निषेधों का निषेध ।
तमाम घोषणाओं
एकालाप के बावजूद
निषेधों का निषेध
प्रेम को परिभाषित करता रहा
हमेशा से।
तमाम उन्मादों
धर्म और राज्य के
विलापों के बावजूद
यही प्रेम की
क्रियागत
परिणति रही
यहां कभी भी
कोई अंतिम उत्तर नहीं मिलता ।
यहां उत्कंठा
शेष रहती है
संभावनाएं
बनी रहती हैं
यहीं से मनुष्यता
उम्मीद की सांस लेती है
यहां कभी भी
कोई बात
पूरी नहीं होती लेकिन
यहां का अधूरापन ही
जीवन का
सारभूत तत्व है।
Dr Manish Kumar Mishra
Assistant professor
Department of Hindi
K.M.Agrawal College
Kalyan west
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