कुछ सवालात हैं
कि जिनमें
उलझा सा हूँ
मैं भी एक चिराग़ हूँ
बस
बुझा- बुझा सा हूँ ।
अब भी उम्मीद है
कि वो आयेगी ज़रूर
सो प्यार की राह में
ज़रा
रुका- रुका सा हूँ ।
न जाने
कितनी उम्मीदों को
ढोता हूँ पैदल
अभी चल तो रहा हूँ
पर
थका - थका सा हूँ ।
यूँ तो आज भी
इरादे
वही हैं फ़ौलाद वाले
बस वक्त के आगे
थोड़ा
झुका- झुका सा हूँ ।
.............Dr. Manishkumar C.Mishra
कि जिनमें
उलझा सा हूँ
मैं भी एक चिराग़ हूँ
बस
बुझा- बुझा सा हूँ ।
अब भी उम्मीद है
कि वो आयेगी ज़रूर
सो प्यार की राह में
ज़रा
रुका- रुका सा हूँ ।
न जाने
कितनी उम्मीदों को
ढोता हूँ पैदल
अभी चल तो रहा हूँ
पर
थका - थका सा हूँ ।
यूँ तो आज भी
इरादे
वही हैं फ़ौलाद वाले
बस वक्त के आगे
थोड़ा
झुका- झुका सा हूँ ।
.............Dr. Manishkumar C.Mishra
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