Saturday, 16 May 2009
The election and its verdict
I have my view on this .
There are no of factors which can be attributed for this success of congress. The acceptance of Mr. Manmohan singh as able administrator , his clean image and the toughness shown on Nuclear issue has very vital role in it.The biggest blunder BJP made was targeting of Mr. Manmohan singh as weak Prime minister And personal attack on him by BJP .
And then the rise of Mr. Rahul Gandhi as youth leader and his master stroke of Going solo in U.P. and Bihar .There were many regional issues like MNS in Maharashtra Tamil issue and many other factors .
But one of the major trend is also to go for a government which is pro growth that's a welcome change . Other important thing is rise of national parties or other word leaning of people towards a two national parties Congress and BJP. In-spite of setbacks BJP has done well in no of states .

Friday, 15 May 2009
पपीहे की तरह चाँद ताकता मै रहा ,
अँधेरी गुफा में आसमान ताकता मै रहा /
नखलिस्तान की ओर तेजी से मै दौड़ा ,
मृगतृष्णा थी ,पानी तलाशता मै रहा /
लोग कहते हैं ,उसकी आखों में समुंदर सी गहराई है ;
मै समुन्दर में दिल का रास्ता तलाशता रह गया /
बाँहों में फिर भी भर लेता उसको ऐ यारों ;
मै सामने खड़े बुत में ,जीवन का स्पंदन तलाशता रह गया /

Thursday, 14 May 2009
निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में ;
कुछ उनके साथ थे ,कुछ और की तलाश थी /
उन मदमस्त हवावों में ,कोहरों के साये में ;
महफिलों में ,जानी अनजानी बाँहों में ;
गा रहे थे पार्टियों में , घूम रहे थे अलमस्त भावों में ;
महफिलों का दौर था , कितने ही रंगों से सराबोर था ;
महक आती थी बातों से ,इठलाती थी शरमा के गालों से ;
खुसबू थी उसके बालों में , वो खुश थी स्वच्छंदता की राहों में /
हम भज रहे थे भगवान को ,तलाश रहे थे स्वयं में इनसान को ;
हाँ लोंगों की भीड़ थी , पर तन्हाई कितनी अभिस्ट थी ;
अपने में खोये थे ,पथरीली चट्टानों पे सोये थे ;
अपने को समेटे हुए , सत की तलाश में रमते हुए ;
भावों को सरलता की चाह दी , मन को भक्ति का भाव दी ;
उन्हें स्वच्छंदता की दरकार थी , कुछ और की तलाश थी /
वो खुश है की महफिलों की जान हैं ;
mai khush हूँ मुजमे एक सरल इन्सान है ;
उनकी भक्ति भी एक विलाश है ;
मेरे लिए भोग भी भक्ति प्रसाद है /
निकले थे एक ही दिन अलग अलग राहों में /

