Monday, 29 July 2013

ब्रूउट्स यू टू




थोडे आंसूँ ,
थोडे सपने
और ढेर से सवालो के साथ्
तेरी नीमकश निगाहो में जब् देखता हूँ  
 बहुत तड़पता हूँ

इसपर तेरा हल्के से मुस्कुराना  ,
 मुझे अंदर -ही अंदर सालता है
 तेरा ख़ामोशी भरा इंतकाम ,
मेरे झूठे ,बनावटी
और मतलबी चरित्र के आवरण को
मेरे अंदर ही खोल के रख देता है.

मैं सचमुच कभी भी नहीं था
 तुम्हारे उतने सच्चे प्यार के काबिल
जितने के बारे में मैंने सिर्फ
 फरिस्तों और परियों की कहानियों  में पढ़ा था .

मैं तुम्हे सिवा धोखे के
 नहीं दे पाया कुछ भी.
और तुम देती रही
 हर बार माफ़ी क्योंकि
 तुम प्यार करना जानती थी.

मैं बस सिमटा रहा अपने तक
 और  तुम
खुद को समेटती रही
  मेरे लिए.
 कभी कुछ भी नहीं माँगा तुमने,

सिवाय मेरी हो जाने की
 हसरत के .

याद है वो दिन भी जब ,
तुमने मुझसे दूर जाते हुए
नम आखों और मुस्कुराते लबों के साथ
कागज़ का एक टुकड़ा
चुपके से पकडाया 
 जिसमे लिखा था-" ब्रूउट्स यू  टू ? ''

उसने जो लिखा था वो,
शेक्स्पीअर के नाटक की
 एक पंक्ति मात्र थी लेकिन ,
मैं बता नहीं सकता क़ि
वह मेरे लिए
 कितना मुश्किल सवाल था .
आज भी वो एक पंक्ति
 कपा देती है पूरा जिस्म
 रुला देती है पूरी रात.

खुद की  इस बेबसी को
 घृणा की अन्नंत सीमाओ तक
जिंदगी की आखरी सांस तक
जीने के लिए अभिशप्त हूँ.
 उसके इन शब्दों /सवालों के साथ कि
ब्रूउट्स यू  टू !
ब्रूउट्स यू  टू !

ब्रूउट्स यू  टू !

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