चौड़ी सड़कों से सटे
बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद
जहां
मैपल के पेड़ों की कतार
किसी का भी
मन मोह लें।
तेज़ रफ़्तार से
भागती हुई गाडियां
सिग्नल पर
विनम्रता और अनुशासन से
खड़ी हो जाती हैं
ताकि पार कर सकें सड़क
मुझसे पैदल यात्री भी ।
तकनीक ने
भाषाई सीमाओं को
काफ़ी हद तक
खत्म कर दिया है
येनडेन से कैब बुला
आप घूम सकते हैं
पूरा शहर।
ऑनलाइन ट्रांसलेशन ऐप से
वार्तालाप भी
काम भर की बातचीत तो
करा ही देती है
उज़्बेकी और हिंदी में ।
अक्सर कोई उज़्बेकी
पूछ लेता है -
हिंदुस्तान?
और मेरे हां में सर हिलाते ही
वह तपाक से कहता है -
नमस्ते !
वैसे
सलाम और रहमत कहना
मैंने भी सीख लिया
ताकि कृतज्ञता का
थोड़ा सा ही सही पर
ज्ञापन कर सकूं ।
इस शहर ने
मुझे अपना बनाने की
हर कोशिश की
इसलिए मैं भी
इस कोशिश में हूं कि
इस शहर को
अपना बना सकूं
और इसतरह
हम दोनों की ही
कोशिश जारी है।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR हिंदी चेयर)
ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।
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