Tuesday, 12 May 2009
अमरकांत के साथ अन्याय क्यो ?
१ जुलाई १९२५ को बलिया मे जन्मे अमरकांत की पहली कहानी १९५३ के आस-पास कल्पना नामक पत्रिका मे छपी । इस कहानी का नाम था -इंटरव्यू । अमरकांत की जो कहानिया बहुत अधिक चर्चित हुई ,उनमे निम्नलिखित कहानियों के नाम लिये जा सकते हैं-
- जिंदगी और जोंक
- डिप्टी कलेक्टरी
- चाँद
- बीच की जमीन
- हत्यारे
- हंगामा
- जांच और बच्चे
- एक निर्णायक पत्र
- गले की जंजीर
- मूस
- नौकर
- बहादुर
- लड़की और आदर्श
- दोपहर का भोजन
- बस्ती
- लाखो
- हार
- मछुआ
- मकान
- असमर्थ हिलता हाँथ
- संत तुलसीदास और सोलहवां साल
इसी तरह अमरकांत के द्वारा लिखे गये उपन्यास निम्नलिखित हैंपत्ता
- कटीली राह के फूल
- बीच की दीवार
- सुखजीवी
- काले उजले दिन
- आकाश पछी
- सुरंग
- बिदा की रात
- सुन्नर पांडे की पतोह
- इन्ही हथियारों से
- ग्राम सेविका
- सूखा पत्ता
- इस तरह करीब १२० से अधिक कहानिया और १२ के करीब उपन्यास अमरकांत के प्रकाशित हो चुके हैं । लेकिन दुःख होता है की इतने बडे कथाकार को हिन्दी साहित्य मे वह स्थान नही मिला जो उन्हे मिलना चाहिये था । आलोचक प्रायः उनके प्रति उदासीन ही रहे हैं । ऐसे मे अब यह जरूरी है की अमरकांत का मूल्यांकन नए ढंग से किया जाए ।
अभिव्यक्ति की विवेचनाएँ
सन्दर्भ की व्याख्याएं --------- समाचार पत्र
हितों का विरोधाभास --------- समाज
सत्य का मिथ्याभास --------- सामाजिकता
व्यक्ति की असमर्थतायें --------- वासनाएं
समाज की विवसतायें --------- भ्रस्टाचार
देश की गतिशीलता --------- चमत्कार
स्वार्थ का हितोपदेश --------- राजनीति
patan ki पराकास्ठा --------- राजनेता
सच्चाई की अनुभूति --------- सपना
सच्चाई की जीत --------- माँ की प्रीती

Monday, 11 May 2009
कुछ के गुजर
कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /
डूबते का किनारा बन
भटकते का सहारा बन ,
मरते की साँस बन ;
अपनो की आस बन ;
कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /
संत की तलाश बन ,
भक्ति का ज्ञान बन;
ज्ञानी का ध्यान बन ,
सांसारिक का मन बन ;
कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /
किसी का स्नेह है तू ,
किसी का ध्येय है तू ;
किसी का दुलार है तू ,
किसी का प्यार है तू ;
किसी का भाग्य है तू,
किसी का अधिकार है तू ;
उठ हिम्मत बाँध ,
टूटे किनारे संभाल ;
साथ बन , विस्वास बन ;
कर ले अपने बस में मन ;
कुछ कर गुजर ,
कुछ ऐसा कर ;
सबको नाज हो तुझपे /

Sunday, 10 May 2009
पूर्वग्रह पत्रिका का प्रकाशन पुनः प्रारम्भ ----------------------
प्रभाकर शोत्रिय जी के सम्पादन मे यह भारतीय भवन ,भोपाल से निकल रही है ।
Saturday, 9 May 2009
हमसफ़र कौन है ,कैसे कहे आज हम ?
hamsafar kaun है, kaise kahen aaj hum ;
रास्तों में भटके हुए हैं, मंजिल की तलाश है /
raston me bahatke huye hain; manjil ki talsh hai /
साथ तेरा सुखमय है , बात तेरी प्रियकर है ;
sath tera sukhmay hai ,bat teri priykar hai ;
कैसे कहें तू है वो हमसफ़र ,जिसकी मुझे तलाश है;
kaise kahen tu hai wo हमसफ़र, jisaki muje talash hai /
मेरी अनिभिज्ञता पे नाराज न हो ;
meri anibhigyta pe naraj na ho ;
पर रास्ते में ही मंजिल का हिसाब ना हो ;
par पर raste रास्ते me hi manjil ka hisab na ho ;
वाकये कितने अभी टकराने हैं ;
wakaye kitane anjane abhi takarane hai;
राहों में अभी फैसलों के वक्त आने हैं ;
rahon me abhi faisalon ke waqt aane hai;
दुविधाएं अभी कहाँ आई ?
duvidhayen abhi kahan aayi ?
जिंदगी की भूलभुलैया कहाँ छाई ?
jindagi ki bhulbuliya kahan chayi?
रिश्तों में गहराईयाँ अभी आनी है;
riston में गहराईयाँ aani hai ?
वो इक समुंदर है ,या बारिश का फैला हुआ पानी है ?
wo ek samunder hai ya barish ka faila huwa पानी hai है ?
कैसे कहें हमसफ़र मिल गया ?
रास्ते में उलझे हैं ;
rasten me ulaje hai ,
मंजिल की तलाश जारी है /
manjil ki talash jari hai /

