Wednesday, 1 April 2009
रात अकेले सागर तट पर हम दोनों ----------------------------
एक-दूजे के कन्धों पर ,प्यार से कितने सोय थे ।
इधर-उधर के जाने कितने ,किस्से तुमने सुनाये थे
वही बात ना कर पाये,करने जो तुम आये थे ।
एक साँस मे कह डाले ,सपने जो भी संजोये थे
फ़िर आँखों मे मेरी देखकर,कितना तुम मुस्काये थे ।
नर्म रेत पर पास बैठकर ,कितना तुम इतराये थे
प्रथम प्यार के चुम्बन पे,बच्चों जैसे शरमाये थे ।
गहर के अंदर मेरी भी --------------------
प्यार किया है जब से मैने,कहते हैं सब सत्यानासी ।
बडे नमाजी उसके अब्बा,पिताजी मरे चंदनधारी
लगता है गरमायेगा ,मुद्दा फ़िर से मथुरा-काशी ।
अच्छा है की लोकतंत्र है ,नही चलेगी तानाशाही
बस इनका यदि चलता तो ,मिलकर देते हमको फाँसी ।
Tuesday, 31 March 2009
पकिस्तान के हालात --------
- कल ही पकिस्तान मे एक और आतंकवादी हमला हुआ जिसने पूरे पकिस्तान को हिला के रेख दिया। भारत का पड़ोसी होने के कारण पकिस्तान की आतंरिक स्थितियां हमारे लिये भी चिंता विषय हैं । अफगानिस्तान के बाद तालिबान की पकड़ पकिस्तान पे मजबूत होती जा रही है .तालिबान को अलकायदा का समर्थन मिलता ही रहता है । भारत कट लिये समय आ गया है की वह अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को साथ लेकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक नई पहल करे ।
पकिस्तान को भी अब यह समझना हो गा की जी आतंकवाद के दम पे वह भारत को आँख दिखता था ,वाही अब भास्मा सुर की तरह उसे ही तबाह कर डालने की कोसिस कर रहा है ।
आज से जी २० के सिखर सम्मलेन मे प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जा रहे हैं । उन्हे जो दो मुद्दे पुरी ताकत से उठाना चाहिये वो निम्नलिखित हैं ।
१.भारत का जो पैसा काले धन के रूप मे बाहरी बैंकों मे है ,उसे वापस लाना
२.आतंकवाद की समस्या पर पकिस्तान और अफगानिस्तान के हालत पे विश्व व्यापी कारगर उपाय खोजना ।
Monday, 30 March 2009
क्या -क्या किया जवानी मे -----------------------------
नदी थे ,सो बह गये थे रवानी मे
हम तो शांत झील की तरह थे
आग तुम्ही ने लगा दी पानी मे
मेहमान से आये थे ,चले गये
करके इजाफा हमारे खर्चे मे
वो तो खुशबू थे ,बिखर गये
पड़ गये हम तो परेशानी मे
इश्क करना कब था हमे
हो गया यह काम नादानी मे
Sunday, 29 March 2009
JUST TO SAY HI
I AM JAI PANDEY WORKING AS A MECHANICAL ENGINEER IN MUMBAI. FROM TODAY ONWARDS YOU CAN READ MY ARTICLES RELATED TO MINERAL PROCCESING,TEHNOLOGY AND INDUSTRIAL ETP.
WITH HOPE THAT YOU WILL LIKE IT.
Saturday, 28 March 2009
दिन करीब चुनाव के आने लगे हैं ------------
Friday, 27 March 2009
दिनकर की मृत्यु चन्द्रास्वामी की गोंद मे .........
