हर शाम छत पे अकेले
गुमसुम से टहलते हैं ।
खुली जुल्फों के बादल
बरसने से डरते हैं ।
कितना कुछ कहने के बाद भी
कुछ कहने को तरसते हैं ।
कभी कहा तो नहीं पर
दिल दोनों के मचलते हैं ।
बनारस की हर सुबह में
तेरी यादों की सलवटें हैं ।
गुमसुम से टहलते हैं ।
खुली जुल्फों के बादल
बरसने से डरते हैं ।
कितना कुछ कहने के बाद भी
कुछ कहने को तरसते हैं ।
कभी कहा तो नहीं पर
दिल दोनों के मचलते हैं ।
बनारस की हर सुबह में
तेरी यादों की सलवटें हैं ।
अब कुछ कहने को बचा ही नहीं सर जी .
ReplyDeleteआभार
मुझे आपकी किताबे चाहिए थी .
मुझे मेल पर सूचित कीजिये न की कैसे मिलेंगी .
धन्यवाद
विजय
vksappatti@gmail.com