Wednesday, 18 March 2009

मै न रहूँगा सच है लेकिन --------

दे कर प्रेम ताल पे ताल
मस्ती भरी चलू मैं चाल
नव पर नव की अभिलाषा
मन मे मेरे भरी प्रिये


मैं न रहूँगा सच है लेकिन
रहेगी मेरी अभिलाषा
एक ह्रदय की दूजे ह्रदय से
यह करेगी सारी बात प्रिये


जो हम चाहें वो मिल जाये
ऐसा अक्सर कब होता
जो है उसमे खुश रहना
खुशियों की सौगात प्रिये


मंजिल की चाहत मे हम
लुफ्त सफ़र का खोते हैं
है जिसमे सच्चा आनंद
उसी को खोते रहे प्रिये

तकलीफों से डर के हम
नशे मे डूबा करते हैं
बद को बदतर ख़ुद करते
फ़िर किस्मत कोसा करें प्रिये

प्रेम भरे मन की अभिलाषा
मधुशाला मे ना पुरा होती
प्रेम को पूरा करता है ,
जग मे केवल प्रेम प्रिये

मदिरालय मे जानेवाला
कायर पथिक है जीवन का
जो संघर्षो को गले लगाये
कदमो मे उसके जग है प्रिये

जिसके जीवन मे केवल
पैमाना-शाकी -बाला है
जीवन पथ पे उसके गले मे
सदीव हार की माला प्रिये

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers

  Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...