बैरागी जी बताते हैं कि सुन ७४ मे एक दिन दिनकर जी ने अचानक कहा कि वे तिरुपति जा रहे हैं । श्री गोपाल प्रसाद व्यास ने कारण पूछा तो वे बोले -यह देश जीने लायक नही रहा ,मैं मरने जा रहा हूँ ।
और रामनाथ जी गोयनका के गेस्ट हाउस मे चंद्रास्वामी की गोंद मे उन्होने अपने प्राण त्याग दिये । हिन्दी का दिनकर दक्षिण मे अस्त हो गया । सत्ता अगर सम्मान देती है तो , अपमानित भी करती है । इस बारे मे जादा नही कहना चाहता पर दिनकर की राजनितिक स्थितयों को जानने वाले मेरा मतलब समझ जाएँगे ।
Tuesday, 24 March 2009
नैनो के फायदे और नुक्सान
अगर बात फायदे की करे तो कहा जा सकता है की -
- देश के मध्यम वर्ग का कार मे घूमने का सपना नैनो कार की वजह से पुरा हो गया । साथ ही साथ आम आदमी तक कार पहुँच सकी .isksathikइ
- दूसरी बात यह की इससे रोजगार के नए अवसर भी देश मे लोंगो को मिलेंगे ।
अब अगर दूसरी दृष्टी से सोचा जाये तो टाटा की नैनो को प्राथमिकता का निर्णय ग़लत भी लगता है । एक ऐसे समय मे जब पूरी दुनिया मे मंदी छाई हुई है तो देश के मध्यम वर्ग को कार देना कौन सा सार्थक निर्णय है ?
दूसरी बात हमारी ऊर्जा संकट की है । पेट्रोलियम पदार्थों की कमी की है । बुनियादी सुविधावों के आभाव की है । इन सब को भूल कर नैनो का स्वागत करना इतना आसन नही है ।
वैसे आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?
कबअब agarar २अब 2kइकी
Sunday, 22 March 2009
आज से साहित्य का महा-कुम्भ द्वारका(गुजरात) मे -------
हिन्दी साहित्य समेलन प्रयाग का ६१ वां अधिवेशन और परिसंवाद आज २२ मार्च से गुजरात के द्वारका मे सुरु हो रहा है । यह सम्मलेन २४ मार्च २००९ तक चलेगा । देश भर से करीब ५०० से अधिक हिन्दी साहित्यकारों और विद्वानों के इस सम्मलेन मे सामिल होने की सम्भावना है ।
कार्यक्रम पुस्तकालय टाऊन हाल ,हरी प्रेम मार्ग ,द्वारका मे होगा । अधिक जानकारी के लिये शैलेस भाई नरेन्द्र भाई ठाकर से ०९४२८३१५४०३ इस मोबाइल पे संपर्क किया जा सकता है ।
Friday, 20 March 2009
आतंकवाद के ख़िलाफ़ हिन्दी गीतों की सुरांजलि -आलोक भट्टाचार्य
यंहा हिन्दी गीतों की एक सी.डी का लोकार्पण नूरजंहा के हांथो होगा । इन गीतों को लिखने का काम श्री आलोक भट्टाचार्य ने किया है । गीतों को अपनी आवाज से सवार हाय -सुरेश वाडेकर.साधना सरगम,मोहमद अजीज़ और जावेद अली ने ।
इस अवसर पे कई जाने-माने लोग भी उपस्थित रहेंगे । आप का भी स्वागत है इस साहित्यिक और संगीतमय आयोजन मे ।
Thursday, 19 March 2009
अपनी राह बनाने को ---------------
मैं तो अकेला चल निकला
मंजिल का कहना मुस्किल है ,
पर साथ है मेरे राह प्रिये ।
आयेंगे जितने भी सब का
द्वार पे मेरे स्वागत होगा
जाना जो भी चाहेगा,
हर वक्त है वो आजाद प्रिये ।
इतनी अगर सजा दी है
तो फ़िर थोड़ा प्यार भी दो
आँचल की थोड़ी हवा सही ,
या बाँहों का हार प्रिये ।
तेरे-मरे रिश्ते जितना
उम्मीद से मेरा रिश्ता है ।
