लड्डू सिर्फ़ मिठाई नहीं
मीठे रिश्तों की सौगात
ढ़ेर सारा दुलार
और प्यार भी है ।
माँ के हाँथों का जादू
आतिथ्य का भोग
श्री गणेश का मोह
और बचपन की याद भी है ।
मुझे लगता है
जैसे प्रेम में पगे
ख़ुशी में रंगे
अपनेपन से भरे
और सादगी से सजे
हर एक रिश्ते को
लड्डू ही कहूँ ।
उस दिन
पहली बार
जब कहा तुम्हें लड्डू तो
तुमने अपनी छरहरी काया को निहारा
और बोली -
मैं लड्डू नहीं हूँ
तुम हो ।
तब से आज तक
मैं लट्टू हूँ
तुम पर
और चाहता हूँ कि
तुम हो जाओ
लड्डू ।
ताकि सोच सकूँ
दुनियाँ को
कुछ और
बेहतर बनकर
जिसकी कि शर्त है
मेरी आँखों में
तुम्हारा
लड्डू हो जाना ।
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