किसी प्रज्ञावान व्यक्ति का
शब्दबद्ध वर्णन
उसके सद्गुणों की
यांत्रिक व्याख्या मात्र है
या फ़िर
शब्दाडंबर ।
जबकि
उसकी वैचारिक प्रखरता
उसके लंबे
अध्यवसाय की
अंदरुनी खोह में
एक आंतरिक तत्व रूप में
कर्म वृत्तियों को
पोषित व प्रोत्साहित करती हैं ।
उच्च अध्ययन कर्म
एक ज्ञानात्मक उद्यम है
जो कि
प्रज्ञा की साझेदारी में
पोसती हैं
एक आभ्यंतर तत्व को
जो कि
अपने संबंध रूप में
ईश्वर का प्रत्यय है ।
लेकिन ध्यान रहे
घातक संलक्षणों से ग्रस्त
छिद्रान्वेषी मनोवृत्ति
आधिपत्यवादी
मानदंडों की मरम्मत में
प्रश्न से प्रगाढ़ होते रिश्तों की
जड़ ही काट देते हैं
और इसतरह
अपने सिद्धांतों के लिए
पर्याय बनने /गढ़ने वाले लोग
अपनी तथाकथित जड़ों में
जड़ होते -होते
जड़ों से कट जाते हैं ।
-- डॉ मनीष कुमार मिश्रा ।
शब्दबद्ध वर्णन
उसके सद्गुणों की
यांत्रिक व्याख्या मात्र है
या फ़िर
शब्दाडंबर ।
जबकि
उसकी वैचारिक प्रखरता
उसके लंबे
अध्यवसाय की
अंदरुनी खोह में
एक आंतरिक तत्व रूप में
कर्म वृत्तियों को
पोषित व प्रोत्साहित करती हैं ।
उच्च अध्ययन कर्म
एक ज्ञानात्मक उद्यम है
जो कि
प्रज्ञा की साझेदारी में
पोसती हैं
एक आभ्यंतर तत्व को
जो कि
अपने संबंध रूप में
ईश्वर का प्रत्यय है ।
लेकिन ध्यान रहे
घातक संलक्षणों से ग्रस्त
छिद्रान्वेषी मनोवृत्ति
आधिपत्यवादी
मानदंडों की मरम्मत में
प्रश्न से प्रगाढ़ होते रिश्तों की
जड़ ही काट देते हैं
और इसतरह
अपने सिद्धांतों के लिए
पर्याय बनने /गढ़ने वाले लोग
अपनी तथाकथित जड़ों में
जड़ होते -होते
जड़ों से कट जाते हैं ।
-- डॉ मनीष कुमार मिश्रा ।
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..