Monday, 15 May 2023

विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच


 

श्री रामचरित मानस पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासाएं

 श्री रामचरित मानस के अंतर्गत लंका कांड में निम्नलिखित दो चौपाई आती है। इन्हें पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासा हुई।


चौपाई

सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥4॥


भावार्थ

पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार- ये जगत में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत में सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता। हृदय में ऐसा विचार कर हे तात! जागो॥4॥


यहां मन में एक जिज्ञासा हुई कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने सहोदर शब्द का उपयोग क्यों किया ? राम एवं लक्ष्मण सहोदर भाई तो नहीं थे । सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण एवं कौशल्या पुत्र श्री राम जी थे । विद्वत जन सहायता करें।


इसी लंका कांड में आगे एक और चौपाई आती है कि


चौपाई

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥

निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥7॥


भावार्थ

अब तो हे पुत्र! मेरे निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥7॥


यहां भी लक्ष्मण को "निज जननी के एक कुमारा" वाली बात भी समझ में नहीं आ रही। जब कि सुमित्रा के दो पुत्र थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न । 


विद्वान साथी सहायता करें।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

के एम अग्रवाल महाविद्यालय

कल्याण पश्चिम

महाराष्ट्र ।

Sunday, 14 May 2023

हवा जिसकी जुल्फों से


 

तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं

 तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं

तेरे हांथ आया सिक्का खोटा हूं मैं ।


कहते फिरते सभी से कि सच्चे हैं

कोई है सामने जो कहे झूठा हूं मैं  ।


रिश्ते नातों को निभाते संभालते

क्या बताऊं कि कितना टूटा हूं मैं ।


उसकी हां तो हां ना को ना समझा 

जैसे कि बिन पेंदी का लोटा हूं मैं ।


गलतियां जहां भी की उसे कबूला है

सुबह का भूला शाम को लौटा हूं मैं ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र 

खेल तो सारा मुकद्दर का होगा

खेल तो सारा मुकद्दर का होगा 

डूबता जहाज बवंडर का होगा ।


ईमान से लड़ेंगे पोरस कई पर

इतिहास में बड़ा सिकंदर होगा ।


वही तो रहेगा हर हाल में खुश 

जो खयाल से मस्त कलंदर होगा ।


अपने दिल में थोड़ी जगह दे दो

अब वहीं पर इश्क का लंगर होगा ।


तरसता रहा मीठे पानी के लिए

जिसके आगे खारा समंदर होगा ।


गैरत थी तो अकेले ही रह गया

तेरे इशारों पर नाचता बंदर होगा ।


योग्यताएं इंतज़ार में ही रहेंगी

सिफारिश वाला कोई अंदर होगा । 


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

कल्याण पश्चिम

महाराष्ट्र ।

आ गया खयाल तेरा नींद उड़ गई

 आ गया खयाल तेरा नींद उड़ गई

तेरी हर बात से बात मेरी जुड़ गई  ।


जो पसंद है तुम्हें मैंने वही बात की

फिर बात बात पर तुम कैसे लड़ गई ।


मैंने चाहा था तुम्हें ये अलग बात है 

बात ही बात में बात फिर बिगड़ गई  ।


मैं अकेला हो गया दूर तुम चली गई

मेरी आवाज़ पर जाने क्यों चिढ़ गई  ।


सालों बाद फिर मिले अनमने से लगे

हमारे बीच में कहीं कोई गांठ पड़ गई  ।


जब लिपट के दोनों ही रोए ज़ार ज़ार 

आंखों ही आंखों में आंख फिर गड़ गई  ।


आंसुओं से धुल गया जो भी मलाल था 

रुकी - रुकी प्यार की बात फिर बढ़ गई  ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र

Saturday, 13 May 2023

नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता

 नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता 

मोहब्बतों का कोई मुकाबिल नहीं होता ।


जब तक मिल बैठ सलीके से बात न हो

हल कोई भी संजीदा मसाइल नहीं होता ।


रंजिशों का रंज अगर मोहब्बतें मिटा देती

तो उजाड़ मकानों में अबाबिल नहीं होता ।


छोड़कर जानेवाले इतना तुम याद रखना

हर कोई हमारी तरह जिंदादिल नहीं होता ।


यारों का साथ और संगदिली बड़ी चीज़ है 

सब के नसीब शौक ए महफ़िल नहीं होता ।


कुछ रास्तों पर ये पांव ख़ुद ही रुक जाते हैं 

जब कि वहां कोई भी सलासिल नहीं होता ।


जो मौसमी नालों की तरह बहते बह जाते हैं

उनके नसीब में तो लब ए साहिल नहीं होता ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
हिंदी व्याख्याता
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...