Wednesday, 27 March 2024

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा










 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर्च की अलग से चटनी बना ली ।

Tuesday, 26 March 2024

निशालदा : पारंपरिक उज़्बेकी मिष्ठान

 

 

निशालदा : पारंपरिक उज़्बेकी मिष्ठान

 

उज़्बेकिस्तान में रहते हुए मैंने यह लगातार महसूस किया है कि यहाँ जितना लोकप्रिय मांसाहार है, उतना ही मीठे पदार्थ भी । नवरोज़ का समय था अतः सुमालक की धूम थी । यहाँ अन्य पारंपरिक मिष्ठानों में हलवा, परबरदा, पश्मक, खष्टक, ब्रशवुड, शर्बत, उरमा, नवत चीनी, तुलुम्बा, बकलवा  और निशालदा प्रमुख है । इन मिष्ठानों की सबसे खास बात यह है कि इन्हें बनाने या सजा के परोसने के लिए शुद्ध प्राकृतिक पदार्थों का ही उपयोग किया जाता है । अतः ये स्वाद और सेहत दोनों के लिए अच्छा है ।  इसके अतिरिक्त  पेस्ट्री, तंदूर से गर्म केक, बहुत ही मुलायम, कुरकुरा और मुंह में जाते ही तुरंत पिघलने वाला संसा का स्वाद लाजवाब होता है । कोलोबक्स (लोचिरा, कटलामा, बगीरसोक, पाटिर, उरमा ) भी यहाँ विशेष लोकप्रिय है ।

उज़्बेकी भाषा में नाश्ता के लिए “नोनुश्ता” शब्द है। दस्तरखान पर सूखे मेवे, रसीले फलों, शहद या चीनी के साथ चाय, ब्रेड और पारंपरिक मिष्ठानों को सजाकर परोसने की संस्कृति इन्हें इतालवी, फ्रेंच या तुर्की पाक कला के समकक्ष लाकर खड़ा करती है । निशालदा मुख्य रूप से दूध,क्रीम और चीनी से बना मिष्ठान है । दिखने में यह सफ़ेद श्रीखंड की तरह होता है लेकिन श्रीखंड या बनारसी मलईया की तुलना में कहीं अधिक मीठा । इसे बनाने के लिए अंडे की सफेदी, मुलेठी की जड़ के टुकड़े, चीनी, पानी और साइट्रिक एसिड का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है ।








अंडे की सफेदी को जर्दी से बहुत सावधानी से अलग करने की जरूरत होती है ताकि उन्हें ठीक से फेटा जा सके । इसके लिए आप बड़े धातु के पैन या बाल्टी का उपयोग कर सकते हैं। दूसरे बर्तन में मुलेठी की जड़ को पीसकर उसमें थोड़ी मात्रा में पानी डालकर लगभग 20 मिनट तक धीमी आंच पर पकाया जाता है । इसके बाद उसे ठंडा करके छान लिया जाता है । फ़िरअंडे की सफेदी जो की लगातार फेटने से गाढ़े क्रीम के रूप में बदल जाता है, उसके ऊपर मुलैठी की जड़ वाला ठंडा तरल अर्क धीरे धीरे डालते हुए फेटा जाता है । फ़िर किसी दूसरे बर्तन में ठंडे पानी में चीनी और साइट्रिक एसिड मिलाकर धीमी आंच पर रख दिया जाता है । इसे लगभग 20 मिनट तक लगातार हिलाते हुए पकाया जाता है । जब चाशनी तैयार हो जाए तो आंच बंद कर उसे ठंडा किया जाता है । फ़िर अंडे के गाढ़े हो चुके क्रीम को लगातार फेटते हुए उसमें यह चासनी मिला दी जाती है । इस तरह तैयार निशालदा मिठाई को एक कटोरे में भरकर फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है । 15-20 मिनट के लिए ठंडा करने के बाद निशालदा खाने के लिए तैयार हो जाता है । इसे उज़्बेक ब्रेड के स्लाइस और हरी चाय के साथ परोसा जाता है ।

उज़्बेकी पारंपरिक मिष्ठानों में निशालदा अपनी खास अहमियत रखता है । यह उज़्बेकी पाक कला, संस्कृति और प्रेम भावपूर्ण मेहमान नवाज़ी का सैकड़ों वर्षों पुराना जायका है ।

