विरोध के
अनेक मुद्दों के बावजूद
आवाजों के अभाव में
तालू से चिपके शब्द
तमाम क्रूरताओं के बीच
क़स्बे की संकरी गलियों में
सहमे, सिहरे
भटक रहे हैं ।
अकुलाहट का
अनसुना संगीत
घुप्प अँधेरी रात में
विज्ञापनों की तरह
हवा में बिखर गया है
किसी की
आख़िरी हिचकी भी
आकाश की उस नीली गहराई में
न जाने कहाँ
खो गई ।
तुम्हारे सपनों पर
नींद के सांकल थे
परिणाम स्वरूप
उम्मीदें टूट चुकीं
तितली, चिड़िया और गौरैया
सब
अपराध में लिप्त पाये गये हैं
नई व्यवस्था में
सारी व्याख्याएँ
दमन की बत्तीसी के बीच
चबा-चबा कर
शासकों के
अनुकूल बन रही हैं ।
---- डॉ मनीष कुमार ।
अनेक मुद्दों के बावजूद
आवाजों के अभाव में
तालू से चिपके शब्द
तमाम क्रूरताओं के बीच
क़स्बे की संकरी गलियों में
सहमे, सिहरे
भटक रहे हैं ।
अकुलाहट का
अनसुना संगीत
घुप्प अँधेरी रात में
विज्ञापनों की तरह
हवा में बिखर गया है
किसी की
आख़िरी हिचकी भी
आकाश की उस नीली गहराई में
न जाने कहाँ
खो गई ।
तुम्हारे सपनों पर
नींद के सांकल थे
परिणाम स्वरूप
उम्मीदें टूट चुकीं
तितली, चिड़िया और गौरैया
सब
अपराध में लिप्त पाये गये हैं
नई व्यवस्था में
सारी व्याख्याएँ
दमन की बत्तीसी के बीच
चबा-चबा कर
शासकों के
अनुकूल बन रही हैं ।
---- डॉ मनीष कुमार ।
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