Monday, 5 May 2014

तुम जितना झुठलाती हो



मेरे कुछ जरूरी सवालों को 
तुम जितना झुठलाती हो 
उतना ही यकीन बढ़ाती हो । 

तुम्हारी झूठ के लिए ही 
तुम्हारे आगे सालों से 
मेरे कुछ सवाल 
जवाब के लिए तरसते हैं । 

जैसे कि कभी पूछ लेता हूँ
प्यार करती हो मुझे ?
और तुम कह देती हो -
नहीं ।

इतने सालों में
समझ गया हूँ
तुम्हारे हाँ के समानार्थी
नहीं को ।

और तुम भी
समझ गयी हो अहमियत
मेरे कुछ जरूरी सवालों के
गैर ज़रूरी जवाब की।

दरअसल प्यार और विश्वास में
सवाल ज़रूरी नहीं होते
और ना ही उनके जबाब ।

पर ज़रूरी होते हैं
ये गैर ज़रूरी सवाल जवाब
ताकि हर नहीं के साथ
हाँ का विश्वास मजबूत होता रहे ।

तुम भी तो
पूछती हो कभी - कभी
कि मैं तुम्हें
कितना प्यार करता हूँ ?

और मैं कहता हूँ
चुल्लू भर पानी जितना
उसी में डूब मरो ।

और फिर
हम दोनों खिलखिलाते हैं
कुछ गैर ज़रूरी सवालों के
गैर ज़रूरी जवाबों के साथ
विश्वास बढ़ाते हैं
प्यार जताते हैं ।

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