Thursday, 11 April 2019

10. बीते हुए इस साल से ।

बीते हुए इस साल से 
विदा लेते हुए
मैंने कहा - 
तुम जा तो रहे हो
पर 
आते रहना 
अपने समय का 
आख्यान बनकर 
पथराई आँखों और 
खोई हुई आवाज़ के बावजूद 
आकलन व पुनर्रचना के 
हर छोटे-बड़े
उत्सव के लिए ।

त्रासदिक 
दस्तावेजों के पुनर्पाठ 
व 
संघर्ष के
इकबालिया बयान के लिए
तुम्हारी करुणा का
निजी इतिहास
बड़ा सहायक होगा ।

बारिश की
बूँदों की तरह
तुम आते रहना 
पूरे रोमांच और रोमांस के साथ
ताकि
लोक चित्त का इंद्रधनुष 
सामाजिक न्याय चेतना की तरंगों पर 
अनुगुंजित- अनुप्राणित रहे ।

अंधेरों की चेतावनी
उनकी साख के बावजूद 
प्रतिरोधी स्वर में
सवालों के
शब्दोत्सव के लिए
तुम्हारा आते रहना 
बेहद जरूरी है ।

तुम जा तो रहे हो
पर 
आते रहना 
ताकि
ये दाग - दाग उजाले 
विचारों की 
नीमकशी से छनते रहें 
संघर्ष और सामंजस्य से 
प्रांजल होते रहें 
जिससे कि
सुनिश्चित रहे 
पावनता का पुनर्वास ।

            ----- मनीष कुमार मिश्रा ।

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