मेरे कुछ जरूरी सवालों को
तुम जितना झुठलाती हो
उतना ही यकीन बढ़ाती हो ।
तुम्हारी झूठ के लिए ही
तुम्हारे आगे सालों से
मेरे कुछ सवाल
जवाब के लिए तरसते हैं ।
जैसे कि कभी पूछ लेता हूँ
प्यार करती हो मुझे ?
और तुम कह देती हो -
नहीं ।
इतने सालों में
समझ गया हूँ
तुम्हारे हाँ के समानार्थी
नहीं को ।
और तुम भी
समझ गयी हो अहमियत
मेरे कुछ जरूरी सवालों के
गैर ज़रूरी जवाब की।
दरअसल प्यार और विश्वास में
सवाल ज़रूरी नहीं होते
और ना ही उनके जबाब ।
पर ज़रूरी होते हैं
ये गैर ज़रूरी सवाल जवाब
ताकि हर नहीं के साथ
हाँ का विश्वास मजबूत होता रहे ।
तुम भी तो
पूछती हो कभी - कभी
कि मैं तुम्हें
कितना प्यार करता हूँ ?
और मैं कहता हूँ
चुल्लू भर पानी जितना
उसी में डूब मरो ।
और फिर
हम दोनों खिलखिलाते हैं
कुछ गैर ज़रूरी सवालों के
गैर ज़रूरी जवाबों के साथ
विश्वास बढ़ाते हैं
प्यार जताते हैं ।
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