 

डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफ़ेसर ( ICCR हिन्दी चेयर )

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़

ताशकंद, उज्बेकिस्तान

Sunday, 24 March 2024

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा संक्षिप्त परिचय वर्ष 2024

 




नाम :  डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

जन्म : वसंत पंचमी, 09 फरवरी 1981

शिक्षा : एम ए ( हिन्दी एवं अँग्रेजी), पी.एचडी, एम.बी.ए ( मानव संसाधन )

संप्रति :

         विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR HINDI CHAIR ), ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़,  ताशकंद, उज्बेकिस्तान ।

         के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र में सहायक आचार्य हिन्दी विभाग में 14 सितंबर 2010 से कार्यरत ।

प्रकाशन :

         हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 35 पुस्तकों का संपादन

         अमरकांत को पढ़ते हुए (समीक्षा )   हिंदयुग्म, नई दिल्ली से वर्ष 2014 में प्रकाशित

         इस बार तुम्हारे शहर में – (कविता संग्रह), शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित

         अक्टूबर उस साल – (कविता संग्रह), शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित

·         स्मृतियाँ - (कहानी संग्रह), ज्ञान ज्योति पब्लिकेशंस, दिल्ली से 2021 में प्रकाशित

 

 

 

पुरस्कार  :

 

         श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक - वर्ष 2003, मुंबई विद्यापीठ,मुंबई,  महाराष्ट्र  

         डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2020, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश

         अखिल भारतीय राजभाषा हिंदी सेवी सम्मान – 2021,  महात्मा गाँधी राजभाषा हिंदी प्रचार संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र

         संत नामदेव पुरस्कार 2020-2021, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र शासन, मुंबई, महाराष्ट्र

 

 

सम्पर्क :

manishmuntazir@gmail.com

https://onlinehindijournal.blogspot.com

+91   8090100900 (भारत)

+998  503022454 (ताशकंद)

Tuesday, 19 March 2024

नवरोज मुबारक ।

 नवरोज मुबारक ।


नवरोज आया है बहारों की आमद लेकर

सुख समृद्धि और शांति की दावत लेकर ।


प्रकृति सजने लगी अपने वासंती रंग में

नवरोज आया है पैगाम ए मोहब्बत लेकर ।


शफ़्फ़ाक़ियत, ताज़गी व ख़ुश-गवार फ़ज़ा

यह नवरोज आया है ऐसी ही सिफात लेकर ।


रंग ए हसरत में देखो तो कितना असर आया

नवरोज आया है उम्मीदों का ए’तिमाद लेकर ।


बहुत मुबारक हो सभी को ये माह ए नवरोज 

मनाओ नवरोज इंसानियत की सौगात लेकर । 


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR हिंदी चेयर)

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।





Monday, 18 March 2024

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे

बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद 

जहां 

मैपल के पेड़ों की कतार 

किसी का भी 

मन मोह लें।


तेज़ रफ़्तार से

भागती हुई गाडियां 

सिग्नल पर

विनम्रता और अनुशासन से

खड़ी हो जाती हैं 

ताकि पार कर सकें सड़क

मुझसे पैदल यात्री भी ।


तकनीक ने 

भाषाई सीमाओं को 

काफ़ी हद तक

खत्म कर दिया है

येनडेन से कैब बुला

आप घूम सकते हैं

पूरा शहर।


ऑनलाइन ट्रांसलेशन ऐप से

वार्तालाप भी

काम भर की बातचीत तो

करा ही देती है

उज़्बेकी और हिंदी में ।


अक्सर कोई उज़्बेकी

पूछ लेता है -

हिंदुस्तान?

और मेरे हां में सर हिलाते ही

वह तपाक से कहता है -

नमस्ते !


