मै ;

मेरा हर लम्हा तुझमे सिमट गया /

चाँदनी रातों में अँधियारा लगता है ;

चाँदनी रातों में अँधियारा लगता है ;
जागते सपनों में तू हमारा लगता है ;
सोयी आखों में तू आता नही ;
ग़मों का तू उजियारा लगता है /

Thursday, 10 September 2009

याद आ रही है ---------------

फ़िर तुम्हारी याद आ रही है ,
पुरानी बातें मुझे साल रही हैं ।
जो भी पल साथ बीते थे,
यादे उन्ही को दुहरा रही हैं ।
बहुत दूर निकल आया हूँ लेकिन,
हर जगह तू ही नजर आ रही है ।
मिलो गी फ़िर कभी तो,
अजनबी बन कर रहोगी ।
पास होकर दूर जाने का,
एहसास देती रहोगी जिन्दगी भर ।
गलती हमारी नही,
वक्त हमारा नही रहा,
जो सोचा था ,वैसा कोई सपना अब अपना ना रहा ।
तेरे बारे me जब भी सोचता हूँ,
अपने को सजा देता हूँ ।
अब बिना तेरे,
जिन्दगी की लाश को ,
अपनी साँसों पे लिए फिरता हूँ।
में तेरे बिना अब ,
अपने बगैर भी जीता हूँ ।
तुमसे कह नही सकता लेकिन,
तुम्हें बहुत याद करता हूँ ।

Wednesday, 9 September 2009

भावनावों का अत्याचार भी खूब है ;

भावनावों का अत्याचार भी खूब है ;
कभी आंसू तो कभी महबूब है ;
कभी अपनो का कारवां ,
कभी आकंछावों की भूख है ;
कभी हलके इनकार पे आखें नम हो गई ;
कभी इकरार पे भी आखें शबनम हो गई ;
कभी दूरियों में भी नजदीकी का अहसास है ;
कभी नजदीकियों में भी दुरी का आभास है ;
कभी दौड़ के लिपटा पर आखें सजल न हुईं;
कभी आखों की आखों की बातों से वो नम हो गई ;

Monday, 7 September 2009

हिन्दी की दुर्दशा

हिन्दी की हालत आज हम बहुत सतोषजनक नही कह सकते। english की तुलना में हिन्दी को अभी लम्बी लडाई लड़नी है । बाज़ार के साथ हिन्दी आज जुड़ चुकी है ,यह अच्छी बात है लेकिन अभी और प्रयास की जरूरत है । वैसे इस बारे में आप क्या सोचते हैं ?

Sunday, 6 September 2009

१४ सितम्बर हिन्दी दिवस

१४ सितम्बर हिन्दी दिवस
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हर साल १४ सितम्बर को ,
आता है हिन्दी दिवस ।
और शुरू हो जाती है ,हिन्दी पे बहस ।
हिन्दी का गौरव
हिन्दी का वैभव ,
इस पे विद्वानों में होती है चर्चा ,
हर जगह चल रही होती है परिचर्चा ।

पर क्या आप जानते है ?
की जब हिन्दी के सजते हैं समारंभ,
लगभग तभी होता है पितरपक्ष भी प्रारम्भ ।
जिस तरह पितरपक्ष में,
पिंडो का दान किया जाता है,
पुरखो को याद किया जाता है ,
ठीक उसी तरह हिन्दी दिवस पर,
हिन्दी को याद कर लिया जाता है ।
हिन्दी विद्वानों का सम्मान कर दिया जाता है ।

पितरपक्ष में बेचारे ब्राह्मण,
इतना पाते हैं भोज का निमंत्रण ,
की मुस्किल हो जाता है तैयकरना,
की कंहा है जाना,और कंहा है मना करना ।

हिन्दी के जानकार पंडित भी
कुछ इसी तरह परेसान होते हैं,
चार दिन की चादनी पे ,
अनायास मु़ग्ध होते हैं ।
दोस्तों,हिन्दी का आदर,
सिर्फ़ हिन्दी दिवस मनाने में नही,
दैनिक जीवन में उसे अपनाने से है ।
हिन्दी का आदर,
हिन्दी-हिन्दी चिल्लाने में नही ,
हिन्दी के प्रति समर्पण में है ।

-------------डॉ.मनीष कुमार मिश्रा

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