ताशकंद ।
ताशकंद को पहली बार
फरवरी की सर्द हवाओं में
बर्फ़ से लिपटे हुए देखा
बर्फ़ का झरना
बर्फ़ का जमना
और बर्फ़ का आंखों में बसना
जितना दिलकश था
उतना ही खतरनाक भी
लेकिन दिलकश नज़ारों के लिए
खतरे उठाने की
पुरानी आदत रही है
और आदतन
मैं उन मौसमी जलवों का
तलबगार हो गया।
ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी से
याकुब अली रोड़ पर स्थित
मेरे बसेरे की दूरी
तीसरी डनहिल सिगरेट के
लगभग
आखिरी कश तक की थी
उसके बाद
कैफे दोसान की गरमा गर्म काफ़ी
उन गर्म सांसों सी लगती
जो मुझसे दूर होकर भी
मेरे अंदर ही कहीं
बसी रहती हैं।
दिलशेर नवाई, बाबर
और फातिमा की काव्य पंक्तियों को पढ़ते हुए
कबीर, टैगोर, शमशेर
और अमृता प्रीतम याद आते रहे
मैं कविता की इस आपसदारी से खुश हूं
सरहदों के पार
बेरोक टोक सी
शब्दों की ऐसी यात्राएं
कितनी मानवीय हैं !!
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR हिंदी चेयर)
ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..