वैसे 

सलाम और रहमत कहना

मैंने भी सीख लिया

ताकि कृतज्ञता का

थोड़ा सा ही सही पर 

ज्ञापन कर सकूं ।


इस शहर ने 

मुझे अपना बनाने की 

हर कोशिश की

इसलिए मैं भी

इस कोशिश में हूं कि

इस शहर को

अपना बना सकूं 

और इसतरह

हम दोनों की ही 

कोशिश जारी है।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर ( ICCR हिंदी चेयर)

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।













Saturday, 16 March 2024

ताशकंद में नमस्ते इंडिया दुकान

 ताशकंद में भारतीयों की खाद्य जरूरतों को पूरा करनेवाली दुकानों में यह "नमस्ते इंडिया" नामक दुकान बड़ी उपयोगी है। इसे श्रीमती नीता गुप्ता जी चलाती हैं जो मूल रूप से दिल्ली की रहनेवाली हैं लेकिन विगत दस सालों से ताशकंद में रह रही हैं। 

यहां आप को भारतीय मसाले, बासमती चावल, चना, बेसन, दाल, अचार, साबूदाना, पोहा, सरसों का तेल, घी , पापड़, गुड़ और तमाम किस्म की नमकीन मिल जाएगी । 

ताशकंद में घी, सरसों का तेल, साबूदाना, गुड़ और नमकीन जैसी वस्तुएं बड़े से बड़े मॉल में भी मिलना मुश्किल है लेकिन यहां ये सब सहज उपलब्ध है।



Thursday, 14 March 2024

ताशकंद

 

ताशकंद ।

ताशकंद को पहली बार
फरवरी की सर्द हवाओं में
बर्फ़ से लिपटे हुए देखा 
बर्फ़ का झरना
बर्फ़ का जमना
और बर्फ़ का आंखों में बसना
जितना दिलकश था
उतना ही खतरनाक भी
लेकिन दिलकश नज़ारों के लिए
खतरे उठाने की 
पुरानी आदत रही है
और आदतन
मैं उन मौसमी जलवों का
तलबगार हो गया।

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी से
याकुब अली रोड़ पर स्थित
मेरे बसेरे की दूरी
तीसरी डनहिल सिगरेट के
लगभग
आखिरी कश तक की थी
उसके बाद 
कैफे दोसान की गरमा गर्म काफ़ी
उन गर्म सांसों सी लगती
जो मुझसे दूर होकर भी
मेरे अंदर ही कहीं
बसी रहती हैं।

दिलशेर नवाई, बाबर
और फातिमा की काव्य पंक्तियों को पढ़ते हुए
कबीर, टैगोर, शमशेर
और अमृता प्रीतम याद आते रहे 
मैं कविता की इस आपसदारी से खुश हूं
सरहदों के पार
बेरोक टोक सी
शब्दों की ऐसी यात्राएं
कितनी मानवीय हैं !!


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR हिंदी चेयर)
ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।






Sunday, 10 March 2024

रात चांद को देखा तो

 रात चांद को देखा तो कोई याद आ गया 

मेरी यादों में फिर से मेरा वो चांद आ गया।


कहना था लेकिन जो भूल गया तेरे सामने

वो सब तो तेरे जाने के बाद याद आ गया।


इश्क है तुझसे तो फिर कोई तगाफुल कैसा 

यही सोच लेकर तेरे आगे फरियाद आ गया।


तेरे बाद मैं होता भी कुछ और तो कैसे होता

तेरी मोहब्बत में देखो होकर बर्बाद आ गया।


बेड़ियां तो बहुत सी थी जमाने भर की लेकिन

तेरे खातिर ही होकर सब से आज़ाद आ गया।

Dr ManishKumar Mishra

Tashkent, Uzbekistan 





Friday, 8 March 2024

आठ मार्च , विश्व महिला दिवस मनाते हुए

 वैसे तो नाज़ुक है लेकिन फौलाद ढालना जानती है

वोअपने आंचल से ही ये दुनियां संवारना जानती है।


दुनियां बसाती है जो दिल में मोहब्बत को बसाकर

वो अपनी नज़रों से ही बद नजर उतारना जानती है।


सजाने संवारने में उलझी तो बहुत रहती है लेकिन

गोया जुल्फों की तरह सबकुछ सुलझाना जानती है।


ऐसा नहीं है कि उसके आस्तीन में सांप नहीं पलते

पर ऐसे सांपों का फन वो अच्छे से कुचलना जानती है।


हर एक बात पर रोज़ ही अदावत अच्छी नहीं होती

इसलिए रोज़ कितना कुछ वो हंसकर टालना जानती है।


आठ मार्च विश्व महिला दिवस मनाते हुए याद रहे कि 

प्रकृति समानता सहअस्तित्व को ही निखारना जानती है।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR हिंदी चेयर )

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान 





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