Monday, 29 July 2013

शिकायत सब से है लेकिन




जो कहनी थी ,
वही मैं बात,
यारों भूल जाता हूँ
किसी क़ी झील सी आँखों में,
 जब भी डूब जाता हूँ  

नहीं मैं आसमाँ का हूँ,
कोई तारा मगर सुन लो
किसी के प्यार के खातिर,
मैं अक्सर टूट जाता हूँ

शिकायत सब से है लेकिन,
किसी से कह नहीं सकता
बहुत गुस्सा जो आता है,
तो खुद से रूठ जाता हूँ

किसी क़ी राह का कांटा,
कभी मैं बन नहीं सकता
इसी कारण से मफिल में,
अकेला छूट जाता हूँ

मासूम से सपनों क़ी मिट्टी,
का घड़ा हूँ मैं,
नफरत क़ी बातों से,

हमेशा फूट जाता हूँ .

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