कितनी लम्बी प्यास है मेरी ,
पनघट बन तू देख प्रिये ।
भावों का यह वंदन पूजन --------
तुमको देव बनाती है
भावों का यह वंदन पूजन
कर लेना स्वीकार प्रिये
मेरी सारी इच्छायें
तुमसे ही तो जुड़ती हैं
फ़िर क्यों और किसी ठाकुर के
द्वार का घंट बजाऊँ प्रिये
जीत -जीत कर जीवन मे
चाहे जो भी हासिल कर लो
पर प्यार जीतने के खातिर
हार यंहा अनिवार्य प्रिये
खो कर ही सबकुछ
प्यार को पाना होता है
इसीलिये तो कहता हूँ
प्यार को मैं सन्यास प्रिये
मीठी -मीठी तेरी बोली
मन को मोहित करती है
अंदर ही अंदर मै हर्षित
करके तुझको याद प्रिये
उषा की लाली मे ही
नया सवेरा खिलता है
तिमिर भरी हर रात के आगे
रश्मिरथी उपहार प्रिये
पहले कितना शर्माती थी
अब तुम कितना कहती हो
मुझसे मिलकर खिलती हो
लगती हो जैसे परी प्रिये
मरे अंदर जितना तुम हो
उतना हे मैं तेरे अंदर
हम दोनों मे मैं से जादा
भरा है हम का भाव प्रिये
Wednesday, 18 March 2009
मै न रहूँगा सच है लेकिन --------
मस्ती भरी चलू मैं चाल
नव पर नव की अभिलाषा
मन मे मेरे भरी प्रिये
मैं न रहूँगा सच है लेकिन
रहेगी मेरी अभिलाषा
एक ह्रदय की दूजे ह्रदय से
यह करेगी सारी बात प्रिये
जो हम चाहें वो मिल जाये
ऐसा अक्सर कब होता
जो है उसमे खुश रहना
खुशियों की सौगात प्रिये
मंजिल की चाहत मे हम
लुफ्त सफ़र का खोते हैं
है जिसमे सच्चा आनंद
उसी को खोते रहे प्रिये
तकलीफों से डर के हम
नशे मे डूबा करते हैं
बद को बदतर ख़ुद करते
फ़िर किस्मत कोसा करें प्रिये
प्रेम भरे मन की अभिलाषा
मधुशाला मे ना पुरा होती
प्रेम को पूरा करता है ,
जग मे केवल प्रेम प्रिये
मदिरालय मे जानेवाला
कायर पथिक है जीवन का
जो संघर्षो को गले लगाये
कदमो मे उसके जग है प्रिये
जिसके जीवन मे केवल
पैमाना-शाकी -बाला है
जीवन पथ पे उसके गले मे
सदीव हार की माला प्रिये
Tuesday, 17 March 2009
मेरी अन्तिम साँस की बेला
मत देना तुलसी गंगाजल
अपने ओठों का एक चुम्बन
ओठों पे देना मेरे प्रिये
इससे पावन जग मे सारे
वस्तु नही दूजी कोई
इसमे प्रेम की अभिलाषा
और उसी का यग्य प्रिये
मेरी अन्तिम शव यात्रा मे
राम नाम तुम सत्य ना कहना
प्रेम को कहना अन्तिम सच
प्रेमी कहना मुझे प्रिये
चिता सजी हो जब मेरी तो
मरघट पे तुम भी आना
आख़िर मेरे प्रिय स्वजनों मे
तुमसे बढ़कर कौन प्रिये ?
श्राद्ध मेरा तुम यूँ करना
जैसे उत्सव या त्यौहार
पर्व अगर जीवन है तो
महापर्व है मृत्यु प्रिये
इंतजार हो मौसम का
इतना धैर्य नही मुझमे
हम जैसो के खातिर ही
होती बेमौसम बरसात प्रिये
मेरा अर्पण और समर्पण
सब कुछ तेरे नाम प्रिये
स्वास-स्वास तेरी अभिलाषा
तू जीवन की प्राण प्रिये
Thursday, 12 March 2009
४ पीढियों का कवि नीरज
नीरज के बारे मे उन्होने बताया की एक बार जब नीरज के साथ बैरागी जी काव्य पाठ कर रहे थे तो बैरागी जी ने कहा की- आप के मर जाने के बाद हम लोग तो आप को कन्धा भी नही डे पायेंगे ।
इस पर नीरज ने पुछा -क्यों आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?
