Tuesday, 21 September 2010

एक लम्हा और मिला होता /

बतियाते  घंटो बीत गए 
अब जाने की बेला आई थी 
अभी तो हाथ लिया था हाथों में
पर मोबाइल ने रिंग बजायी थी    
एक लम्हा और मिला होता
 तेरे लबों का अमृत पी लेता

हाथों में हाथ लिए
घूम रहे थे शाम से हम
अभी तो अरमान मचले थे मेरे
अभी सपने चमके थे मेरे
रात हो आई देर हो रही
एक लम्हा और दिया होता
बाँहों में तुझको भर लेता

सुबह सबेरे साथ चले थे
शाम हो आई आखों ने ख्वाब धरे थे
अभी अभी तो धड़कन थी उछली
अभी अभी आखों आखों से प्यास कही थी
देर हुई थी तुझे था जाना
कैसे कहता ये दिल था दीवाना
एक लम्हा और दिया होता
मै अरमानो को जी लेता
भर कर बाँहों में तुझको
तेर लबों का अमृत पी लेता

एक लम्हा और मिला होता /

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...