Friday, 8 May 2009
गुजरा ज़माना , आज का फ़साना /
गुजरा जमाना ,
आज का फ़साना ;
अनकही बातें ,
अधूरे जजबात ,
और वो रात /
अरमानो का मौसम ,
बाहों की जकडन ,
जलता तन ;
बहकता मन ,
सतत प्यास ,
वो भावों का कयास ;
महकी सांसों का बंधन ,
तन से खिलता तन ;
क्या सच क्या सपना ;
रास्ता देखती आखें ,
आखों से आखों की बातें ;
सुबह का इंतजार करती रातें ;
स्पर्श से आल्हादित दिन ,
सामने पाके हर्षित मन ;
प्यार बरसते नयन ,
भावनावों की मदहोशी ;
उसपे तेरी हंसी ,
क्या सच , क्या सपना ;
क्या भाग्य क्या विडम्बना ,
क्या तू है मेरा अपना /

Thursday, 7 May 2009
उस रात का गिला क्या करे जब हम तुम साथ न थे
उस पल की याद क्या जब हाथों में हाथ न थे ;
चाँद की चांदनी में भी कहाँ अब वो बात है ,
सूरज की रोशनी में भी अँधेरे की छाप है ;
क्या कहे दिल की हालत ए मेरी जिंदगी ,
जब से तुम बिचडे हो बहकता सावन भी उदास है ;

Wednesday, 6 May 2009
कुछ तो कहो, कुछ तो लिखो ;
सजाई है जब एक महफ़िल ,
महफ़िल में कभी तो खिलो ;
क्यूँ चुप हो ,क्या बात है,
क्यूँ मुद्दे नहीं मिलते ;
जीवन का हर पल एक बात है ,
क्यूँ बात नहीं करते ;
चुप रहने से कुछ हासिल नहीं होता ,
बिना अपनी बात कहे,
समाज के बदलाव में शामिल नहीं होता ;
गर चीजें बदलनी है बेहतरी के लिए ,
खुल के कहो बात अपनी ,
देश की तरक्की के लिए /

The caste system

Monday, 4 May 2009
लौटा है आज वो घर बरसों बाद
हर साल दो साल बाद ,
वो घर आता जरूर था ;
पर लौटा है घर आज वो बरसों बाद /
ख़त या इ मेल तो अपनो को करता था ;
पर वो बस खोखले शब्दों का मायाजाल है मात्र /
उसने अपने फ्लैट में गमले सजाएँ हैं ;
कई छुट्टियाँ शहर के आस पास के पहाडों ,औ पर्यटन स्थल पे बिताएं हैं/
कहाँ पाया उसने गाँव की मिट्टी का अपनापन !
शहर की पार्टियों पर ,नेटवर्क की साइटों पर ,सैकडों मित्र, मैत्रिणी है उसकी ,
कहाँ पाया उसने ;बचपन के दोस्तों की निश्छलता ,अपनापन ;
कैसे पाए अपने वो मचले दिन ?
बचपन की लड़ाई ,वो कसक , उतावलापन ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
कभी फ़ोन ,कभी मोबाइल पे बात कर लिया करता था अपनो से ,
पर कहाँ पाए वो उष्मा दादी की गोद का ,
मामा की सोच का ,
चाचा की डांट का ,
पडोसी के दुलार का ;
माँ की ममता का ,
पिता की कडाई का ,
दादा की रजाई का /
बड़ा आदमी बन गया है अब वो ,
प्यार को कितना तरस गया है वो ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
बिस्तर माँ को जकडे पड़ा है ;
पिता की आखों में खालीपन सा छुपा है ;
बचपन का दोस्ताना ,अपनो का याराना कहीं खो सा गया है /
भाई भाभी विस्मित है ,किस ढंग से पेश आयें ;
सब चाहते तो है अपनापन और हक दिखलायें ;
झूठा दिखावा और भावों का ओथालापन ;
उसका खुद का और अपनो का ;
दोनों को व्यथित किये है ;
इतने सालों को कैसे जोड़े ,
ये प्रश्न भ्रमित किये है /
सालों की अपनी सफलता में ,
बीबी के चाह में ;
बच्चों को पालने में ,
शहर की चमक में ,
भविष्य को निखारने में ;
अपने सुख ,झूठे दिखावे और विलासों के साये में ;
बिता डाले ;कितने ही सावन , होली दिवाली ;
शहरों की दीवालों में ;
पर लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
आज बीबी का तन शिथिल , मन का वो नही जानता ;
बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त ;
समाज और दोस्तों में वाह वाही है ;
ह्रदय खाली सिर्फ खाली है/
ये उसकी अपनी जिंदगी का खोखलापन,
डरावने सपने सा सामने खडा है ;
और आज उसके सामने practical बनने का attitude ;
यछ प्रश्न सा सिने में जड़ा है /
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /

मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं
इस रिश्ते की हकीकत को खुद को कैसे समझायुं
/ बरसों से मिला नहीं है ,
पर कैसे कह दूँ रिश्ता नहीं है
?हर अहसास से इंकार है तुझको ;
ऐसा कोई पल नहीं, जब तू याद नहीं मुझको /
मेरी हर गम या ख़ुशी का , तुझे ध्यान है रहता
;कभी इतने दूर न हो जाये की पास न आ सके ;
इस पहलू ने एक अनजाने धागे से हमें बांध के रक्खा ;
इतने पास न आ जाये की दुरी में हो मुश्किल ;
इस डर ने हमें अनजान सा रक्खा /
मै उससे अपने रिश्ते के वजूद को कैसे झुठलायुं ;
इस रिश्ते की हकीकत को खुद को कैसे समझायुं /

Sunday, 3 May 2009
आज नया क्या दूँ मै किसको
प्यार किया था एक सपने से ;
जो कसी ने तोड़ दिया ;
स्नेह दिया था जिस अपने को ;
उसने मुह मोड़ लिया ;
आज नया क्या दू मै किसको ?
विसवास किया था जीवन का जिसपे ;
उसको अपना ही हित प्यारा है ;
याद किया है जिसको हर पल ;
उसका ह्रदय पराया है ;
आज नया क्या दूँ मैं किसको ?

आज का नौजवान
सीना तान के खडा है ,उंचाईयों की तरफ बड़ा है ;
आत्म विस्वास से भरा है,
आज का नौजवान /
मंजिले उसकी धाती है , असंभव की बात नहीं भाती है ;
तेजस्विता से ओतप्रोत है ,धर्म से सचेत है ;
सीमाओं में बन्धता नहीं, कठिनाईयों से रुकता नही ;
अपनी गरिमा जानता है ,स्वतंत्रता की सीमा पहचानता है ;
आज का नौजवान /

Saturday, 2 May 2009
The caste system
"Birth is not the cause, my friend; it is virtues which are the cause of auspiciousness. Even a chandala (lower caste) observing the vow is considered a Brahman by the gods."
“The four fold division of castes’ “was created by me according to the apportionment of qualities and duties.” “Not birth, not sacrament, not learning, make one dvija (twice-born), but righteous conduct alone causes it.” “Be he a Sudra or a member of any other class, says the Lord in the same epic, “he that serves as a raft on a raftless current , or helps to ford the unfordable, deserves respect in everyway.”
Sardar Kavalam Madhava Panikkar (1896-1963) Indian scholar, journalist, historian from Kerala, administrator, diplomat, Minister in Patiala Bikaner and Ambassador to China, Egypt and France. Author of several books, including Asia and Western Dominance, India Through the ages and India and the Indian Ocean.
He says:
“The fact is that the four-fold caste is merely a theoretical division of society to which tribes, clans and family groups are affiliated. It is a sociological fiction. The earliest available literature gives instances of Brahmins carrying on the professions of medicine, arms and administration."

