Thursday, 6 August 2015

बारिश में भीगना

16. बारिश में भीगना

बारिश में भीगना
आलोचना है
सख्त और तर्कहीन
सामाजिक रूढ़ियों की ।
खिलते, मचलते
और गुनगुनाते गीतों की
गुंजाइश
और है गुजारिश भी ।
आवारगी की ख्वाइश
अनजान रास्ते
और मंजिल के नाम पर
बस सफ़र ही सफ़र ।
उजाले की दहलीज पर
अँधेरे का दम तोड़ना
क्या नहीं होता
तृप्त होने के जैसा ?
बारिश की बूँदें
किसी की रहमत सी
जब बरसती हैं
तब तरसती आँखों में
कुछ पूर्ण सा होता है ।
अधूरा वह रास्ता
जो किस्सों से भरा है
दरअसल जीने की
कठिन पर ज़रूरी शर्त है ।
एक गुमराह पैग़म्बर
और प्रेम में पगी
कोई दो जोड़ी आँखें
मलंग न हों
तो क्या हों ?
एक मासूम लड़की
नंगे पाँव
निकल पड़े चुपचाप
बूंदों से लिपटने
ज़िन्दगी इतनी सुंदर
सहज,सरल
और प्यार से भरी
आख़िर क्यों न हो ?


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