बैरागीजी बोले- जब आप की शव यात्रा निकले गी तो हमे कन्धा देने के लिये बिना चप्पलो के चलना होगा ,और ऐसे मे आप की प्रेमिकाओं की टूटी हुई चूडियाँ हमारे पैरों मे चुभेंगी । तो आप ही बताओ हम कैसे चल पायेंगे ।
इतना सुनते ही नीरज ने बैरागी जी को गले लगा लिया । बात मजाक मे khatm ho gai । lekin jo niraj ko kareeb say jaantay hain vo इस बात की गहराई को समझते हैं । प्यार मे कोई बरबाद नही होता । प्यार हमे उदार बनता है ,samvaidansheel banata hai , yahaa tak ki maanav ko मानव भी प्रेम ही बनता है । प्रेम से बचो मत --------इसमे गहरा उतारने की कोशिस करो । तुम्हारी जय हो गी -------प्रेम करो ---प्रेम बांटो -----------------------------------------------------------------------------------
Wednesday, 11 March 2009
होली के रंग -बाल कवि बैरागी के संग
मै फटाफट तैयार हो गया । मुन्ना भइया की ही कार से हम लोग मुंबई सेंट्रल पहुंचे .थोडी देर के बाद ही राजधानी एक्सप्रेस आ गई । बैरागी जी को हमलोगों ने रिसिव किया और कार तक ले आये ।
बैरागी जी ने फ़ोन से घर पे सूचना दी की वे पहुँच गये हैं और दो लिखे-पढे लोग उन्हे लेकर जा रहे हैं । फ़िर मोबाइल को दिखाते हुए बोले की -यह वो जनेऊ है जो कान पर चढाते ही आदमी बोलने लगता है । फ़िर हम लोग एक दूसरे से इधर -उधर की बातें करने लगे । उन्होने अपने कुछ मित्रों के नाम लिये जिन्हें मै-और मुन्ना भइया भी जानते थे ,उनसे बैरागी जी की मोबाइल पर ही बात कराइ गयी । जैसे की NAIND किशोर नौटियाल ,सचिन्द्र त्रिपाठी ,आलोक भट्टाचार्य और विजय पंडित .रास्ते मे बैरागी जी की नजर पोस्टर और बैनरों पर बराबर पड़ रही थी । मैं ने कहा -दादा यंहा लोग हिन्दी -मराठी के घाल-मेल के कारण अक्सर गलतियां कर देते हैं । मेरी बात सुनकर उन्होने कहा कि-कोई बात नही है ,हिन्दी की सास्त्रियता का यह समय नही है । जरूरत इस बात की है कि हम इसका जादा से जादा उपयोग करें ,और इसके विकास के लिये सरकार कि तरफ़ देखना बंद करें। बैरागी जी लोकसभा और राज्यसभा दोनों के ही सदस्य रह चुके हैं । वे राजभाषा समिति के सदस्य के रूप मे अपनी कुछ स्मृतियों का जिक्र करते हुवे बतातें हैं कि ---गोविन्द मिश्र भी उनके गुस्से का कारन बने थे । मुंबई मे ही सन १९८६-८७ के आस -पास जब वे संसदीय समिति के सदस्य के रूप मे आयकर विभाग मे आये तो गोविन्द मिश्र की हिन्दी सम्बन्धी शासकीय जवाब देही से नाखुश हुए और खाना खाने से भी INKAAR KAR DIYA POOREE SAMITI NAY .
