जब तबियत ख़राब होती है।
बाहर की तमाम
सख्तियों के बावजूद
ऐसा तो नहीं था कि तुम
अंदर से
मुलायम नहीं थी
इसलिए
मेरा तुम्हारे लिए
फिक्रमंद होना लाज़मी था
शायद इसी कारण
कभी तुमसे
कुछ पूछने की
जरूरत नहीं पड़ी ।
जानता हूं कि
जब तबियत ख़राब होती है
तब
उस दुःख का भागीदार
और कोई नहीं होता
फिर भी
आँखें तरसती हैं
आँखों का सूनापन
अतीत में खोए हुए
सपनों की गलियों में
बेसब क्यों घूमते हैं ?
यह
कोई और नहीं जानता ।
दरवाजा खटखटाने से पहले
बस इतना याद है कि
सोचा था
तुमसे मिलता जाऊं
उसी बहाने
ढेर सारी गप्पें
कुछ टिप्पणियां
जो तुम्हें हँसा सकें
फिर भले ही वो
अनैतिक आग्रहों से जुड़ी हों
लेकिन
तुम जानती हो
मैं तुम्हारे दरवाज़े पर
दस्तक नहीं दे सकता
वहाँ नैतिकता की दीमक लगी है
इसलिए
इस बार भी
दस्तक सीधे
तुम्हारे दिल पर दी है
इस उम्मीद से कि
तुम्हें अच्छा लगा होगा क्योंकि
बाहर की तमाम
सख्तियों के बावजूद
ऐसा तो नहीं था कि तुम
अंदर से
मुलायम नहीं थी
इसलिए......।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र
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