Saturday, 4 September 2010

शबाब तेरे हुश्न का और वो अदा

शबाब  तेरे हुश्न का और वो अदा
शरारत कजरारी आखों में और चेहरे पे हया  
भरपूर जवानी खिली हुई और सादगी की क़ज़ा
लूटना ही था दिल को न था मै खुदा

क्या कहा उन आखों ने
क्या सुना मुस्कराहट की बातों में
क्या कह गयी हवा तेरा बदन छू के जों आई थी
क्या शमा महकी या मेरी हसरतें बेकाबू  थी


तेरी खनकती आवाज में कुछ जादू था
तेरी हर अदा कातिल औ तू ही मेरा साहिल था
ख़ामोशी तेरी बयाँ कर रही थी किस्से कितने
मै भी मशगूल था उसमे और बन रहे थे सपने











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