इसी तरह बैरागी जी ने पूर्व राष्टपति कलाम के सम्बन्ध मे भी बताया कि एक बार उन्हे कलाम जी के हस्ताक्षर वाला एक निमंत्रण मिला ,जिसे उन्होने सिर्फ़ इस लिये अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह निमंत्रण हिन्दी मे नही अंग्रजी मे था .इसी तरह कि कई बाते उन्होने बताई । आध्यात्म ,वेद और आयुर्वेद के साथ -साथ अहिंसा दिवस को वे भारत की तरफ़ से पूरी दुनिया को दिया गया श्रेष्ठ उपहार मानते हैं ।
बैरागी जी ने अपने बारे मे बताया कि वे एक भिखमंगे परिवार से आते हैं । ४ साल कि उम्र मे उन्हें जो पहला खिलौना मिला वह था -भीख मांगने का कटोरा । उम्र के २४ साल तक उन्होने भीख माँगा । आज भी बैरागी जी कपड़ा मांग कर ही पहनते हैं । ऐसी ही कई बाते करते हुए हमलोग अम्बरनाथ के प्रीतम होटल तक पहुंचे । वहा हम तीनो ने दोपहर का खाना खाया .फ़िर हमने बैरागी जी से कहा कि वे अपने रूम मे आराम करें ,शाम कोहम फ़िर मिलेंगे ।
शाम को कवि सम्मेलन था । मैं और मुन्ना भइया फ़िर शाम को बैरागी जी का काव्य पाठ सुनने अम्बरनाथ पहुंचे .बैरागी जी ने जब काव्य पाठ शुरू किया तो समां बंध गया । पनिहारिन .दिनकर के वंसज और ऐसी ही कई रचनायें वे रात २ बजे तक सुनाते रहे । उनकी यह पंक्ति याद रह गई कि --
''मैं कभी मरूँगा नही , क्योंकि मैं ऐसा कुछ करूँगा नही "
रात ३ बजे मै और मुन्ना भाई जब वापस निकले तो हमे याद आया कि रात का खाना हमने खाया ही नही है और भूख काफ़ी लगी है । कल्याण आकर रातभर चलने वाली एक दूकान पर हमने आलू कि टिकिया खाई और चाय पी । ३.४५ पर मैं घर पहुँचा और सोने कि कोशिस करने लगा । पर आँखों मे बालकवि जी दिखाई पड़ रहे थे और कानो मे उनकी यह पंक्तियाँ सुनाई पड़ रही थी ---
''अपनी ही आहूती देकर ,स्वयम प्रकाशित होना सीखो
यश-अप्य्स जो मिल जाये ,उसको हस कर सहना सीखो ''------------
Monday, 9 March 2009
निरर्थक परीक्षा प्रणाली
परेसान हो कर मैं ने अपने मोडरेटर को फ़ोन किया । उन्हे अपनी परेसानी बताई । इस पर उन्होने कहा की ''तुम २५० पेपर लेकर परेसान हो, मुझे तो १७०० पेपर निपटाने हैं । जल्दी करो ---"
मैं ने भी निपटा ही दिया २५० प्रश्न पत्र । लेकिन यह सोच कर परेसान था की जो विद्यार्थी साल भर मेहनत करते हैं .उन्हें इस तरह निपटा देना कितना सही है ? आख़िर यह व्यवस्था किस काम की है ? इसका इलाज होना ही चाहिये । परीक्षा के नाम पे यह दिखावटी व्यवस्था ख़त्म होनी चाहिये ।
आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?
