Thursday, 6 August 2015

जब भी तुमसे बात होती है

जब भी तुमसे बात होती है
कुछ टूट जाता है
कुछ छूट जाता है
और फ़िर
अगले मनुहार तक 
कोई रूठ जाता है ।
याद है पिछली बार
जब तुमसे बात हुई थी
तुम फूट पड़ी थी
किसी निर्झर सी
और बह गया
कितना कुछ
जिसका बहजाना ज़रूरी था ।
दरअसल
ये जो टूटना है
और जोड़ता है
टुकड़ों में बटी
किसी कहानी को ।
जैसे दूर होने पर
किसी के करीब होना
महसूस होता है
वैसे ही
हमारे बीच का
यह अनमनापन
बताता है
कि हमारे बीच
कुछ बाकी है ।
हमारी रिक्तता
हमारी पूर्णता के प्रति
प्रेम से अनुप्राणित
एक प्रतिबद्धता है ।
अब तुम ही कहो
क़ि जो कहा मैंने
उसमें कुछ टूटा
या कि
फ़िर कुछ और
थोड़ा और
जुड़ गया ।

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..