Friday, 1 May 2009
अभ्यर्थना में तेरे निकाल दिए बरसों
तेरी अनिश्चितता का क्या कहें ,कभी तो खुल के बरसो /
हर बार कुछ आस दे के सिमट जाते हो ;
खुशी के कुछ लम्हे, पर लम्बा बनवास दिए जाते हो /
मजबूरियों से किसी के नावाकिफ नहीं है कोई ;
पर दिल को हर बार उदास किये जाते हो /
भावनावों का ;दुनिया की रीती से ,लोंगों की बुद्धिमत्ता की सीख से;
कब याराना रहा है यार मेरे ?
फिर क्यूँ भावों को हर बार, पराजय का अहसास दिए जाते हो ?

The caste system
Even if we are born Sudras. By good conduct we can raise ourselves to the highest status. (sudrayonau hi jatasya sadgunan upastisthatah vaisyatvam labhate brahmam ksatriyattvam tathaiva ca arjave vartamanasya brahmanyam abhijayate – Aranyaparva. )
Patanjali refers to Brahmin kings, and Manu to Sudra rulers. There were Brahmin soldiers in the time of Alexander, as there are today. Shankara held the view that members of all castes can read the sastras. Hindu acaryas denounced the spirit of caste separatism. Vajrasucikopanisad holds that many who were born of non-brahmin women had risen to the rank of Brahmin saints.
Author Beatrice Pitney Lamb has pointed out:
"Clearly the Indian way of assimilating foreigners - by allowing them to pursue their own customs within some niche of the caste system - has led to greater variety and tolerance within the country than exists in the United States, where immigrants have been assimilated through a school program emphasizing 100 per cent Americanization - and hence, implicitly, the rejection of inherited cultural roots."
Writing of this varna-ashrama-dharma, Auguste Comte (1798-1857) the great French sociologist, wrote in his book Système de philosophie positive or Positive Society:
“No institution has ever shown itself more adopted to honor, ability to various kinds than this polytheistic organization…In a social view, the virtues of the system are not less conspicuous. Politically, its chief attribute was stability…As to the influence on mortals, this system was favorable to personal morality, and yet more to domestic, for the spirit of caste was a mere extension of the family spirit….As to social morals, the system was evidently favorable to respect for age and homage to ancestors.” greatest poets and the most venerated saints such as Sura Dasa, Kabir, Tukaram, Thiruvalluvar and Ram Dasa; came from the humblest class of society." Caste system has been exploited against the Hindus, for the last two centuries by the British, Christian Missionaries, Secular historians, Communists, Muslims, Pre and Post-Independence Indian politicians and Journalists for their own endshe caste system was never a tenet of the Hindu faith.
"The universe is the outpouring of the majesty of God, the auspicious one, radiant love. Every face you see belongs to Him. He is present in everyone without exception." - says the Yajur Veda.
"The Lord (The Divine) is enshrined in the hearts of all." - says the Isha Upanishad 1 -1.
The Upanishads which are a pure, lofty, heady distillation of spiritual wisdom which come to us from the very dawn of time tell us:
"Reality (God) is our real Self, so that each of us is one with the power that created and sustains the universe."
In Sanskrit, Tat tvam asi, “You are That.”
"In the depths of meditation, sages (rishis)
Saw within themselves the Lord of Love,
Who dwells in the heart of every creature." says the Shvetashvatara Upanishad. 1 - 3.

The caste system

What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers
Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...
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