कल की होली मेरे लिये यादगार बन गई ,क्योंकि कल का पूरा दिन मुझे बाल कवि बैरागी जैसे महान कवि के साथ बिताने का अवसर मिला । सुबह ७.३० बजे मोबाइल की घंटी बजी । देखा तो श्री ओम प्रकाश मुन्ना पाण्डेय जी का फ़ोन था । उन्हों ने कहा की मुंबई सेंट्रल जाना है ,बाल कवि जी को लेने ।
मै फटाफट तैयार हो गया । मुन्ना भइया की ही कार से हम लोग मुंबई सेंट्रल पहुंचे .थोडी देर के बाद ही राजधानी एक्सप्रेस आ गई । बैरागी जी को हमलोगों ने रिसिव किया और कार तक ले आये ।
बैरागी जी ने फ़ोन से घर पे सूचना दी की वे पहुँच गये हैं और दो लिखे-पढे लोग उन्हे लेकर जा रहे हैं । फ़िर मोबाइल को दिखाते हुए बोले की -यह वो जनेऊ है जो कान पर चढाते ही आदमी बोलने लगता है । फ़िर हम लोग एक दूसरे से इधर -उधर की बातें करने लगे । उन्होने अपने कुछ मित्रों के नाम लिये जिन्हें मै-और मुन्ना भइया भी जानते थे ,उनसे बैरागी जी की मोबाइल पर ही बात कराइ गयी । जैसे की NAIND किशोर नौटियाल ,सचिन्द्र त्रिपाठी ,आलोक भट्टाचार्य और विजय पंडित .रास्ते मे बैरागी जी की नजर पोस्टर और बैनरों पर बराबर पड़ रही थी । मैं ने कहा -दादा यंहा लोग हिन्दी -मराठी के घाल-मेल के कारण अक्सर गलतियां कर देते हैं । मेरी बात सुनकर उन्होने कहा कि-कोई बात नही है ,हिन्दी की सास्त्रियता का यह समय नही है । जरूरत इस बात की है कि हम इसका जादा से जादा उपयोग करें ,और इसके विकास के लिये सरकार कि तरफ़ देखना बंद करें। बैरागी जी लोकसभा और राज्यसभा दोनों के ही सदस्य रह चुके हैं । वे राजभाषा समिति के सदस्य के रूप मे अपनी कुछ स्मृतियों का जिक्र करते हुवे बतातें हैं कि ---गोविन्द मिश्र भी उनके गुस्से का कारन बने थे । मुंबई मे ही सन १९८६-८७ के आस -पास जब वे संसदीय समिति के सदस्य के रूप मे आयकर विभाग मे आये तो गोविन्द मिश्र की हिन्दी सम्बन्धी शासकीय जवाब देही से नाखुश हुए और खाना खाने से भी INKAAR KAR DIYA POOREE SAMITI NAY .
इसी तरह बैरागी जी ने पूर्व राष्टपति कलाम के सम्बन्ध मे भी बताया कि एक बार उन्हे कलाम जी के हस्ताक्षर वाला एक निमंत्रण मिला ,जिसे उन्होने सिर्फ़ इस लिये अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह निमंत्रण हिन्दी मे नही अंग्रजी मे था .इसी तरह कि कई बाते उन्होने बताई । आध्यात्म ,वेद और आयुर्वेद के साथ -साथ अहिंसा दिवस को वे भारत की तरफ़ से पूरी दुनिया को दिया गया श्रेष्ठ उपहार मानते हैं ।
बैरागी जी ने अपने बारे मे बताया कि वे एक भिखमंगे परिवार से आते हैं । ४ साल कि उम्र मे उन्हें जो पहला खिलौना मिला वह था -भीख मांगने का कटोरा । उम्र के २४ साल तक उन्होने भीख माँगा । आज भी बैरागी जी कपड़ा मांग कर ही पहनते हैं । ऐसी ही कई बाते करते हुए हमलोग अम्बरनाथ के प्रीतम होटल तक पहुंचे । वहा हम तीनो ने दोपहर का खाना खाया .फ़िर हमने बैरागी जी से कहा कि वे अपने रूम मे आराम करें ,शाम कोहम फ़िर मिलेंगे ।
शाम को कवि सम्मेलन था । मैं और मुन्ना भइया फ़िर शाम को बैरागी जी का काव्य पाठ सुनने अम्बरनाथ पहुंचे .बैरागी जी ने जब काव्य पाठ शुरू किया तो समां बंध गया । पनिहारिन .दिनकर के वंसज और ऐसी ही कई रचनायें वे रात २ बजे तक सुनाते रहे । उनकी यह पंक्ति याद रह गई कि --
''मैं कभी मरूँगा नही , क्योंकि मैं ऐसा कुछ करूँगा नही "
रात ३ बजे मै और मुन्ना भाई जब वापस निकले तो हमे याद आया कि रात का खाना हमने खाया ही नही है और भूख काफ़ी लगी है । कल्याण आकर रातभर चलने वाली एक दूकान पर हमने आलू कि टिकिया खाई और चाय पी । ३.४५ पर मैं घर पहुँचा और सोने कि कोशिस करने लगा । पर आँखों मे बालकवि जी दिखाई पड़ रहे थे और कानो मे उनकी यह पंक्तियाँ सुनाई पड़ रही थी ---
''अपनी ही आहूती देकर ,स्वयम प्रकाशित होना सीखो
यश-अप्य्स जो मिल जाये ,उसको हस कर सहना सीखो ''------------
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Very beautiful narration, loved the concluding line,
ReplyDelete''अपनी ही आहूती देकर ,स्वयम प्रकाशित होना सीखो
यश-अप्य्स जो मिल जाये ,उसको हस कर सहना सीखो ''