इस साल पहली बार मुंबई बोर्ड के १२ कक्षा के प्रश्न पत्र जांचने के लिये मिले ,वो भी पूरे २५० । साथ ही साथ यह आदेश भी मिला की मै जल्द से जल्द उन्हे मोडरेटर के पास भिजवा दूँ । मै परेसान था की इतने जल्दी मैं २५० प्रश्न पत्र किसी जांच सकता हूँ ?
परेसान हो कर मैं ने अपने मोडरेटर को फ़ोन किया । उन्हे अपनी परेसानी बताई । इस पर उन्होने कहा की ''तुम २५० पेपर लेकर परेसान हो, मुझे तो १७०० पेपर निपटाने हैं । जल्दी करो ---"
मैं ने भी निपटा ही दिया २५० प्रश्न पत्र । लेकिन यह सोच कर परेसान था की जो विद्यार्थी साल भर मेहनत करते हैं .उन्हें इस तरह निपटा देना कितना सही है ? आख़िर यह व्यवस्था किस काम की है ? इसका इलाज होना ही चाहिये । परीक्षा के नाम पे यह दिखावटी व्यवस्था ख़त्म होनी चाहिये ।
आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?
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