Friday, 6 March 2009
कबीर और तुकाराम के काव्य मे अभिव्यक्त सांस्कृतिक चेतना का तुलनात्मक अनुशीलन

यह पुस्तक लेखक का शोध -प्रबंध रहा है ,इस कारण कुछ स्थानों पर विस्तार अधिक दिखाई पड़ता है .लेकिन कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है .पुस्तक पाप्ति के लिये लेखक से निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है
डॉ.बालकवि सुरंजे
अध्यक्ष-हिन्दी विभाग
बिरला महाविद्यालय
कल्याण -पश्चिम ४२१३०१
महाराष्ट्र
Wednesday, 4 March 2009
भव्य लोकार्पण समारोह -मन के साँचे की मिट्टी


इस समारोह मे अध्यक्ष के रूप मे बिरला कॉलेज के प्राचार्य डॉ.नरेश चंद्र उपस्थित थे । लोकार्पण कर्ता के रूप मे मुंबई विद्यापीठ के पूर्व हिन्दी विभाग प्रमुख डॉ.रामजी तिवारी उपस्थित थे । स्वागत वक्तव्य हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार श्री अलोक भट्टाचार्य जी ने दिया । अतिथि स्वागत भाषण दी कल्याण होलेसले मर्चंट असोसिएशन के अध्यक्ष श्री नन्द कुमार लक्ष्मण सोनवाने जी ने दिया । प्रमुख अतिथि के रूप मे कल्याण डोम्बिवली महानगर पालिका के कमिश्नर श्री गोविन्द राठोड जी उपस्थित थे । दोपहर का सामना हिन्दी समाचार के कार्यकारी संपादक श्री प्रेम शुक्ला जी भी प्रमुख अतिथि के रूप मे उपस्थित थे ।
प्रमुख वक्ता के रूप मे डॉ.सतीश पाण्डेय ,डॉ.अनिल सिंह, और डॉ.ईश्वर पवार जी उपस्थित थे । इस समारोह मे मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध कई महाविद्यालयों के हिन्दी विभाग प्रमुख उपस्थित थे । जैसे की -डॉ.प्रकास मिश्रा ,डॉ.संतोष मोटवानी,डॉ.प्रदीप सिंघ,डॉ.दौलत सिंग पालीवाल,डॉ.बालकवि सुरंजय ,डॉ.स्याम सुंदर पाण्डेय .डॉ.दामोदर मोरे ,डॉ.अनीता मन्ना ,डॉ.डी.पी.सिंग और डॉ.संजीव दुबे । इनके अतरिक्त भी कई पत्त्रिकाओ से सम्बंधित लोग भी उपस्थित थे .सञ्चालन श्री ॐ प्रकाश पाण्डेय जी ने किया ।
इस अवसर पर २००० के करीब लोग उपस्थित थे .सभी ने हिन्दी के विद्वानों को गंभीरता पुर्वक सुना ।
अपना भाषण देते हुवे डॉ.रामजी तिवारी ने कवितावों की खूब प्रसंसा की । इस समारोह की कुछ तस्वीरे आप इस लेख के साथ देख सकते हैं । मुंबई जैसे सहर मे किसी कविता पुस्तक के लोकार्पण मे इतने लोगो का उपस्थित होना एक आश्चर्य ही है । मगर यह सच है । आँखों देखा सुखद सच ---------------
What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers
Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...
-
***औरत का नंगा जिस्म ********************* शायद ही कोई इस दुनिया में हो , जिसे औरत का जिस्म आकर्षित न करता हो . अगर सारे आवरण हटा क...
-
जी हाँ ! मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष , जिसके विषय में पद््मपुराण यह कहता है कि - जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा...
-
Factbook on Global Sexual Exploitation India Trafficking As of February 1998, there were 200 Bangladeshi children and women a...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
-
अनेकता मे एकता : भारत के विशेष सन्दर्भ मे हमारा भारत देश धर्म और दर्शन के देश के रूप मे जाना जाता है । यहाँ अनेको धर...
-
अर्गला मासिक पत्रिका Aha Zindagi, Hindi Masik Patrika अहा जिंदगी , मासिक संपादकीय कार्यालय ( Editorial Add.): 210, झेलम हॉस्टल , जवा...
-
Statement showing the Orientation Programme, Refresher Courses and Short Term Courses allotted by the UGC for the year 2011-2012 1...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...