Tuesday, 15 September 2009

कैसे तुझे अपना मानू ?

किन जज्बातों को मानू ;

किन अरमानो को जानू ;

क्या नही बदला तुझमे ;

जो तुझे अपना मानू ?

क्या भावों में सत है ;

क्या आखों में तप है ;

क्या बाकी है तुझमे ;

जो तुझे अपना जानू ?

कब यादों को तुने साधा ;

मेरी यादों से है तू भागा;

भुला रोई आखों के वादे भी ;

कैसे तुझे अपना मानू ?

Sunday, 13 September 2009

अक्स आखों से दिल में उतर गया ;

अक्स आखों से दिल में उतर गया ;

आंसू दिल का आखों से गुजर गया ;

तेरी अदावत का लुत्फ़ भी ले लेते लेकिन ;

न जाने क्यूँ तेरा दिल बाँहों में पिघल गया ;

तू गैर की है यकीं है मुझे ;

मुझे देख के तेरा आंसू निकल गया ;

तेरी मोहब्बत से गुरेज करूँ कैसे ;

मेरे पास आते ही तेरा अरमां मचल गया ;

क्या करूँ अपने भावों का मै ;

मेरा हर लम्हा तुझमे सिमट गया /

चाँदनी रातों में अँधियारा लगता है ;

चाँदनी रातों में अँधियारा लगता है ;
जागते सपनों में तू हमारा लगता है ;
सोयी आखों में तू आता नही ;
ग़मों का तू उजियारा लगता है /

Thursday, 10 September 2009

याद आ रही है ---------------

फ़िर तुम्हारी याद आ रही है ,
पुरानी बातें मुझे साल रही हैं ।
जो भी पल साथ बीते थे,
यादे उन्ही को दुहरा रही हैं ।
बहुत दूर निकल आया हूँ लेकिन,
हर जगह तू ही नजर आ रही है ।
मिलो गी फ़िर कभी तो,
अजनबी बन कर रहोगी ।
पास होकर दूर जाने का,
एहसास देती रहोगी जिन्दगी भर ।
गलती हमारी नही,
वक्त हमारा नही रहा,
जो सोचा था ,वैसा कोई सपना अब अपना ना रहा ।
तेरे बारे me जब भी सोचता हूँ,
अपने को सजा देता हूँ ।
अब बिना तेरे,
जिन्दगी की लाश को ,
अपनी साँसों पे लिए फिरता हूँ।
में तेरे बिना अब ,
अपने बगैर भी जीता हूँ ।
तुमसे कह नही सकता लेकिन,
तुम्हें बहुत याद करता हूँ ।

Wednesday, 9 September 2009

भावनावों का अत्याचार भी खूब है ;

भावनावों का अत्याचार भी खूब है ;
कभी आंसू तो कभी महबूब है ;
कभी अपनो का कारवां ,
कभी आकंछावों की भूख है ;
कभी हलके इनकार पे आखें नम हो गई ;
कभी इकरार पे भी आखें शबनम हो गई ;
कभी दूरियों में भी नजदीकी का अहसास है ;
कभी नजदीकियों में भी दुरी का आभास है ;
कभी दौड़ के लिपटा पर आखें सजल न हुईं;
कभी आखों की आखों की बातों से वो नम हो गई ;

Monday, 7 September 2009

हिन्दी की दुर्दशा

हिन्दी की हालत आज हम बहुत सतोषजनक नही कह सकते। english की तुलना में हिन्दी को अभी लम्बी लडाई लड़नी है । बाज़ार के साथ हिन्दी आज जुड़ चुकी है ,यह अच्छी बात है लेकिन अभी और प्रयास की जरूरत है । वैसे इस बारे में आप क्या सोचते हैं ?

Sunday, 6 September 2009

१४ सितम्बर हिन्दी दिवस

१४ सितम्बर हिन्दी दिवस
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हर साल १४ सितम्बर को ,
आता है हिन्दी दिवस ।
और शुरू हो जाती है ,हिन्दी पे बहस ।
हिन्दी का गौरव
हिन्दी का वैभव ,
इस पे विद्वानों में होती है चर्चा ,
हर जगह चल रही होती है परिचर्चा ।

पर क्या आप जानते है ?
की जब हिन्दी के सजते हैं समारंभ,
लगभग तभी होता है पितरपक्ष भी प्रारम्भ ।
जिस तरह पितरपक्ष में,
पिंडो का दान किया जाता है,
पुरखो को याद किया जाता है ,
ठीक उसी तरह हिन्दी दिवस पर,
हिन्दी को याद कर लिया जाता है ।
हिन्दी विद्वानों का सम्मान कर दिया जाता है ।

पितरपक्ष में बेचारे ब्राह्मण,
इतना पाते हैं भोज का निमंत्रण ,
की मुस्किल हो जाता है तैयकरना,
की कंहा है जाना,और कंहा है मना करना ।

हिन्दी के जानकार पंडित भी
कुछ इसी तरह परेसान होते हैं,
चार दिन की चादनी पे ,
अनायास मु़ग्ध होते हैं ।
दोस्तों,हिन्दी का आदर,
सिर्फ़ हिन्दी दिवस मनाने में नही,
दैनिक जीवन में उसे अपनाने से है ।
हिन्दी का आदर,
हिन्दी-हिन्दी चिल्लाने में नही ,
हिन्दी के प्रति समर्पण में है ।

-------------डॉ.मनीष कुमार मिश्रा

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...