काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
राह में कांटे सजे या हो फूल बिखरे पैरों तले
मंजिल तक पहुँचाना नहीं ख्वाब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
इशारे मौसम के रहे हों या हों वो महबूब तेरे
ताका किया अब तक उन्हें अब छूना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
अरमान सजोये या मोहब्बत को यादों में पिरोये अब तक
गले लग जा अब तो तुझे अब जीना चाहता हूँ
काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..