Wednesday, 28 February 2018

इस दौर ए निज़ाम में ।


तेरी आँखों से मेरा एक ख़ास रिश्ता है
एक सपना है जो यहीं से हौंसला पाता है ।
शिकार हो जायेंगे हर हाल में सवाल सारे
इस दौर ए निज़ाम में यह व्यवस्था पुख्ता है ।
तोड़ दिये गये हैं सब दाँत निरर्थक बताकर
क्योंकि चाटने की परंपरा में काटना समस्या है ।
विश्व के इस सबसे बड़े सियासी लोकतंत्र में
आवाम की कोई भी मजबूरी सिर्फ़ एक मौक़ा है ।
अपराधियों की श्रेणी में अब वो सब शामिल हैं
जिनका कि खून व्यवस्था के ख़िलाफ़ खौलता है ।
जब कोई आख़री पायदान से चीख़ता-चिल्लाता है
तो यक़ीनन वह उम्मीद की नई मशाल जलाता है ।
तुम्हें अब तक जितनी भी शिकायत रही है मुझसे
वो तेरे इश्क़ का अंदाज़ है जो मुझे बहुत भाता है ।
----------------- मनीष कुमार मिश्रा

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